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ढूँढ़ती हूँ भीड़ में

ढूँढ़ती हूँ भीड़ में मैं आज भी एक चेहरा, 
हैं कई लोग इस भीड़ में मगर, 
ढूँढ़ रही हैं निगाहें मेरी उसी एक शख़्स को, 
जो मिला था कभी इसी भीड़ में मुझे, 
फिर खो गया कहीं, 
ढूँढ़ती हूँ रोज़ आकर यहीं, 
शायद इसी भीड़ में, 
वो मुझे मिल जाए कहीं, 
फिर सोचती हूँ, 
उम्र ने उस पर भी तो असर अपना दिखाया होगा, 
आ गई होगी सफ़ेदी उसके भी बालों में अब तक, 
चेहरा भी कुछ-कुछ गया होगा बदल, 
निगाहें भी पहचान ना पाई तो मैं क्या करूँगी, 
दिल मेरा बोल उठा तभी, 
क्यों तुम घबराती हो, 
निगाहें चाहे ना पहचानें तुम्हारी, 
मैं तो उसे पहचान ही लूँगा, 
दिल हूँ तुम्हारा, 
कभी ना तुमसे विश्वासघात करूँगा, 
चल उठ और हो जा इस भीड़ में शामिल हो कर बेफ़िक्र, 
ढूँढ़ती हूँ भीड़ में। 

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