स्मृतियों में हार्वर्ड
ऐतिहासिक बोस्टन तथा उसके उत्तरांचल वासी
हार्वर्ड विश्वविद्यालय में एक साल रहने के समय मैं कई बार बोस्टन शहर की अलग-अलग जगहों पर घूमा हूँ। विश्वविद्यालय से जब भी बाहर जाता हूँ तो मुझे बोस्टन शहर की दो चीज़ें ज़रूर याद रहती हैं। पहली बोस्टन की ‘चाय-पार्टी’(Boston Tea Party), जो आधुनिक अमेरिकन सभ्यता की एक नींव की ईंट है। दूसरी, वही नॉर्थ एंडर्स, जिसे छोटी सिसिली और इटली का छोटा रूप कहा जाता है, क्योंकि अति सरल, विशाल बोस्टन शहर की यह एक वर्गमील जगह ही मूलतः बोस्टन है कलकत्ता के सूतानटी की तरह। सन््् 1630 सदी में यहाँ उत्तर सीमांत का निर्माण हुआ था। यूरोप से बहुत सारे लोग यहाँ आए थे। पहले-पहल अँग्रेज़ लोग, फिर अमेरिकन, उसके बाद आयरिश, फिर यहूदी। सन्् 1870 से इटली के लोग यहाँ प्रवास करने लगे। उसके पीछे कई कारण थे जैसे दक्षिण इटली में ग़रीबी का होना, रोग एवं अस्वास्थ्यकर परिवेश, प्राकृतिक विपदाएँ, आर्थिक एवं राजनैतिक अत्याचार। अनेक इतिहासकारों का मानना है कि दक्षिण इटली से बोस्टन उत्तर-सीमांत की यह यात्रा एक प्रकार का बहिष्करण थी। सन्् 1876 से 1976 तक अर्थात् सौ साल के भीतर लगभग 250 करोड़ से ज़्यादा लोग अपना देश छोड़कर बोस्टन शहर के उल्लेखनीय अंश बन गए।
सी.आई.एफ़.ए. में मेरे इटालियन मित्र ने मुझे इस जगह पर एक बार घुमाया था। इसलिए मैं उनका कृतज्ञ हूँ। सँकरी गलियाँ, उपगलियाँ, प्रसिद्ध पाग्लिअका इटालियन रेस्टोरेंट, इटालियन खाने की सुगंध, इटालियन सिगार, वायोलिन, बेंजो पर इटालियन गाने, ताली बजाने में भाग ले रहे आदमियों को देखना मेरे लिए एक सौभाग्य की बात थी। अचानक एक आदमी गिटार या वायोलिन लेकर रास्ते में आ जाता है, धीरे-धीरे पहुँच जाते हैं उसके पीछे एक-दो, फिर होते-होते पंद्रह-बीस आदमी और औरतें। सभी के होंठों पर गीतों की थिरकन, हाथों से तालियों का गुंजन और चेहरे पर ख़ुशी के भाव। छोटे-छोटे ड्रम बजाते तथा अपने तरह-तरह की शारीरिक भाव-भंगिमाओं का प्रदर्शन करते। पुराने इतिहास को वे याद दिलाते हैं। बहुत बुज़ुर्ग लोग अपनी-अपनी अनुभूतियाँ तथा दूसरे अपने माँ, पिताजी, दादा-दादी से सुनी सुनाई कहानियों को दोहराते हैं। दक्षिण इटली के असहनीय परिवेश से वे यहाँ आए थे। यहाँ भी जीवन जीना उसके लिए घी अथवा मधु के समान नहीं था। पहले-पहल उन्हें अनेक कष्ट सहने पड़े हैं। केवल दूसरों का अत्याचार या शोषण नहीं था, बल्कि अपने आपको एक नए परिवेश में ढ़ालना तथा अपनी गोष्ठी की स्वतन्त्रता को बचाए रखना किसी काव्य-शैली से कम नहीं था। एक व्यक्ति के शब्दों में “इस नई जगह पर अलग वातावरण में सभी इटालियन हो गए थे, मानो एक परिवार हो।” सन् 1930-40 के दशक के दौरान यहाँ लगभग 42000 लोग आए थे जिसमें से लगभग 40000 इटालियन थे। मेरे वार्तालाप (1987-88) तक यह संख्या घटकर लगभग 20000 तक रह गई थी। उसके अलावा अनेक टूरिस्ट थे। हमारी तरह के बाहरी दर्शक अथवा हार्वर्ड बोस्टन विश्वविद्यालय और एमआईटी से रेस्टोरेंट में खाना खाने का मज़ा लेने आते युवक-युवतियाँ।
बोस्टन पोताश्रय, अक्टूबर महीने की शुरूआती ठंड और बीच-बीच में चमकता सूर्य-इन सब चीज़ों को पीछे छोड़कर मैं कई बार हानोवर स्ट्रीट में गया हूँ, बोस्टन के औपनिवेशिक ढाँचे से सन्ी बड़ी-बड़ी कोठियों में इटली-सिसली की महक को मैंने अनुभव किया है। किसी ने कहा, “अपने घर में हम सिसिलियन, भाषा भी वही, खाना भी वही-मगर बाहर में अमेरिकन-इस देश के साथ क़दम से क़दम मिलाकर चलते हैं।”
मेरे एक लेखक बंधु ने एक बुज़ुर्ग सिसिलियन का उदाहरण देते हुए हमें हँसाया था, “मैं इस खाने के टेबल के पास में मरना चाहूँगा, सामने पड़ी होगी बड़ी प्लेट भरी लासाग्ने और दोनों तरफ़ रखे होंगे बड़े-बड़े मांस-कबाव।”
हो सकता है वह और भी कुछ जोड़ सकते थे “दूर से सुनाई पड़ रहा होगा गिटार या वायोलीन पर इटालियन संगीत के स्वर।” होनोवर स्ट्रीट के जोहनी और गिनो हरी स्टाइलिंग दुकान पर मेरे मित्र तथा उनकी पत्नी ने एकाध बार बाल कटवाये हैं। (शायद सजवाये हैं, शब्द ठीक रहेगा)। मैंने हार्वर्ड में रहते समय सस्ती दुकानों पर ही बाल कटवाए हैं।
ग्रीष्म समारोह के समय यह उत्तर सीमांत अद्भुत परीलोक की तरह सजता है। सेंट एंटनी तथा दूसरे संतों की पूजा-आराधना के साथ-साथ नाच-गीत से रास्ते भर जाते थे। कई दिनों तक वही तीसरी-चौथी पीढ़ी के सिसिली के निवासी उत्साह से कल्पना और सपनों में इटली का निर्माण करने लगते हैं। दूसरे विश्वयुद्ध में लड़ाई में भाग लिए कोई पुराने बुज़ुर्ग आनंद से ताश खेलते हैं, तमाशा देखते हैं, अपने देश की प्रसिद्ध वाइन पीते हैं और अपनी यादों को तरोताज़ा करते हैं।
उत्तर सीमांत अंचल में चार्ल्स नदी, बोस्टन का पोताश्रय और ‘जॉन फिजगेराल्ड एक्सप्रेस वे‘ द्वारा सीमाबद्ध है। लेखक इरला ज़्विंगल के शब्दो में “The North End is a complex breed composed of Mediterranean emotion, Yankee drive, and seemingly limitless passion for their own.”
कापूचिनो, पास्ता, लाज़ानिया, लम्बे-लम्बे वास्तानों ब्रेड, तरह-तरह के फल-केक, वाइन, गपशप, ताश, गीत और वाद्य। ‘शरीर भले यहाँ हो, मगर आत्मा इटली में।’ किसी ने कहा।
जो बूढ़े हो गए हैं, उनमें से कुछ सोचकर कहने लगे, “हम अपने भाग्य से सहन कर रहे हैं दो प्रकार के निर्वासन। पहला, हम अपने अतीत, देश और संस्कृति से कोसों दूर। दूसरा, हमारे अपने बच्चों के नूतन भविष्य को लेकर, जिसमें हम अपने आप को ढाल नहीं पाते।” मुझे उस समय ऐसा लगा, हो न हो, अमेरिका में बसे किसी बुज़ुर्ग भारतीय आदमी की भी यही दारुण आत्मकथा होगी।
अनेक लोगों की वेशभूषा में रेशमी टाई, शर्ट और इटालियन सूट, पतला, सुंदर तथा साधारण पेंट-शर्ट। सर्दी आने पर स्वेटर और ओवरकोट प्रयोग में लाने लगते हैं।
बोस्टन में सर्दी के दिन बड़े दुखद होते हैं। उत्तर से बहने वाली ठंडी हवाओं के कारण वहाँ का तापमान शून्य से बीस डिग्री नीचे तक चला जाता है। जिसे विंड चिल फ़ेक्टर कहा जाता है। ओवरकोट, सूट, अंदर में शर्ट और ऊनी गंजी, मफ़लर लगाकर अपार्टमेंट से विश्वविद्यालय के तीन फर्लांग रास्ते में कई बार ठिठुरती ठंड से काँपा हूँ, आँखों से पानी गिरा है। उत्तर सीमांत बोस्टन के निवासी दक्षिण इटली भूमध्य सागरीय जलवायु तथा सूरज को सर्दी की ऋतु में ख़ूब याद करते हैं। स्थानीय लोगों की अंग्रेज़ी भाषा में नेपोलियन, सिसिलियान, वेनिसयान के स्वर ज़्यादा ही विचित्र सुनाई देते हैं।
हाँ, एक वह भी समय था जब वे अंगूर ख़रीदकर वाइन बनाते थे, अपने लिए ब्रेड-केक तैयार करते थे। कभी-कभी दूसरों के साथ भयंकर लड़ाई भी हो जाती थी। इटालियन और आयरिशों में फिर आवेगपूर्ण, मेल-जोल वाले, साथी-प्रिय, क्रोधी व्यक्तियों पर नज़र रखी जाती थी। एक वर्ष वहाँ रहते समय ऐसी ख़बरें ‘बोस्टन ग्लोब’ में कई बार पढ़ने को मिलती थीं।
वे बुज़ुर्ग लोग बैठे-बैठे अपने अतीत को बहुत ज़्यादा याद करते थे। अतीत कितना सुंदर था! वास्तव में, सारे सुख-दुख हमारे सामाजिक जीवन में होने के बाद भी हम आराम से दुख को भूल जाते थे तथा आमोद-प्रमोद से जीवन बिताते थे। अब अपने देश अर्थात् इटली जाने पर भी वहाँ के स्थानीय निवासी हमें अपना आदमी समझना तो दूर की बात, सोचने लगते हैं इटली घूमने आए हम अमेरिकन टूरिस्ट हैं। उत्तर-सीमात में रेस्टोरेंटों की संख्या में काफ़ी बढ़ोतरी हुई है। रसोईघर में उनके खाना बनाने वाले इटालियन नहीं हैं, उत्तर अफ़्रीका या मध्य-अमेरिका के लोग हैं। मेरा इटालियन दोस्त सिगार प्रिय था। कई बार ‘बैला फुमा सिगार शॉप’ पर रुकता था। उसके शब्दों में, इस सिगार की गंध दूसरे तरह की है। मैंने कहा, “ठीक, इटली के स्वप्नपरी की तरह है न?”
पुस्तक की विषय सूची
- आमुख
- अनुवादक की क़लम से . . .
- हार्वर्ड: चार सदी पुराना सारस्वत मंदिर
- केंब्रिज शहर और हार्वर्ड: इतिहास एवं वर्तमान
- हार्वर्ड के चारों तरफ़ ऐतिहासिक बोस्टन नगरी
- ऐतिहासिक बोस्टन तथा उसके उत्तरांचल वासी
- हमारा सेंटर (सिफा): चार्ल्स नदी, कॉनकॉर्ड ऐवन्यू
- हार्वर्ड में पहला क़दम: अकेलेपन के वे दिन
- विश्वविद्यालय की वार्षिक व्याख्यान-माला
- पुनश्च ओक्टेविओ, पुनश्च कविता और वास्तुकला की जुगलबंदी
- कार्लो फुएंटेस–अजन्मा क्रिस्टोफर
- नाबोकोव और नीली तितली
- जॉन केनेथ गालब्रेथ: सामूहिक दारिद्रय का स्वरूप और धनाढ्य समाज
- अमर्त्य सेन: कल्याण विकास अर्थशास्त्र के नए क्षितिज और स्टीव मार्गलिन
- सिआमस हिनि, थॉमस ट्रान्स्ट्रोमर, चिनुआ आचिबि और जोसेफ ब्रोडस्की
- अमेरिका की स्वतंत्रता की प्रसवशाला—कॉनकॉर्ड
- अमेरिका के दर्शन, साहित्य और संस्कृति की प्रसवशाला-कॉनकॉर्ड
- हार्वर्ड से बहुदिगंत आनुष्ठानिक भ्रमण
- हार्वर्ड से बहुदिगंत आनुष्ठानिक भ्रमण (भाग-दो)
- हार्वर्ड से बहुदिगंत आनुष्ठानिक भ्रमण: काव्य-पाठ एवं व्याख्यान
- हार्वर्ड से एक और भ्रमण: मेक्सिको
- न्यूयार्क में फिर एक बार, नववर्ष 1988 का स्वागत
- हार्वर्ड प्रवास के अंतिम दिन
- परिशिष्ट
लेखक की पुस्तकें
लेखक की अनूदित पुस्तकें
लेखक की अन्य कृतियाँ
साहित्यिक आलेख
- अमेरिकन जीवन-शैली को खंगालती कहानियाँ
- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की ‘विज्ञान-वार्ता’
- आधी दुनिया के सवाल : जवाब हैं किसके पास?
- कुछ स्मृतियाँ: डॉ. दिनेश्वर प्रसाद जी के साथ
- गिरीश पंकज के प्रसिद्ध उपन्यास ‘एक गाय की आत्मकथा’ की यथार्थ गाथा
- डॉ. विमला भण्डारी का काव्य-संसार
- दुनिया की आधी आबादी को चुनौती देती हुई कविताएँ: प्रोफ़ेसर असीम रंजन पारही का कविता—संग्रह ‘पिताओं और पुत्रों की’
- धर्म के नाम पर ख़तरे में मानवता: ‘जेहादन एवम् अन्य कहानियाँ’
- प्रोफ़ेसर प्रभा पंत के बाल साहित्य से गुज़रते हुए . . .
- भारत के उत्तर से दक्षिण तक एकता के सूत्र तलाशता डॉ. नीता चौबीसा का यात्रा-वृत्तान्त: ‘सप्तरथी का प्रवास’
- रेत समाधि : कथानक, भाषा-शिल्प एवं अनुवाद
- वृत्तीय विवेचन ‘अथर्वा’ का
- सात समुंदर पार से तोतों के गणतांत्रिक देश की पड़ताल
- सोद्देश्यपरक दीर्घ कहानियों के प्रमुख स्तम्भ: श्री हरिचरण प्रकाश
पुस्तक समीक्षा
- उद्भ्रांत के पत्रों का संसार: ‘हम गवाह चिट्ठियों के उस सुनहरे दौर के’
- डॉ. आर.डी. सैनी का उपन्यास ‘प्रिय ओलिव’: जैव-मैत्री का अद्वितीय उदाहरण
- डॉ. आर.डी. सैनी के शैक्षिक-उपन्यास ‘किताब’ पर सम्यक दृष्टि
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- प्रवासी लेखक श्री सुमन कुमार घई के कहानी-संग्रह ‘वह लावारिस नहीं थी’ से गुज़रते हुए
- प्रोफ़ेसर नरेश भार्गव की ‘काक-दृष्टि’ पर एक दृष्टि
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- सपनें, कामुकता और पुरुषों के मनोविज्ञान की टोह लेता दिव्या माथुर का अद्यतन उपन्यास ‘तिलिस्म’
बात-चीत
ऐतिहासिक
कार्यक्रम रिपोर्ट
अनूदित कहानी
अनूदित कविता
यात्रा-संस्मरण
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- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 3
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