गंदी लड़की
कथा साहित्य | लघुकथा राजीव कुमार15 Sep 2021 (अंक: 189, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
"ऑफ़िस के साफ़-सफ़ाई के काम के लिए मुझे गंदी लड़की की आवश्यकता है" मालिक के इस तरह के जवाब पर कलमंजरी अचंभित थी। कलमंजरी ने पंखे की तरफ़ दृष्टि डाल कुछ अनुभव किया और उस अनुभव को मन में दबाकर उसने प्रश्न किया, "मालिक, गंदी लड़की मतलब, गंदा-मटमैला वस्त्र, गंदे बाल, बदबूदार बदन, आँखों में ढेर सारा कीचड़, यही न?"
मालिक की वासनात्मक दृष्टि कलमंजरी के दुपट्टे के पीछे तक गड़ गयी थी, चेहरे पर हल्की सी मुस्कान तैर गई थी। कलमंजरी ने अपना दुपट्टा ठीक करते हुए कहा, "हमको इस नौकरी की आवश्यकता है, मैं हुबहू ऐसा ही रूप बनाकर काम किया करूँगी और शिकायत का कभी कोई मौक़ा नहीं दूँगी।"
नौकरी के दो-तीन दिन समझाने वाली हरकत को समझने में लग गए। अचानक से ऑफ़िस के लोगों ने सुनी मालिक की आवाज़, "निकालो इस गंदी लड़की को ऑफ़िस से, पूरे कैम्पस से इसका काम छुड़वा दूँगा।"
इकट्ठा हो चुके कर्मचारियों ने, मालिक के एक तरफ़ के लाल हो चुके गाल पर उँगलियों के निशान और सफ़ाई वाली लड़की के गर्व से भरी चमकदार आँखों को देखकर, गंदी लड़की के स्वच्छ मन को महसूस किया।
मालिक के थप्पड़ खाए हुए गाल अब भी उसके मन की अथाह गंदगी को बयान कर रहा था।
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पाण्डेय सरिता 2021/09/16 11:34 AM
बेहद संवेदनशील