विविध भावों के हाइकु : यादों के पंछी - डॉ. नितिन सेठी
समीक्षा | पुस्तक समीक्षा डॉ. सुरंगमा यादव23 Jan 2019
पुस्तक: यादों के पंछी
कवयित्री: डॉ. सुरंगमा यादव
समीक्षक: डॉ. नितिन सेठी
प्रकाशक: नमन प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य: रु० 250/-
पृष्ठ: 108
डॉ. सुरंगमा यादव का सद्यः प्रकाशित हाइकु संग्रह ‘यादों के पंछी’ इनके कुल 426 हाइकु का संग्रह है। इस लघुकाय विधा में वर्तमान समय में विपुल मात्रा में सृजन किया जा रहा है। 5-7-5 वर्णक्रम के विधान में व्यवस्थित हाइकु विधा में कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक भावों को भरने का प्रयत्न किया जाता है। डॉ. सुरंगमा यादव अपने इस आयोजन में बहुत हद तक सफल भी कही जा सकती हैं। वैसे तो हाइकु मुख्यतः प्रेम और प्रकृति की बात अधिक करते हैं परंतु समसामयिक सामाजिक चित्रण भी यहाँ व्यापक रूप से अभिव्यक्ति पाते हैं। सात खंडों में विभाजित आलोच्य संग्रह में पाँच खंड प्रकृतिपरक हाइकु पर ही आधारित हैं। ‘सत्य का पथ’ नामक पहले खंड में कवयित्री की कामना है-
सद् विचारक/हो सुपथ गामिनी/सुमति दे माँ
प्रेम विश्वास/घर के ठोस स्तम्भ/सुखी कुटुम्ब
कवयित्री ने दार्शनिक भावों के अनेक हाइकु को लिपिबद्ध किया है। मन, अंतरात्मा, समय, आशा, माया जैसे विषयों पर महत्वपूर्ण चिंतन प्रस्तुत किया गया है। मन का मानवीकरण देखिए-
मन नाविक/तन नौका लेकर/फिरे घूमता
मन है ऐसा/निपुण निदेशक/नाच नचाये
‘यादों के पंछी’ खंड में प्रेम और विरह के मधुर क्षणों का शब्दांकन द्रष्टव्य है। कुछ हाइकु देखिए-
मन बगिया/कलरव करते/यादों के पंछी
जोड़ूँ कड़ियाँ/यादों की तो बनती/लम्बी लड़ियाँ
मन भाजन/यादों की निधियों से/है आपूरित
प्रकृति के अनेक मनमोहक रूपों का दर्शन पाठक को यहाँ होता है। ग्रीष्म, वर्षा, सर्दी, आतप जैसे मौसमों का मानवीकरण प्रभावित करता है। प्रकृति यहाँ आलम्बन और उद्दीपन; दोनों ही रूपों में दिखाई देती है। बादल, भँवरे, कोयल, गौरैया, फूल, सभी अपने-अपने रंगों में यहाँ स्थान पाते हैं। इन विषयों पर हाइकु रचने में तो जैसे डॉ. सुरंगमा यादव को महारत हासिल है। मानव मन की अनेक गतिविधियों को कवयित्री सामने लाती हैं। प्रकृति के मनमोहक रूपों के साथ-साथ कठोर और मारक रूपों का चित्रण भी यहाँ है। अनेक भावों की सरलतम अभिव्यक्तियाँ निम्नलिखित हाइकु में द्रष्टव्य हैं-
हवा के झोके/सहला जाते तन/हर्षित मन
तन है भीगा/मन है रेगिस्तान/कैसी बरखा
गंध बिखेर/मेघ अभिनंदन/करती धरा
ओ री बरखा/कैसा बरसे नीर/बढ़ अगन
‘नदी किनारे’ खंड भी अपनी प्रवाहमयी भावुकता के साथ आकर्षित करता है। जर्जर पेड़ को प्रतीक बनाकर कवयित्री कहती है-
नदी किनारे/बूढ़ा जर्जर पेड़/खैर मनाता
जीवन पोथी/श्वेत पृष्ठ है कोई/कोई धूमिल
‘मानवी हूँ मैं’ खंड में स्त्री-पुरुष की बराबरी और नारीमन की कोमल सम्वेदनाओं का प्रकटीकरण है। ‘नारी तुम केवल श्रद्धा हो’ की उद्घोषणा करते हाइकु यहाँ संग्रहीत है। इस विषय पर कुछ सुंदर हाइकु देखिये-
एक दूजे के/पूरक नर-नारी/न प्रतिद्वन्द्वी
आधुनिक स्त्री/श्रद्धा इड़ा का रूप/प्रगतिशील
वहीं पुरुष से कंधा मिलाकर चलने की बात भी है-
मैं भी बनूँगी/एक दिन सहारा/भैया के जैसा
‘इंद्रधनुष’ खंड में विविध विषयक हाइकु संग्रहीत हैं। कवयित्री की दृष्टि में केवल प्रेम-प्रकृति-दर्शन ही नहीं हैं, अपितु, समसामयिक विषयों पर भी उसकी गहरी पकड़ है। हाइकु में आज देश-समाज-राजनीति की बातों को भी लाया जा रहा है, जो इस विधा का प्रसार दर्शाता है। इस संदर्भ में डॉ. मिथिलेश दीक्षित भी लिखती है, “नारी विमर्श के अतिरिक्त असमानता, स्वार्थपरता, वृद्धावस्था के कष्ट, निर्धनता, नशाखोरी आदि सामाजिक विसंगतियों पर भी अनेक हाइकु ध्यान आकर्षित करते हैं।” कुछ हाइकु द्रष्टव्य हैं-
मानवता को/जलाते हैं उन्मादी/जला के बस्ती
धरा बिछाते/गगन ओढ़ते हैं/निर्धन देव
पिता गर्वित/कफन में तिरंगा/बेटे ने पाया
स्नेह वर्तिका/प्रदीप्त करती है/भ्रातृ द्वितीया
हिंदी पर केंद्रित हाइकु में हिंदी का गुणगान किया गया है-
हिंदी देश की/पहचान बनी है/सारे जग में
हिंदी का मान/स्वाभिमान हमारा/रहे ये ध्यान
हिंदी ने बाँधा/एक सूत्र में देश/हुआ स्वाधीन
संग्रह के अंत में छह ताँका भी दिए गए हैं जो प्रभावी बन पड़े हैं। ‘यादों के पंछी’ कृति में डॉ. सुरंगमा यादव ने गहनतम भाव भरने का प्रयत्न किया है, जिसमें वे अधिकतम सफल रही हैं। प्रथम हाइकु संग्रह होने के कारण कवयित्री भविष्य में और गहरे अर्थों के हाइकु सृजन में प्रतिष्ठा प्राप्त करेंगी, ऐसा विश्वास है। अपने कथ्य और शिल्प से ‘यादों के पंछी’ संग्रह पाठकों की यादों में बना रहेगा।
डॉ. नितिन सेठी
सी-231, शाहदाना कॉलोनी
बरेली (243005)
(9027422306)
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