वर्चस्व
कथा साहित्य | लघुकथा राजीव कुमार15 Sep 2019
रियासत और सियासत दोनों में वर्चस्व को लेकर जंग होने लगी। रियासत ने अपना मुँह टेढ़ा करते हुए कहा, "मैं तुमसे बड़ी हूँ।"
सियासत ने अपने बाजू फड़काते हुए कहा, "मैं तुमसे ज़्यादा महत्वपूर्ण हूँ।"
रियासत और सियासत दोनों ही एक दूसरे को घूरने लगीं। दोनों में घनघोर युद्ध होने के कारण दोनों ने एक दूसरे से दूरी बना ली। इसका नतीजा यह निकला कि रियासत में सियासत की कमी होने के कारण डर बढ़ता गया और रियासत के वग़ैर सियासत बेघर हो गई।
राजा को जब यह बात पता चली तो दोनों को डाँटते हुए कहा, "तरक्की की दुश्मनों, तुम दोनों से ही मेरी पहचान है। नहीं तो मैं बेघर और दुश्मनों का गुलाम हो जाऊँगा।"
रियासत और सियासत एक तो हो गईं मगर अपनी बारी की दोनों प्रतीक्षा करने लगीं।
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