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राजीव कुमार – ताँका – 001

 

1.
राजा है ख़ामोश
अंधेर है नगरी
बातें हैं बड़ी
जी रहा अमीर
मर रहा ग़रीब। 
 
2.
रहो न मौन
उत्तर अभिलाषी
देश के वासी
वक़्त प्रश्न काल का
नहीं है शून्य काल का। 
 
3.
दोषारोपण
कीचड़ में कमल
व्यर्थ का बल
चापलूसी सबक़
भुला अपना हक़। 
 
4.
प्रेम परीक्षा
प्रेम का समाधान
यही विधान
मन अगर हारे
मन को ही तो जीते। 
 
5.
आया है दिल
हारना मुश्किल
जीत सबब
हौसला है जब
मिले हों जैसे रब। 
 
6.
घर का भेदी
भाई भाई न रहा
लंका है ढहा
बड़ी भारी प्रवृति
तोड़ की राजनीति। 
 
7.
आपकी राय
मचाई खलबली
लगी है भली
निकलेगा जो रास्ता
सुनाएँगे हम दास्ताँ। 
 
8.
तोड़ा यक़ीन
मिले और हसीन
दिल का साथी
ढूँढ़ा ख़ूबसूरत
भूल गया सीरत। 
 
9.
छलक रही
दूधिया सी चाँदनी
आई पूर्णिमा
हसीन है नज़ारा
रौशन जहाँ सारा। 
 
10.
फ़ितरत में
जिनकी धोखाधड़ी
पाएँ हथकड़ी
होता जो पर्दाफ़ाश
जनता झेले त्रास। 
 
11.
चुनी जो राह
चलना बिन हारे
किए बिना आह
तुम न मजबूर
मंज़िल नहीं दूर। 

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