सुरंगमा यादव हाइकु - 1
काव्य साहित्य | कविता - हाइकु डॉ. सुरंगमा यादव24 Aug 2017
1.
जीवन घट
कर्म जल पूरित
बुलावा आया।
2.
कर्मों का फल
बिन सोचे करनी
त्रिशंकु बने।
3.
धरा कुटुम्ब
सब जन अपने
यही संस्कृति।
4.
लोभ न आये
देख पराया धन
बुरी बला ये।
5.
पीर परायी
अपनी-सी समझे
मनुज वही।
6.
निज सुख दे
परदुःख ले लेता
प्रिय सभी का।
7.
चंचल मन
आकर्षक बुराई
सहज खींचे।
8.
स्वयं पारखी
निज गुण ज्ञान का
आत्म मुग्ध मैं।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
सामाजिक आलेख
दोहे
कविता
कविता-मुक्तक
लघुकथा
सांस्कृतिक आलेख
शोध निबन्ध
कविता-माहिया
पुस्तक समीक्षा
कविता - हाइकु
कविता-ताँका
साहित्यिक आलेख
विडियो
ऑडियो
उपलब्ध नहीं