अन्नदाता
कथा साहित्य | लघुकथा राजीव कुमार1 Apr 2023 (अंक: 226, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
आज अन्नदाता स्वयं भूखे मरने की स्थिति में था। आवश्यकता पड़ने पर हर दरवाज़े को बंद पाया। मरता क्या न करता, उसने आवाज़ लगा का बनावटी अंदाज़ में कहा, “पता नहीं मेरे बाद इन चावल, गेहूँ का क्या होगा, सड़ ही जाएगा।”
यह आवाज़ दरवाज़े को भेदती हुई मन-मस्तिष्क पे दस्तक दे गई। अब तो सारे घरवाले पका हुआ भोजन लेकर दौड़ गए और उस अन्नदाता की जान बच गई।
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