राजीव कुमार – ताँका – 003
काव्य साहित्य | कविता-ताँका राजीव कुमार15 Apr 2024 (अंक: 251, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
1.
दिन गिनते
बीत रहा जीवन
काट रहा हूँ
ख़ुशी कभी न आई
ग़म कभी न गया।
2.
समझ न पाए
नसीब दरकार
दोष देते गए
नसीब के क़ाबिल
बन न पाया दिल।
3.
लगाते सदा
ताक़त अंदरूनी
ज़िद्दी जुनूनी
वक़्त के साथ चलते
ख़ुद साँचा ढालते।
4.
वायु का वेग
नाव के विपरीत
खोओ न धीर
सम्भालो पतवार
हवा में नहीं धार।
5.
रंग बदले
ज़माना तो चलेगा
रंग न जाना
किसी और के रंग
बनूँ कटी पतंग।
6.
हाथ हथौड़ा
निकाल तू गुब्बार
वार पे वार
टूटता है ग़ुरूर
लोहा चकनाचूर।
7.
यादें ख़ज़ाना
बेवफ़ाई के जैसा
लूट न जाना
गुज़ार लेंगे हम
तूने जो किए सितम।
8.
वेश बदला
परिवेश बदला
दोनों ही झूठे
वेश की पहचान
परिवेश का ज्ञान।
9.
खोया जो धीर
बने कैसे तक़दीर
रख हौसला
मंज़िल ओर चला
बदल न फ़ैसला।
10.
बदले वक़्त
नसीब करवट
बदनसीबी
तेरी सोच शायद
कर जद्दोजेहद।
11.
उठा रही है
बोझ कैसे धरती
गद्दारी भार
न देश प्रेम किया
न मानवता जिया।
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