मायाजाल
काव्य साहित्य | कविता मंजु आनंद15 Oct 2021 (अंक: 191, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
रिश्तों का यह कैसा मायाजाल है,
हर कोई है व्याकुल, हर कोई बेहाल है,
मृगतृष्णा-सा जी रहा है जीवन हर कोई,
कब क्या घटित हो जाए जीवन में,
हर कोई इस बात से अंजान है,
चारो तरफ़ है भीड़ का रेला,
फिर भी हर कोई है अकेला,
नहीं रहा रिश्तों में अब मान और सम्मान है,
अब शायद ही कोई होगा ऐसा,
जिसे सच्चे रिश्तों की पहचान है,
रिश्तों का यह कैसा मायाजाल है।
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