प्रेम भँवर
कथा साहित्य | लघुकथा राजीव कुमार1 Jan 2021 (अंक: 172, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
संजना की निगाहें लगातार बड़ी बेक़रारी से मयंक को ढूँढ़ रही थीं और अगले ही पल दोनों आमने-सामने थे।
संजना ने शर्म मिश्रित ग़ुस्से से मयंक से कहा, "तुम तो बहुत बुद्धु मालूम होते हो, उस दिन की झूठी धमकी से डर गए। तुम्हारी चाहत को अपने ग़ुस्से से परख रही थी। कोई भी लड़की घर में जाकर थोड़े ही बोलेगी, इतना भी नहीं समझते। भीतर का प्यार और ऊपरी दीखावे में फ़र्क़ भी नहीं कर सकते?"
मयंक ने बड़ी ही भावुकता के साथ संजना की तरफ़ देखा और कहा, "प्राची की धमकी को मैंने झूठा समझा लेकिन हमको जेल भी जाना पड़ा था।"
अब संजना निःशब्द थी और मयंक बातों का सिलसिला शुरू होने का इंतज़ार कर रहा था।
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