हर किसी को हक़ है
काव्य साहित्य | कविता मंजु आनंद1 Apr 2022 (अंक: 202, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
हर किसी को हक़ है,
अपने मुताबिक़ ज़िन्दगी जीने का,
फिर क्यों कोई ग़ुलाम तो कोई,
बादशाह बन जाता है,
कोई होता है ताबेदार किसी का,
तो किसी के सर पर ताज होता है,
कोई फेंके हुए टुकड़ों पर पलता है,
तो कोई सोने चाँदी की थाली में सजे,
पकवानों का स्वाद चखता है,
कोई किसी की उतरन पहन तन ढकता है,
तो कोई क़ीमती रेशमी पोशाक पहन,
फूला नहीं समाता है,
आख़िर ऐसा क्यों होता है?
फिर भी सुना है सभी को यही कहते,
अपने मुताबिक़ ज़िन्दगी जीने का,
हर किसी को हक़ है।
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