प्यार की पोटली
काव्य साहित्य | कविता मंजु आनंद15 Jun 2024 (अंक: 255, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
मेरी माँ के पास थी,
एक प्यार की पोटली,
भर कर रखती थी माँ,
प्यार उस पोटली में ढेर सारा,
रोज़ खोलकर झाँक लेती थी मैं,
माँ की उस पोटली को,
कहीं कम तो नहीं हो रहा माँ का प्यार,
कहीं गुम ना हो जाए प्यार की यह पोटली,
बस यही चिंता हर पल मुझे सताती थी,
माँ अपनी वह पोटली रोज़ खोल देती,
उड़ेल देती प्यार अपना मुझ पर ढेर सारा,
एक दिन माँ चली गईं,
बन गई आसमान का एक तारा,
गुम हो गई वह प्यार की पोटली,
फिर ना जाने कहाँ,
मेरी माँ के पास थी,
एक प्यार की पोटली।
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