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कन्यादान

जब आई घड़ी कन्यादान की, 
बाँध सर पर पगड़ी आँखों में अश्रु भर कर, 
काँपते हाथों से पकड़ा पिता ने अपनी बिटिया का हाथ, 
मंत्रोच्चारण के बीच उठने लगे, 
पिता के अंतर्मन में अनगिनत सवाल, 
मन ही मन पिता सोचने लगा, 
आज जिसे सौंप रहा हूँ मैं अपना अनमोल रत्न, 
क्या यह उसकी हिफ़ाज़त कर पाएगा, 
मिलेगा मेरी बिटिया को उतना ही मान सम्मान, 
जितना उसे मैंने है दिया, 
कर सकेगी बिटिया मेरी, 
क्या खुलकर अपने मन की हर बात, 
क्या यह निभा पाएगा, 
अग्नि के समक्ष लिए सभी वचन, 
मन ही मन करता यही विचार, 
पिता दे देता है उस युवक के हाथ में, 
अपनी बिटिया का हाथ, 
करता है प्रार्थना ईश्वर से हाथ जोड़कर, 
रहे हमेशा इन दोनों का जन्म-जन्म का साथ, 
देते हुए ढेरों दुआएँ कर देता है अपनी प्यारी बिटिया का कन्यादान, 
धूमधाम से फिर विदा कर देता है पिता अपनी लाड़ली को, 
जब आई घड़ी कन्यादान की। 

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