मनमौजी
काव्य साहित्य | कविता मंजु आनंद1 Sep 2021 (अंक: 188, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
मैं हूँ मनमौजी, अपने मन का मौजी,
अपनी ही दुनिया में रमा रहूँ,
अपनी ही कहूँ, अपनी ही सुनू,
मैं हूँ मनमौजी!
ना समझ सकूँ मैं छल कपट दुनिया के,
इन सबसे मैं दूर रहूँ,
मैं हूँ मनमौजी!
हो चाहे अनजानी डगर,
चलूँ झूमता, हो जैसे कोई मस्त मलंग,
मैं हूँ मनमौजी!
मन रहे मेरा बावरा सदा ही,
कभी रहे मौन, तो कभी शोर करे,
मैं हूँ मनमौजी!
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