जीवनदान
कथा साहित्य | लघुकथा राजीव कुमार1 May 2021 (अंक: 180, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
लम्बे समय के बाद, होश में आने के साथ ही गजोधर तिवारी ने डॉक्टर को धन्यवाद देते हुए कहा, ’आकाश में भगवान बैठे हैं लेकिन धरती के भगवान तो आप लोग ही हैं, एक बार फिर से धन्यवाद, हमको जीवनदान देने के लिए।"
डॉक्टर साहब ने कहा, "मैंने तो अपना फ़र्ज़ निभाया है, असली जीवनदान तो रक्तदान से मिलता है।"
तिवारी जी ने उत्सुक्तावश प्रश्न किया, "किसने किया रक्तदान?"
डॉक्टर साहब ने कहा, "अनुमान लगाइए।"
तिवारी जी ने पास खड़े परिजनों का मुँह निहारा और कहा, "मेरी धर्मपत्नी ने।"
धर्मपत्नी ने ’न’ में सिर हिलाया।
"तो ज़रूर मेरी बेटी ने रक्तदान किया होगा।"
तनया की नज़र नीची झुक जाने के कारण तिवारी जी का मन मसोसा। गजोधर तिवारी ने अपना सिर खुजाया और कहा, "अब तो एक ही वीर बचा है, मेरा बेटा सौरभ तिवारी।"
इससे पहले कि तिवारी जी का बेटा कुछ कहता, तपाक से नर्स ने कहा, "नहीं सर रक्तदाता का नाम सौरभ राम है।"
कुछ गहरा सोचने के बाद शिक्षक गजोधर तिवारी को अफ़सोस हुआ कि जिसने रक्तदान करके हमको जीवनदान दिया, उसको क़ाबिलियत के हिसाब से ज्ञानदान भी नहीं दे पाए।
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