स्मृतियों में हार्वर्ड
पुनश्च ओक्टेविओ, पुनश्च कविता और वास्तुकला की जुगलबंदी
मुझे ऑक्टेविओ का मैक्सिको सिटी के उनके पते से लिखा गया पत्र मिला कि यूनिवर्सिटी के कार्पेंटर सेंटर ऑफ़ विजुअल आर्ट्स में उनका कविता-पाठ होगा। इस बार उनका कविता-पाठ अलग शैली में होने की उम्मीद थी। कुल बीस कविताएँ पढ़ी जाने वाली थीं। उनकी पृष्ठभूमि में दस कविताएँ थीं और बाक़ी दस अलग-अलग लोग पढ़ेंगे। ये बीस कविताएँ ओक्टेवियो और मैक्सिको के प्रसिद्ध आधुनिक चित्रकार और वास्तुकार ब्रायन निसेन दोनों ने चुनी थी। प्रत्येक कविता के लिए निसेन एक या एक से अधिक पेंटिंग दर्शक-श्रोताओं के सामने प्रस्तुत करते थे, जिन्हें उनके सामने रखा गया था।
कविता पाठ के लिए मुझे विशेष निमंत्रण प्राप्त हुआ था। थोड़ा जल्दी आकर मैंने निसेन को अपना परिचय दिया। ऑक्टेविओ ने स्वयं अपना परिचय दिया। वे उसी सुबह न्यूयॉर्क से आए थे। न्यूयॉर्क के मेट्रोपॉलिटन म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट (एमओएमए) में आयोजित ‘मैक्सिकन कला के 2000 साल’ प्रदर्शनी के लिए कैटलॉग तैयार करने की उनकी ज़िम्मेदारी थी। इस काम के सम्बन्ध में उन्हें अचानक न्यूयॉर्क जाना पड़ा। इसलिए उनसे मैक्सिको सिटी में मुलाक़ात नहीं हो पाई। मैक्सिको सिटी में जब मैं होटल पहुँचा तो उनका संक्षिप्त पत्र मेरा इंतज़ार कर रहा था।
कविता-पाठ अच्छी तरह से सम्पन्न हुआ। मैंने दर्शकों में सीमस हिनि, यूनानी कवि स्ट्रैटीस हविआरास (वे लैमोंट लाइब्रेरी में कविता पाठ के संयोजक थे), डोनाल्ड हल और उनकी पत्नी जेन केन्यॉन आदि को देखा। निसेन अत्यंत समझदारी से ओक्टेवियो की कविताओं की आत्माओं को दृश्य-काव्य में रूपायित कर प्रस्तुत कर रहे थे, अगर उन्हें कोई प्रत्यक्ष नहीं देखेगा तो विश्वास नहीं कर पाएगा। मुझे पहली बार ओक्टेविओ के अपनी कविताओं का अंग्रेज़ी अनुवाद सुनने का अवसर मिला था। उनकी आवाज़ गंभीर और नियंत्रित थी। प्रत्येक शब्द के उच्चारण काव्य-विभा का स्वरूप बदल रहा था और ब्रायन निसेन का दृश्यकाव्य काव्य-रूप में और जान फूँक रहा था।
इस बेहद मनोरंजक कार्यक्रम के अंत में फ़ैकल्टी क्लब में हमें ओक्टेविओ और निसेन के साथ डिनर पर आमंत्रित किया गया था। अगले दिन ओक्टेवियो न्यूयॉर्क चले गए।
बाद में मेट्रोपॉलिटन म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट (एमओएमए) में हुए ‘मैक्सिकन कला का 2000 साल’ प्रदर्शनी के उद्घाटन में मुझे ओक्टेविओ द्वारा तैयार, संपादित विशाल सूची को देखने का अवसर मिला था, जिसमें मैक्सिको के सामग्रिक कला-इतिहास और परिवेषण की उल्लेखनीय शैली के बारे में उनका प्रभूत ज्ञान परिलक्षित हो रहा था। लेकिन उन्होंने मुझे यह कहते हुए एक पत्र लिखा था, ‘अब तक सबसे बड़ी सूची तैयार करने की बदनामी मुझे मिली है।’
ओक्टेविओ के साथ मेरा सम्बन्ध बहुत पुराना था। छठे दशक में जब वह भारत में मैक्सिको के राजदूत थे, उस समय से। तकक्षी शिवशंकर पिल्ले को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने के समारोह (सन 1985) में वे मुख्य अतिथि थे। उस समय मैं ज्ञानपीठ पुरस्कार की चयन समिति का एक अन्यतम सदस्य था। उनका परिचय देते समय उनकी कविता ‘शिव-पार्वती’ के अंग्रेज़ी और हिंदी अनुवाद पढ़े गए थे। बाद में उन्होंने कहा कि वह अपनी कविता से बहुत ख़ुश हैं। इसलिए नहीं कि कविता भारत में उनके प्रवास के दौरान लिखी गई थी, बल्कि यह उनकी पसंदीदा कविताओं में से एक थी। कविता इस प्रकार है:
“शिव और पार्वती
वह महिला जो मेरी पत्नी है, और मैं
नहीं माँगते कुछ भी
उसके बारे में
जो दूसरी दुनिया से आता है;
केवल इतना रहने दो
प्रकाश समुद्र वक्ष पर
नंगे पाँव पर प्रकाश
निद्रित धरती और समुद्र के ऊपर।”
(शिव और पार्वती)
पुरस्कार समारोह के बाद मैंने उनसे इस कविता के प्रेरणा-स्रोत के बारे में पूछा। उन्होंने कहा कि इस कविता के दो स्रोत थे। पहला स्रोत था, हार्दिक प्रार्थना, दूसरा मेरी विदायी के अनुभव। कविता भारत से लडेरा एस्टे (उनकी पूर्व भूमि) लौटने से ठीक पहले ही बनाई गई थी। उस समय उन्होंने मैक्सिको सिटी के छात्रों पर मैक्सिकन सरकार के फ़ायरिंग के विरोध में भारत के राजदूत के पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। कविता पढ़ते समय मेरी आँखों के सामने फिर से एलीफेंटा नाचने लगी। शिव-पार्वती के विवाह की सुंदर तस्वीर एलीफेंटा की गुफाओं में अभी भी अक्षुण्ण है। मुझे निम्न पंक्तियाँ याद आ गईं, जो मेरे अंदर प्रतिध्वनित हो रही थीं:
“हे जगन्नाथ, मैं तुमसे कुछ नहीं माँगता,
न धन माँगता हूँ, न जन,
माँगता हूँ सिर्फ़ हाथ भर श्रद्धा बालू।”
हमें पता था कि उन्होंने भारत में अपने प्रवास के दौरान कई जगहों (‘वृंदावन’, ‘हिमाचल प्रदेश’, ‘ऋषिकेश’) पर कविताएँ एवं समय और घटनाओं के बारे में लिखा था। भारत उनकी नज़रों में प्रिय भूमि थी, जो इतिहास की निर्जनता में खो गई थी। उन्होंने मुझसे कहा था कि उनकी किताब ‘इन दी लाइट ऑफ़ इंडिया’ उनके क़र्ज़ को चुकाने का एक छोटा प्रयास था। भारतीय आत्मा का द्वंद्व और विरोधाभास, जिन्हें उन्होंने देखा था, उनकी पुस्तक में साफ़ झलकते हैं। एक बार बातचीत के दौरान उन्होंने कहा था, “मैक्सिको का भी यही हाल है। हम मैक्सिकोवासी एक-दूसरे और दुनिया के लिए अबोध्य हैं।”
इस पुस्तक में, मैं उनके साथ अपने रिश्ते के लंबे इतिहास के बारे में नहीं लिख पाऊँगा। ख़ास-ख़ास बातें लिख रहा हूँ।
मैंने हार्वर्ड कारपेंटर सेंटर में कविता-पाठ के बारे में पहले कहा है। निसेन की प्रदर्शनी का नाम था “ओक्टेविओ पाज़ की ऑब्सीडियन तितली”। उनकी कविताओं में कई जगहों पर मैक्सिकन सभ्यता की परंपरा का चित्रण है, इसलिए मैंने उनसे और निसेन से कहा था कि प्रदर्शनी का शीर्षक वास्तव में काफ़ी सोच-समझकर रखा गया है।
पठित कविताओं में सामग्रिक भाव से कविता और मैक्सिको के बारे में उनका दृष्टिकोण था। हमेशा कवि का भाग्य ऐसा ही होता है। उन्हें अपने समाज और समय के साथ बहुत क़रीबी रिश्ता बनाए रखने पर भी अपने आपको इतिहास के बोझ और उसके कोमल अत्याचार से बचाना पड़ता है। कवि और उनके उच्चारित शब्द एक और अभिन्न होने पर ही उच्च कोटि की कविता बनती है। उनकी भाषा में कविता एक परित्यक्त आँगन है। मेरे मन पसंद की तीन कविताएँ उद्धृत हैं:
“यौवन:
तरंगों की उछल कूद
और . . . श्वेत-धवल
समय-समय पर अधिक हरा
दिन-ब-दिन और बचपना
मृत्यु”
“रचना:
ये सारे अक्षर लिखता हूँ मैं
जैसे दिन आँकता है अपनी छबियाँ सारी
फिर फूँक मारकर मिटा देता है
और आता नहीं वापस”
“संगीत:
ऊपर नीला अंबर
नीचे पेड़ों के झुंड
रास्ते भर हवा
सुनसान कुआँ
काली बाल्टी
स्थिर पानी
पानी
उतर आता है पेड़ों पर
आसमान
छा जाता है होंठों पर”
मैंने उनसे कुछ समय के लिए चित्रकार जे. स्वामीनाथन और कवि श्रीकांत वर्मा के बारे में बात की थी। वे दोनों हमारे दोस्त थे और दोनों इस दुनिया से विदा हो गए। स्वामीनाथन ने मेरे कविता-संग्रह ‘चढ़ेईरे तू कि जाणू’ के हिंदी अनुवाद ‘चिरईरे तू क्या जाने’ के लिए उनके द्वारा चयनित एक पेंटिंग की स्लाइड तैयार करके भेजी थी, मुझे याद आ गया। मुझे स्वामीनाथन के साथ मेरी पुरानी दोस्ती और उनकी मृत्यु शैय्या के शेष दिन याद आने लगे।
इस तरह सब-कुछ खो जाता है। मृत्यु का कोहरा हर किसी को डूबा देता है—उसके बाद कुछ भी दिखाई नहीं देता। जब मुझे ऑक्टेविओ की दारुण मृत्यु की ख़बर मिली तो मेरा मन छटपटाने लगा था। अनजाने में इस दूर स्थित दोस्त के लिए मेरी आँखें नम हो गई थीं। एक बार वह अमेरिकी शिखर समिति की बैठक में भाग लेने के बाद चिली से विमान द्वारा लौट रहे थे। मुझे उनकी कविता ओब्सीडियन तितली याद आई, जिसे मिट्टी और फूलों की सुगंध से प्यार था फिर अपने पंखों को हिलाते हुए दूर चली गई। मुझे उनकी कविता ‘शिव पार्वती’ भी याद आई। क्या यह मृत्यु भी सभी से ‘विदाई, विदाई’ कहने की शैली नहीं है?
ओक्टेवियो स्मृति और प्रेम के कवि थे। उनकी कविता ‘सन स्टोन’ की कुछ पंक्तियाँ नीचे उद्धृत है:
“मैं अपनी उँगलियों से देखता हूँ
मेरी आँखें क्या छूती हैं
दुनिया की छाया पर छाया डालती हैं।
मैं दुनिया को आकर्षित करता हूँ।
मैं दुनिया को छाया के साथ छिन्न-भिन्न करता हूँ।
मैक्सिको के राष्ट्रपति अर्नेस्टो ज़ेडिलो ने ओक्टेविओ की मौत की ख़बर पर संवेदना व्यक्त की थी, “उनकी मृत्यु समकालीन विचार और संस्कृति के लिए एक अपूरणीय क्षति है, न केवल लैटिन अमेरिका के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए।”
उनकी मृत्यु में कविता ने खो दिया है उस कवि को, जिसने सुनसान एस्प्लेनेड से हमें दुखद समय में कविता और कला के सूक्ष्म स्वर सुनाए थे। क्लांतिहीन पथिक बनकर, जिसने हमें चहुंमुखी निराशा और अवक्षय के भीतर आशा और नए सपनों का संचार किया था। सारा जीवन वह अथक यात्री थे, लौटना चाहते थे “प्रारम्भ के विस्मृत शब्दों में”।
उन्होंने अपनी पुस्तक “द लेब्रिन्थ ऑफ़ सॉलिट्यूड” में एज़्टेक-माया सभ्यताओं और मैक्सिको के इतिहास और परंपरा के बारे में बहुत कुछ लिखा है। टेनोचिट्लान के खंडहरों पर स्थित ढाई करोड़ लोगों की दुनिया की सबसे बड़ी बस्ती मैक्सिको सिटी है, जिसके चारों तरफ़ पहाड़ ही पहाड़ हैं, जिसकी वजह से वह दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है। बारबाटी के खंडहरों पर स्थित कटक शहर और क्या है!
पेंगुइन से प्रकाशित अपना कविता-संग्रह मुझे उपहार देते समय उन्होंने स्पैनिश में दो पंक्तियाँ लिखीं: ‘ए सीताकान्त दी पोएटा ए पोएटा’ (सीताकांत को, कवि से, कवि को)। जब मैं अपनी पुस्तक के पन्नों को पलटता हूँ तो उनकी ये पंक्तियाँ याद आती है:
“लेखक को एकांत में रहना चाहिए। यह अभिशाप भी है तो आशीर्वाद भी। इसलिए हम लेखकगण सीमांत पर होते हैं।”
पुस्तक की विषय सूची
- आमुख
- अनुवादक की क़लम से . . .
- हार्वर्ड: चार सदी पुराना सारस्वत मंदिर
- केंब्रिज शहर और हार्वर्ड: इतिहास एवं वर्तमान
- हार्वर्ड के चारों तरफ़ ऐतिहासिक बोस्टन नगरी
- ऐतिहासिक बोस्टन तथा उसके उत्तरांचल वासी
- हमारा सेंटर (सिफा): चार्ल्स नदी, कॉनकॉर्ड ऐवन्यू
- हार्वर्ड में पहला क़दम: अकेलेपन के वे दिन
- विश्वविद्यालय की वार्षिक व्याख्यान-माला
- पुनश्च ओक्टेविओ, पुनश्च कविता और वास्तुकला की जुगलबंदी
- कार्लो फुएंटेस–अजन्मा क्रिस्टोफर
- नाबोकोव और नीली तितली
- जॉन केनेथ गालब्रेथ: सामूहिक दारिद्रय का स्वरूप और धनाढ्य समाज
- अमर्त्य सेन: कल्याण विकास अर्थशास्त्र के नए क्षितिज और स्टीव मार्गलिन
- सिआमस हिनि, थॉमस ट्रान्स्ट्रोमर, चिनुआ आचिबि और जोसेफ ब्रोडस्की
- अमेरिका की स्वतंत्रता की प्रसवशाला—कॉनकॉर्ड
- अमेरिका के दर्शन, साहित्य और संस्कृति की प्रसवशाला-कॉनकॉर्ड
लेखक की पुस्तकें
लेखक की अनूदित पुस्तकें
लेखक की अन्य कृतियाँ
पुस्तक समीक्षा
- उद्भ्रांत के पत्रों का संसार: ‘हम गवाह चिट्ठियों के उस सुनहरे दौर के’
- डॉ. आर.डी. सैनी का उपन्यास ‘प्रिय ओलिव’: जैव-मैत्री का अद्वितीय उदाहरण
- डॉ. आर.डी. सैनी के शैक्षिक-उपन्यास ‘किताब’ पर सम्यक दृष्टि
- नारी-विमर्श और नारी उद्यमिता के नए आयाम गढ़ता उपन्यास: ‘बेनज़ीर: दरिया किनारे का ख़्वाब’
- प्रवासी लेखक श्री सुमन कुमार घई के कहानी-संग्रह ‘वह लावारिस नहीं थी’ से गुज़रते हुए
- प्रोफ़ेसर नरेश भार्गव की ‘काक-दृष्टि’ पर एक दृष्टि
- वसुधैव कुटुंबकम् का नाद-घोष करती हुई कहानियाँ: प्रवासी कथाकार शैलजा सक्सेना का कहानी-संग्रह ‘लेबनान की वो रात और अन्य कहानियाँ’
- सपनें, कामुकता और पुरुषों के मनोविज्ञान की टोह लेता दिव्या माथुर का अद्यतन उपन्यास ‘तिलिस्म’
बात-चीत
साहित्यिक आलेख
- आधी दुनिया के सवाल : जवाब हैं किसके पास?
- कुछ स्मृतियाँ: डॉ. दिनेश्वर प्रसाद जी के साथ
- गिरीश पंकज के प्रसिद्ध उपन्यास ‘एक गाय की आत्मकथा’ की यथार्थ गाथा
- डॉ. विमला भण्डारी का काव्य-संसार
- दुनिया की आधी आबादी को चुनौती देती हुई कविताएँ: प्रोफ़ेसर असीम रंजन पारही का कविता—संग्रह ‘पिताओं और पुत्रों की’
- प्रोफ़ेसर प्रभा पंत के बाल साहित्य से गुज़रते हुए . . .
- भारत के उत्तर से दक्षिण तक एकता के सूत्र तलाशता डॉ. नीता चौबीसा का यात्रा-वृत्तान्त: ‘सप्तरथी का प्रवास’
- रेत समाधि : कथानक, भाषा-शिल्प एवं अनुवाद
- वृत्तीय विवेचन ‘अथर्वा’ का
- सात समुंदर पार से तोतों के गणतांत्रिक देश की पड़ताल
ऐतिहासिक
कार्यक्रम रिपोर्ट
अनूदित कहानी
अनूदित कविता
यात्रा-संस्मरण
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 2
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 3
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 4
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 5
- पूर्व और पश्चिम का सांस्कृतिक सेतु ‘जगन्नाथ-पुरी’: यात्रा-संस्मरण - 1
रिपोर्ताज
विडियो
ऑडियो
उपलब्ध नहीं