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माँ मेरे आँसुओं को देखती ही नहीं पढ़ती भी थी

 

माँ मेरे आँसुओं को देखती ही नहीं पढ़ती भी थी, 
मेरे आँसुओं पर माँ को दिख जाते थे, 
दो शब्द लिखे हुए ख़ुशी और ग़म, 
देखते ही तुरंत पढ़ लेती माँ, 
यह ख़ुशी है या ग़म, 
भले ही छुपाना चाहूँ मैं कितना ही इन्हें, 
चेहरा मेरा कितना ही ख़ुश दिखाई दे रहा हो, 
दुख की झलक माँ देख ही लेती थी मेरे चेहरे पर, 
माँ भी बहुत चालाकियाँ सीख गई थी, 
मेरे सामने बनी रहती थी नासमझ सी, 
मेरी हर बात को सही मान हाँ कह देती थी, 
मगर जानते थे मैं और माँ दोनों ही, 
चोरी पकड़ी गई है अब हमारी, 
फिर माँ मुझे प्यार से लगा लेती गले, 
आँखें हो जातीं हम दोनों की नम, 
माँ मेरे आँसुओं को देखती ही नहीं पढ़ती भी थी। 

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