संकल्प या विकल्प
कथा साहित्य | लघुकथा राजीव कुमार1 Feb 2021 (अंक: 174, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
संकल्प ने चलना शुरू किया, गति तीव्र होती गई। हौसलों का हलुवा, भरपूर ठूँस लिया था उसने, मंज़िल की प्यास से गला सूखा जा रहा था और रह-रह कर हिचकी भी आ रही थी।
घने जंगल से गुज़रते समय, संकल्प की मुलाक़ात नेकनीयती से हुई, बातचीत के क्रम में नेकनीयती ने कहा, "लो पी लो इसको, इसका एक-एक घूँट तुम्हें शक्ति प्रदान करता रहेगा, क्योंकि इसमें मेरा ख़ून-पसीना मिला है।" नेकनीयती ने ख़ुशक़िस्मती के कई क़िस्से भी सुनाए। चोटी पर पहुँचने से पहले तक हौसलों का ठूँसा गया हलुवा उसको शक्ति प्रदान कर रहा था।
अचानक उसके हाथ से उम्मीद की पोटली नीचे गिर गई और लुढ़कते-लुढ़कते समतल धरती पर जा टिकी।
अब हताशा, निराशा और उधेड़-बुन में पड़े संकल्प की मुलाक़ात बदनीयती से हो गई और उसने सांत्वना देते हुए कहा, "रास्ता बदल कर इधर से चलो, ढलान पर मेरा घर है, उम्मीद की ऐसी हज़ारों पोटलियाँ तुम्हें दे दूँगा।" लेकिन चतुर बदनीयती ने अपने सगे भाई बदक़िस्मती के चाल-चलन के बारे में संकल्प को भनक तक नहीं लगने दी और कायाकल्प से मुलाक़ात करवाने का भी वादा किया अब संकल्प, बदनीयती के सुझाए मार्ग पर चलने लगा तो आप-रूपी बदक़िस्मती उसका साया बन गया।
संकल्प की नज़र दूर खड़ी मंज़िल पर पड़ी तो, मंज़िल ने नज़र फेर ली, क्योंकि संकल्प की काया विकल्प में बदल चुकी थी। संकल्प की प्यास जस की तस बनी रही।
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