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राजीव कुमार – ताँका – 004


1.
बढ़ा नहीं वो
मुश्किल हालात
लड़ा नहीं जो
ठोकरों से जो डरा
मंज़िल दूर खड़ा। 
 
2.
देखा मंज़र
अपनों ने उठाया
हाथ ख़ंजर
पूछता रहा ख़ता
कर दिया लापता। 
 
3.
पथ पे चला
बदल न फ़ैसला
हिम्मत मत हार
आएगा कभी-कभार
भाटा और ज्वार। 
 
4.
मुद्दा भटका
फ़ैसले के बग़ैर
राह अटका
होती जो खिंचातानी
शर्मिंदा, पानी-पानी। 
 
5.
सहते रहे
ज़ुल्म और सितम
कम से कम
आवाज़ जो उठाते
मुँह की नहीं खाते। 
 
6.
मोती के जैसी
ओस से भीगी घास
देखना रास
स्वास्थ्य से है नाता
नेत्र ज्योति बढ़ाता। 
 
7.
शिकारी ज़ख़्मी
घायल है शिकार
यही है प्यार
दर्द का सिलसिला
प्यार बढ़ाता चला। 
 
8.
मन परिंदा
फड़फड़ा कर भी
रहा है ज़िन्दा
रोना है मुश्किल
हँसना है आसान। 
 
9.
तीर चलाता
साँझ और सवेरे
दिल पे मेरे
ज़िन्दा छोड़ता नहीं
मारता है भी नहीं। 
 
10.
लोग मामूली
बहुत बाहुबली
ठाने अगर
मज़बूत जिगर
ताक़त बेहतर। 
  
11.
नहीं आराम
मंज़िल से पहले
चलना काम
तुम न मजबूर
मंज़िल नहीं दूर। 

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