सरस्वती वंदना
काव्य साहित्य | कविता डॉ. सुरंगमा यादव1 Feb 2025 (अंक: 270, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
हे ज्योतिर्मयी, ज्ञान की देवी, ऐसा वर दे दो माँ
अपनी कृपा की सुरसरिता से, मन निर्मल कर दो माँ॥
पूजन-वंदन भी नहीं जाने, है ऐसा मूर्ख मन
अंतर में हैं घोर अँधेरे, ज्योति नवल भर दो माँ।
सुर-संगीत, गीत नहीं जाने, छन्दों से अनभिज्ञ मन
वीणा वादिनी मन वीणा में, नव झंकृति भर दो माँ
वेद न जाने-मंत्र ना जाने, न गीता का ज्ञान है
ग्रंथों में ये मन रम जाए, ज्ञान सुलभ कर दो माँ॥
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