वस्त्रदान समारोह
कथा साहित्य | लघुकथा राजीव कुमार15 May 2021 (अंक: 181, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
बहुत सारे लोग इकट्ठे हो गए थे, विधायक जी आज वस्त्र दान करने वाले हैं यह सुनकर, चापलूसों के संग लोगों ने भी तालियाँ बजाकर विधायक जी का अभिवादन किया। चापलूस लोग एक स्वर में "विधायक जी की जय, विधायक जी की जय!" के नारे लगा रहे थे। विधायक जी फूल-फूलकर गर्मजोशी से भाषण देने लगे, उन्होंने कहा, "नहीं चाहिए मुनक्का मेवा, हमको तो चाहिए जनता की सेवा।" फोटोग्राफर्स ने दर्जनों क्लिक किए, कैमरे का एंगिल जनता की तरफ़ भी घूमा। अभी लोगों का आना जारी था, सो दो लड़कियों अचानक मंच पर आकर माइक पे बोलना शुरू किया, "वस्त्रदान समारोह वाक़ई क़ाबिले तारीफ़ है, इनकी जय-जयकार होनी ही चाहिए; लेकिन इन्होंने मेरी तरह कितनों के कपड़े उतरवाए होंगे, इसका भी ईनाम इनको मिलना चाहिए।"
पहले से ही पसीने से लथपथ हो चुके विधायक जी कि आँखें शर्म से झुक चुकीं थीं।
चापलूसों ने कहना आरम्भ किया, "विपक्षी पार्टी की चाल है ये।"
लेकिन जनता अपनी कुर्सी से खड़ी हो गई। अब विधायक जी नंगे प्रतीत होने लगे।
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