उम्र का यह दौर भी . . .
काव्य साहित्य | कविता मंजु आनंद1 Mar 2022 (अंक: 200, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
उम्र का यह दौर भी ख़ूबसूरत है,
उम्र के इस पड़ाव पर आकर,
रखने लगे हैं ख़्याल एक दूजे का,
कुछ ज़्यादा ही हम-तुम,
तुम मुझे पकड़ा देते हो चश्मा मेरा,
मैं तुम्हें तुम्हारी छड़ी पकड़ा देती हूँ,
मैं रसोई में जब भोजन पकाती हूँ,
तुम मेज़ पर सारे बर्तन लगा देते हो,
थक जाती हूँ जब मैं,
तुम मुझे उठाते हो देकर सहारा अपना,
कभी कभी तो बाल भी मेरे सँवार देते हो,
करते हो मीठी-मीठी बातें भी,
अब तुम कुछ ज़्यादा ही,
अब मेरे लिए फ़ुर्सत के पल भी,
तुम निकाल ही लेते हो,
कभी-कभी याद कर पुराने हसीन लम्हों को,
हम तुम मुस्कुरा देते हैं बस यूँ ही,
अब ना रही है वह पहले जैसी ख़ूबसूरती,
ना ही रही वह पहले-सी जवानी,
फिर भी साथ हैं अगर हम-तुम,
हो पल ख़ुशी के या फिर आए कोई ग़म,
लेकर हाथों में हाथ इक-दूजे का,
पूरा कर ही लेंगें उम्र का यह दौर भी हम-तुम,
उम्र का यह दौर भी ख़ूबसूरत है।
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