सर्जन की चिड़ियाँ करें, तोपों पर निर्माण
काव्य साहित्य | दोहे डॉ. सत्यवान सौरभ1 Jan 2025 (अंक: 268, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
बस यूँ ही बदनाम है, सड़क-गली-बाज़ार।
लूट रहे हैं द्रौपदी, घर-आँगन-दरबार॥
कोई यहाँ कबीर है, लगता कोई मीर।
भीतर-भीतर है छुपी, सबके कोई पीर॥
लाख चला ले आदमी, यहाँ ध्वंस के बाण॥
सर्जन की चिड़ियाँ करें, तोपों पर निर्माण॥
अगर विभीषण हो नहीं, कर पाते क्या नाथ।
सोने की लंका जली, अपनों के ही हाथ॥
एकलव्य जब तक करे, स्वयं अँगूठा दान।
तब तक अर्जुन ही रहे, योद्धा एक महान॥
देख सीकरी आगरा, ‘सौरभ’ है हैरान।
ख़ाली है दरबार सब, महल पड़े वीरान॥
बन जाते हैं शाह वो, जिनको चाहे राम।
बैठ तमाशा देखते, बड़े-बड़े जो नाम॥
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
अँधियारे उर में भरे, मन में हुए कलेश!!
दोहे | डॉ. सत्यवान सौरभमन को करें प्रकाशमय, भर दें ऐसा प्यार! हर…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
ऐतिहासिक
दोहे
- अँधियारे उर में भरे, मन में हुए कलेश!!
- आशाओं के रंग
- आशाओं के रंग
- उड़े तिरंगा बीच नभ
- एक-नेक हरियाणवी
- करिये नव उत्कर्ष
- कहता है गणतंत्र!
- कायर, धोखेबाज़ जने, जने नहीं क्यों बोस!!
- क्यों नारी बेचैन
- गुरुवर जलते दीप से
- चलते चीते चाल
- चुभें ऑलपिन-सा सदा
- जाए अब किस ओर
- टूट रहे परिवार!
- तुलसी है संजीवनी
- दादी का संदूक!
- देख दुखी हैं कृष्ण
- दो-दो हिन्दुस्तान
- दोहरे सत्य
- नई भोर का स्वागतम
- पिता नीम का पेड़!
- पुलिस हमारे देश की
- फीका-फीका फाग
- बढ़े सौरभ प्रज्ञान
- बदल गया देहात
- बन सौरभ तू बुद्ध
- बैठे अपने दूर
- मंगल हो नववर्ष
- महकें हर नवभोर पर, सुंदर-सुरभित फूल
- रो रहा संविधान
- रोम-रोम में है बसे, सौरभ मेरे राम
- संसद में मचता गदर
- सर्जन की चिड़ियाँ करें, तोपों पर निर्माण
- सहमा-सहमा आज
- हर दिन करवा चौथ
- हर दिन होगी तीज
- हरियाली तीज
- हारा-थका किसान
- हिंदी हृदय गान है
- ख़त्म हुई अठखेलियाँ
सांस्कृतिक आलेख
ललित निबन्ध
सामाजिक आलेख
- अगर जीतना स्वयं को, बन सौरभ तू बुद्ध!!
- अपराधियों का महिमामंडन एक चिंताजनक प्रवृत्ति
- घर पर मिली भावनात्मक और नैतिक शिक्षा बच्चों के जीवन का आधार है
- टेलीविज़न और सिनेमा के साथ जुड़े राष्ट्रीय हित
- तपती धरती, संकट में अस्तित्व
- दादा-दादी की भव्यता को शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता है
- देश के अप्रतिम नेता अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत का जश्न
- नए साल के सपने जो भारत को सोने न दें
- रामायण सनातन संस्कृति की आधारशिला
- समय की रेत पर छाप छोड़ती युवा लेखिका—प्रियंका सौरभ
- समाज के उत्थान और सुधार में स्कूल और धार्मिक संस्थान
- सूना-सूना लग रहा, बिन पेड़ों के गाँव
- सोशल मीडिया पर स्क्रॉल होती ज़िन्दगी
लघुकथा
किशोर साहित्य कविता
काम की बात
साहित्यिक आलेख
पर्यटन
चिन्तन
स्वास्थ्य
सिनेमा चर्चा
कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं