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आज अचानक नेहा को सामने खड़ी देखकर मयंक ने सिर से पाँव तक उसको निहारा और फिर मयंक ने नज़र फेर ली। नेहा भी मन मसोस गई यह सोचकर कि जो मयंक आज पहचानने से इन्कार कर रहा है; वो मेरी मदद क्यों करेगा भला? नेहा को मदद की आवश्यकता थी सो उसने पूछा, “कैसे हो मयंक?”

मयंक ने जवाब देना तो दूर, उसकी तरफ़ देखना भी मुनासिब नहीं समझा। 

नेहा ने अब सीधे तौर पर कहा, “तुम्हारी मदद चाहिए।” 

मयंक को शिकायत करने और बदला लेने का पहला और नायाब मौक़ा हाथ लगा सो उसने कहा, “मैं तुम्हारी किसी भी प्रकार की मदद नहीं करूँगा, तुमने क्लासरूम में अपनी बेंच पर हमको स्थान नहीं दिया था और रोहन को अपने पास बिठा लिया था, अब जाओ रोहन से मदद माँगो।” 

नेहा ने ’उफ़’ कहके अपना सिर पीट लिया, साथ ही क्लासरूम की ढेर सारी यादें उसके मन-मस्तिष्क में ताज़ा हो आई और गुदगुदा गईं। नेहा ने कहा, “ये तो तब की बात थी, अभी तक याद है और ग़ुस्सा हो? हमको अफ़सोस है उस बात का।” अपनी आँखों में चमक और चेहरे पर मुस्कान लिए वो मयंक को निहारने लगी। 

मयंक ने कहा, “तुम्हारे बेंच पर थोड़ा सा स्थान ही तो माँगा था, नहीं मिलने पर कितना रोया था, मालूम है तुमको?” 

मयंक की कही यह बात नेहा के पाँचों इन्द्रियों ने सुनी और गहराई तक महसूस किया। 

मयंक की आँखों में झाँक कर नेहा ने कहा, “चलो रहने दो मदद को, अपने बेंच पर, अपने साथ बिठाने के लिए तुमको स्थान नहीं दिया था, मगर अब से अपने दिल में आराम करने का स्थान तुमको देती हूँ।” 

नेहा के दिल में उठी तरंग ने मयंक के दिल के तारों को छेड़ कर प्रेम का मधुर संगीत पैदा कर दिया था। 

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