जीवन की शाम
काव्य साहित्य | कविता मंजु आनंद15 Sep 2021 (अंक: 189, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
ना जाने कब हो जाए इस जीवन की शाम,
भाग रहा है, कितना भागेगा,
कर ले पंथी तू थोड़ा विश्राम,
ना जाने कब हो जाए इस जीवन की शाम,
जीवन भर तू उलझा रहा,
राग-द्वेष, काया-माया के मोहजाल में,
किस बात का करता है तू अभिमान,
ना जाने कब हो जाए इस जीवन की शाम,
गठरी रुपए-पैसे की कब तक रखेगा बाँध,
उड़ जाएगा बन कर पंछी, छोड़ इक दिन अपना धाम,
ना जाने कब हो जाए इस जीवन की शाम,
कर्म ही तेरा सच्चा साथी, कर्म ही तेरी पहचान,
जीवन को तू सफल बना ले, कर कुछ अच्छे काम,
न जाने कब हो जाए इस जीवन की शाम...
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पाण्डेय सरिता 2021/09/13 01:33 PM
बहुत बढ़िया