माँ को याद करती हूँ
काव्य साहित्य | कविता मंजु आनंद15 Apr 2024 (अंक: 251, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
माँ आज फिर तुम्हारा ख़्याल आया है,
आज फिर तुम्हारे हाथों से बने,
कढ़ी चावल का स्वाद,
मेरे मुँह मे पानी भर लाया है,
यादें मुझे ले गई कई बरस पीछे,
रसोई से जैसे ही आती ख़ुशबू कढ़ी पकने की,
क़दम दौड़ पड़ते रसोईघर की ओर,
ललचाई नज़रें धीरज खोने लगती,
माँ कढ़ी जल्दी बनाओ ना,
चूहे पेट मे मचा रहे हैं उधम,
डाल माँ के गले मे बाँहें,
मै माँ से लिपट जाती,
मिटती घड़ियाँ इंतज़ार की,
माँ थाली मे परोस कर गर्मागर्म कढ़ी चावल,
बड़े ही लाड़ दुलार से मुझे खिलाती,
जब मैं कहती आज मिर्ची थोड़ी ज्य़ादा डाली है,
तो माँ झूठा ग़ुस्सा दिखलाती,
माँ के साथ ऐसी खट्टी मीठी नोक झोंक,
का अपना ही अलग मज़ा था,
माँ चली गई दुनिया छोड़कर,
चला गया उनके हाथों का स्वाद भी,
माँ को याद करती हूँ तो याद आ जाते हैं,
माँ के हाथों से बने स्वादिष्ट कढ़ी चावल,
माँ आज फिर तुम्हारा ख़्याल आया है।
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