एक गृहणी
काव्य साहित्य | कविता मंजु आनंद15 Apr 2022 (अंक: 203, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
अहमियत एक गृहणी की भी कम नहीं होती,
चाहे बाहर जाकर नहीं कमाती,
मगर घर अपना सुचारु रूप से फिर भी है चलाती,
कभी राशन की सूची तैयार करती है,
तो कभी दूध वाले, प्रेस वाले का हिसाब रखती है,
सुबह शाम बाज़ार जाकर रोज़मर्रा के सामान लाती है,
अपने बच्चों का लालन-पालन करती है,
घर के हर एक सदस्य की ज़रूरतों को,
पूरा करने की कोशिश करती है,
पति की कमाई से जैसे तैसे बचत भी,
एक गृहणी कर ही लेती है,
पढ़ी लिखी है अगर तो,
अपने बच्चों को स्वयं पढ़ाती है,
ट्यूशन का ख़र्च भी बचा लेती है,
रहती है घर पर इसलिए,
घर के सभी सदस्य गर्म और ताज़े भोजन का,
ले सकते हैं आंनद भी,
रखती सबकी सेहत का ध्यान भी एक गृहणी ही,
अपना सारा जीवन अपने घर को,
कर देती है समर्पित एक गृहणी,
सारा घर रहता है जिसका ऋणी,
वो तो है एक गृहणी ही,
अहमियत एक गृहणी की भी कम नहीं होती।
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shaily 2022/04/14 11:29 PM
अहमियत तो बहुत होती है, पर मानता कौन है? उसे तो घर पर रहने वाली पति की आमदनी को बर्बाद करने वाली कि तरह माना जाता है