अब आगे क्या होगा
काव्य साहित्य | कविता मंजु आनंद15 Jul 2022 (अंक: 209, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
उम्र बढ़ रही है बढ़ रही हैं चिंताएँ कई,
अब काया भी कमज़ोर हो रही है,
थक जाता है शरीर जल्दी ही,
कल क्या होगा सताने लगा है यह डर भी,
कभी सोचती हूँ क्या सच में बुढ़ापा आ गया है,
या देख रही हूँ सपना कोई,
घबरा जाती हूँ देख बदलता हुआ चेहरा,
देख आँखों के नीचे गहरे होते गड्ढे,
दिखता है धीरे-धीरे झुर्रियों से घिरता हुआ अपना चेहरा
बालों की सफ़ेदी हिलते दाँत धुँधली आँखें,
अचानक यह क्या हो रहा है,
आगे का जीवन कैसा होगा,
सताने लगी है चिंता यही,
फिर मन को यह कह कर करती हूँ शाँत,
अब जो होगा आगे देखा जाएगा,
बचपन निकल गया भाग गई जवानी भी,
दी है दस्तक बुढ़ापे ने अगर,
जीना तो पड़ेगा ही,
पार कर लिए हैं पड़ाव कई,
अब तो उम्र का यह आख़री पड़ाव है
मगर मन को कितना भी समझा लूँ,
मन की सूई एक सोच पर आकर अटक ही जाती है,
अब आगे क्या होगा?
उम्र बढ़ रही है बढ़ रही हैं चिंताएँ कई।
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