ऑफ़िशियल विज़िट
कथा साहित्य | लघुकथा राजीव कुमार15 Sep 2019
नए पदाधिकारी का पहला ऑफिसीयल विज़िट था। उनको अपने सारे कर्मचारियों से इन्टरेक्ट करना था। सारे कर्मचारी ऑफ़िसर की आवाभगत में लगे हुए थे। किसी को ख़ुद का ट्रान्सफर रुकवाना था तो किसी को अपना प्रमोशन करवाना था। सारे कर्मचारी सज-धज कर आए थे। सिनीयर कर्मचारी ने अपना लेपटॉप ऑन किया और पदाधिकारी से बोले, "देखिये सर, मेरा परर्फ़ोमेन्स रिकॉर्ड बहुत अच्छा है। सारे कर्मचारियों का एटेनडेन्स भी पूरा-पूरा है।"
विज़िट पर आये पदाधिकारी ने टाइपिस्ट अंजली की तरफ़ देखकर बोले, "वेरी गुड। आई लाईक ईट।"
लंच और डिनर का भी अच्छा प्रबंध किया गया था, सारे कर्मचारियों ने मिलकर सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया, कविता-पाठ, नाच-गाना सब कुछ था। पदाधिकारी का पूरा ध्यान टाइपिस्ट अंजली पर ही था। चपरासी नीलकमल ने पदाधिकारी को फोन पर बात करते सुना कि "इंतजाम कुछ ख़ास नहीं था।" पदाधिकारी की नज़र चपरासी पर पड़ते ही वो सकपका गए और चपरासी भी डर गया। चपरासी ने डरते हुए पूछा, "क्या साहब? मेरा हाँ, मेरा नहीं।" प्रश्न चपरासी के गले से बाहर नहीं आ पाया।
पदाधिकारी ने आँख मारते हुए कहा, "कुछ हो सकता है तो जुगाड़ करो।"
चपरासी ने जवाब दिया, "मुश्किल है, फिर भी कोशिश करता हूँ।" बोलकर बाहर चला गया।
सारे नए-पुराने यह जानकर हैरान हैं कि प्रमोशन सिर्फ़ चपरासी और टाइपिस्ट का ही क्यों हुआ?
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