चिराग – चिरागिन
कथा साहित्य | लघुकथा राजीव कुमार1 May 2021 (अंक: 180, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
सदानंद साव के घर में पहले चिराग आया तो सुने अँधेरे आँगन में उजाला हुआ, फिर कुछ सालों के बाद उस घर में चिरागिन आई, फिर तो आँगन क्या, कमरा क्या, दंपति के मन का कोना-कोना तक रोशन हो गया।
खेल-खेल में एक दिन चिराग और चिरागिन लड़ रहे थे और एक-दूसरे का बाल नोच रहे थे तो सदानंद साव और तारा साव ने बीच-बचाव किया।
चिराग ने पूछा, "इस घर में मेरा प्रकाश ज़रूरी है कि इसका?"
चिरागिन ने पूछा, "मेरी रौशनी ज़रूरी है या इसकी?"
सदानंद साव और तारा साव ने एक स्वर में कहा, "दोनो की।"
विधी के विधान के हिसाब से साव दंपति ने पहले चिरागिन की विदाई की और मन का कोना-कोना अँधेरा कर लिया, यादों का अस्तित्व धुँधली सी रोशनी पैदा करता रहा।
अब साव दंपति के आँगन में वर्षों से अँधेरा है, क्योंकि चिराग का प्रकाश आँगन, घर और देश से निकलकर दूसरे देश को आलोकित कर रहा है लेकिन आज भी यदा-कदा ही सही, साल में एक बार ही सही, साव दंपति के मन का कोना-कोना दूधिया सी रोशनी में जगमगा उठता है।
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