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पारी

 

अपनी-अपनी पारी ख़त्म कर चुके पुत्रों को निशचिंतता का आभास हुआ। साथ ही अब जिसकी पारी थी, उसकी तरफ़ से आनाकानी और ऊब का एहसास भी भाइयों के मन से बाहर निकलकर, उन सबों की पत्नियों तक बात पहुँची। सब भाइयों के घर में कोलाहल और अशांति का माहौल पनपा। 

उन पुत्रों के पिता हतप्रभ थे और आज बहुत दिनों के बाद स्वर्गवासी पत्नी को याद कर रो रहे थे। 

उन्होंने कहा, “अब छोटू के घर नहीं जाऊँगा, सोचता हूँ कि गाँव ही चला जाऊँ। बड़े भइया की मँझली बहू ने कहा था कि हमलोग भी अच्छे से ख़्याल रखेगे आपका, ज़मीन-जायदाद की चिन्ता से भी मुक्त हो जाऊँगा।”

इतना सुनते ही तीसरे के घर से खलबली बढ़कर सभी बेटों तक गई और फिर सभी पुत्रों की पारी नियमित और सुचारु हो गई। 

अब सेवा भाव पहले से दो-तीन गुना ज़्यादा उमड़ पड़ा।

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