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सर्जन की चिड़ियाँ करें, तोपों पर निर्माण

 

बस यूँ ही बदनाम है, सड़क-गली-बाज़ार। 
लूट रहे हैं द्रौपदी, घर-आँगन-दरबार॥
 
कोई यहाँ कबीर है, लगता कोई मीर। 
भीतर-भीतर है छुपी, सबके कोई पीर॥
 
लाख चला ले आदमी, यहाँ ध्वंस के बाण॥
सर्जन की चिड़ियाँ करें, तोपों पर निर्माण॥
 
अगर विभीषण हो नहीं, कर पाते क्या नाथ। 
सोने की लंका जली, अपनों के ही हाथ॥
 
एकलव्य जब तक करे, स्वयं अँगूठा दान। 
तब तक अर्जुन ही रहे, योद्धा एक महान॥
 
देख सीकरी आगरा, ‘सौरभ’ है हैरान। 
ख़ाली है दरबार सब, महल पड़े वीरान॥
 
बन जाते हैं शाह वो, जिनको चाहे राम। 
बैठ तमाशा देखते, बड़े-बड़े जो नाम॥

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