गोल गोल गोलगप्पे
काव्य साहित्य | कविता मंजु आनंद15 Jun 2022 (अंक: 207, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
गोल गोल गोलगप्पे आटे के सूजी के,
सबके मन को भाते हैं,
बच्चे जवान या हों बूढ़े,
सभी चाव से खाते हैं,
दिख जाए कहीं भी गोलगप्पे का ठेला,
क़दम चलते-चलते रुक ही जाते हैं,
कोई खाता है तीखे तीखे,
कोई खट्टे मीठे इमली सौंठ पुदीने के पानी वाले,
कोई खाए सूजी के तो कोई कड़क आटे वाले,
जब तक गोलगप्पे वाला गोलगप्पे तैयार करता है,
मुँह में पानी भर-भर आता है,
खाकर दो चार गोलगप्पे लगता है ऐसे,
तृप्त हो गई हो आत्मा जैसे,
इनके हैं नाम कई,
कोई कहता पानी पूरी कोई पानी के बताशे,
कोई पुकारे इन्हें पुचका गुपचुप के नाम से,
नाम कोई भी हो है तो यह हमारा आपका सबका,
मनपसंद गोलगप्पा ही,
तो आप भी बाज़ार जाए अगर,
तो खा ही लिया कीजिए बेझिझक होकर,
गोल गोल गोलगप्पे।
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