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स्मृतियों में हार्वर्ड

अमेरिका के दर्शन, साहित्य और संस्कृति की प्रसवशाला-कॉनकॉर्ड

 

लेक्सिंगटन और कॉनकॉर्ड नामक दो छोटे शहर हार्वर्ड और बोस्टन से थोड़ी दूरी पर स्थित हैं। इतिहासकार दोनों शहरों को एक रूप में देखते हैं। दोनों क़स्बों की भूमिका अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम में बेहद महत्त्वपूर्ण थी। कॉनकॉर्ड में बहुत रक्तपात हुआ था, जिसे देखने के लिए स्वतंत्रता संग्राम के कई जीवित स्मारक हैं। कॉनकॉर्ड में हर जगह स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न चरणों का इतिहास दर्ज किया गया है। 

कॉनकॉर्ड न केवल अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम का मूक दर्शक है, बल्कि अमेरिका के दर्शन, उपन्यास, सरल जीवन शैली और मानवता की परंपरा यहाँ पैदा हुई थी। एमर्सन, अमेरिका का पहला महत्त्वपूर्ण दार्शनिक था। जो यहाँ लंबे समय अर्थात् पचास वर्षों तक रहा था और इस जगह पर उन्होंने अपने सभी मूल ग्रंथों की रचना की थी। एमर्सन ने अमेरिका के एक साधारण इंसान में असाधारण शक्ति, आत्म-सम्मान, गौरव, स्वाभिमान और समाजिकता की स्पष्ट तस्वीर खींची। यह तस्वीर उनके विश्वास-बोध की अभिव्यक्ति थी। यह अब तक दुनिया के लिए अमेरिका का सबसे बड़ा उपहार रहा है। उनका ‘द स्कार्लेट लेटर’, युगांतरकारी उपन्यास कॉनकॉर्ड में लिखा गया था। इस उपन्यास में मानव मनोविज्ञान के कई चरणों का विश्लेषण कर ऐसे पात्र का निर्माण किया है, जो उपन्यासों के इतिहास में अद्वितीय और अविस्मरणीय है। उपन्यासकार नथानियल हॉथोर्न को उपन्यासों के जादूगर कहा गया है। सामान्य पाठकों के लिए श्रीमती लुइसा अल्कोट द्वारा कई उपन्यास कॉनकॉर्ड में लिखे गए थे। अल्कोट के पिता उस समय के प्रसिद्ध दार्शनिकों में से एक थे और एमर्सन द्वारा स्थापित ‘शनिवार क्लब’ के सदस्य थे। कॉनकॉर्ड की धरती अमेरिकी समाज के सामाजिक मूल्यों और आध्यात्मिकता की पृष्ठभूमि बनी। सरल जीवन शैली में थोरो की जीवन-शैली अनोखी थी। यह उनकी साहित्यिक कृतियों से स्पष्ट जाना जा सकता है। उन्होंने स्वेच्छा से ख़ुद को दो वर्षों तक जन-साधारण से दूर रखा और प्रकृति के सानिध्य में रहकर उन्होंने कुछ पुस्तकें लिखीं, जिसने ने केवल अमेरिका का पथ-प्रदर्शन किया, बल्कि महात्मा गाँधी और मार्टिन लूथर किंग जैसे महानुभावों को भी असाधारण मंत्र दिया, जो मानव जाति के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण अध्याय साबित हुआ। कॉनकॉर्ड अमेरिकी इतिहास में दर्शन और स्वतंत्रता-संग्राम के क्षेत्र में अद्वितीय है। 

राल्फ वाल्डो एमर्सन

 

एमर्सन अमेरिका के सबसे महत्त्वपूर्ण दार्शनिक हैं। उनके जीवन ने विभिन्न तरीक़ों से अमेरिकी दार्शनिक परंपरा और साहित्य को प्रभावित किया है। दर्शन और चिंतन की विशाल परिधि के बाहर, उन्होंने मिसिसिपी नदी पर पुरानी शैली में बनी नौकाओं के आस-पास रहने वाले किसानों और व्यवसायियों के जीवन का अध्ययन करने में काफ़ी समय बिताया। उन्होंने अमेरिका के उत्तर-पूर्व और मध्य-पश्चिम के विभिन्न क्षेत्रों में चालीस वर्षों तक भाषण दिया था। उन्होंने अपने व्याख्यानों के नोटों के आधार पर अपने प्रसिद्ध निबंध प्रकाशित किए थे। उनका ‘आत्मनिर्भर’ नामक निबंध अमेरिकी साहित्य में एक उज्ज्वल रत्न है। उनकी भाषा में, “एक प्रतिभा को अपने विचारों पर विश्वास होना चाहिए। केवल छोटा आदमी दूसरों की सभी बातों पर सहमत होने के लिए तैयार रहता है। एक असली आदमी को हर वक़्त और हर चीज़ में ‘हाँ’ नहीं कहना चाहिए।” 

एमर्सन ने अपने बचपन में अपने पिता को खो दिया था। उनकी विधवा माँ को अपने पाँच बेटों में से एमर्सन के भविष्य के प्रति कोई उच्च आंकांक्षा नहीं थी। बचपन में वह स्वस्थ लड़का नहीं था और अक्सर विभिन्न बीमारियों से पीड़ित होता रहता था। सब कोई यही सोचता था कि एमर्सन बहुत बुद्धिमान नहीं है, उसकी कल्पना-शक्ति प्रखर नहीं है। स्कूल में भी उसका अच्छा प्रदर्शन नहीं था। वह ग्रीक और गणित में बहुत कमज़ोर था। उनके स्वयं के शब्दों में, “स्कूल में पढ़ना एक अमानवीय काम था।” वह हमेशा स्कूल से डरते थे। मगर जब वह स्कूल छोड़कर हार्वर्ड चले गए तो उनके छात्र-जीवन का एक नया अध्याय शुरू हुआ। उनके प्रोफ़ेसरों ने देखा कि एमर्सन में विश्व के कई दार्शनिकों और लेखकों को पढ़ने की बहुत लिप्सा थी। वह हार्वर्ड स्क्वायर में जिस छात्रावास में रहते थे, वहाँ सर्दी में गर्म रखने की कोई व्यवस्था नहीं थी। ठंड से ख़ुद को बचाने एक से अधिक कंबल का इस्तेमाल करते थे और उस कंबल के अंदर घुसकर प्लेटो का दर्शन-शास्त्र पढ़ते थे। यहाँ इस बात का उल्लेख करना आवश्यक है कि प्लेटो की रचनाओं से वह बहुत प्रभावित थे। 

जब वे स्कूल में पढ़ रहे थे तब से उनकी चाची श्रीमती मेरी उन्हें बहुत पसंद करती थी। उन्हें उम्मीद थी कि एमर्सन एक दिन महान दार्शनिक बनेगा। हार्वर्ड से स्नातक होने के बाद कुछ समय के लिए उन्होंने एक शिक्षक के रूप में काम किया। उन्होंने कुछ समय के लिए एक चर्च में ‘मिनिस्टर’ का भी काम किया था। स्नातक होने के बाद उनकी शादी हुई, लेकिन शादी से उन्हें कोई संतोष नहीं मिला। 

सन्‌ 1835 एमर्सन के जीवन का उल्लेखनीय वर्ष था। उस वर्ष उन्होंने दूसरी शादी की और यह निर्णय लिया कि वह अपना सम्पूर्ण जीवन आत्म-चिंतन और लेखन में बिताएँगे। उन्हें पूरा भरोसा था कि वह अपने आलेखों से जीवित रहने के लिए पर्याप्त कमा सकेंगे। कॉनकॉर्ड में एक छोटे से घर में वह रहने लगे। उस घर में उन्होंने पचास वर्षों तक अपनी रचनाएँ लिखीं, उनकी उन रचनाओं ने न केवल अमेरिका, बल्कि पूरे विश्व को चकित कर दिया। उनकी रचनाओं और दर्शन में कई नई चीज़ों, समकालीन मूल्यों के विरुद्ध उनके क्रांतिकारी विचारों के कारण आज भी उन्हें अमेरिका का सबसे बड़ा दार्शनिक माना जाता है। 

बचपन से हर रोज़ 5 बजे उठने की उनकी आदत थी। उठने के बाद एक घंटे तक जर्नल लिखते थे, अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए। जिसे वे अपना ‘बचत बैंक’ जर्नल कहते थे। उनकी अधिकांश रचनाएँ इस पत्रिका से निकली हैं। 

उनके दृष्टिकोण में निम्नलिखित विचार महत्त्वपूर्ण थे: 

  1. आनंद के लिए मनुष्य जीवन बना है। उनका मानना था कि इस दुनिया में हर जीवित वस्तु में भगवान की चेतना मौजूद है। इसलिए निराशा और दुख क्षणिक हैं। उनका अतिक्रम करते हुए मनुष्य को आनंद के पवित्र स्रोत की तरफ़ बढ़ना चाहिए। 

  2. वह आश्वस्त थे कि पूरी दुनिया एक ही रस्सी से बँधी हुई है। यह रस्सी हमारे चारों ओर की प्रकृति है। उनका मानना था कि प्रकृति परमेश्वर की अभिव्यक्ति है और वह प्रकृति का ही ध्यान करते थे। कॉनकॉर्ड के पास स्थित वाल्डेन तालाब और सन्निकट जंगल में वह हर दिन जाते थे। वह बहुत समय तक झील, घास और पेड़ों को निहारते रहते थे, जिसे उन्होंने अपनी पत्रिका में लिखा है। 1848 में फ्रांसीसी क्रांति के समय क्रांतिकारियों ने कई पेड़ों को काटकर सड़कों को ब्लॉक करने के लिए उनका इस्तेमाल किया। उन्होंने अपने जर्नल में निम्नलिखित प्रश्न उठाया था: “क्या क्रांति पेड़ों की क़ीमत पर उचित थी?” 

  3. उनका मानना था कि हर किसी को अपने बल की तुलना में अपने आप में ज़्यादा विश्वास होना चाहिए। उत्कलमणि गोपबंधु की तरह, उनका मानना था कि एक आदमी का जीवन केवल साल और महीनों से नहीं मापा जाना चाहिए। एमर्सन की भाषा में, “हम किसी आदमी के वर्षों की गिनती नहीं करते हैं, जब तक उसके पास गिनने के सिवाय कुछ नहीं हो।” उनका मानना है कि गहरे आत्म-विश्वास की भावना किसी भी आदमी को निर्भयतापूर्वक अपनी शर्तों पर अपना जीवन जीने में मदद करता है। उनकी भाषा में, “हमें ख़तरनाक तरीक़े से जीवित रहना चाहिए।” वह पूरी तरह ग़ुलामी के ख़िलाफ़ थे। जब अमेरिकी कांग्रेस ने 1850 में ‘फ्यूजिटिव स्लेव लॉ’ को पारित किया, तो एमर्सन ने कहा, “भगवान की क़सम, मैं इसे नहीं मानता।” उनका दृढ़ विश्वास था कि मनुष्य असीम है। उनका यह भी दृढ़ विश्वास था कि हर व्यक्ति के भीतर विवेक और विचार बुद्धि सन्निहित होती है। 

  4. उनका मानना था कि मनुष्य को अपने जीवन में भौतिकवादी नहीं होना चाहिए और न ही भोग-विलास के प्रति दुर्बलता। उन्होंने एक प्रश्न उठाया, “घर और खलिहान के आराम हेतु स्टारलाईट रेगिस्तान में घूमने का तुम्हारा अधिकार क्यों छोड़ना चाहिए?” वह पूरे जीवन मितव्ययी थे। वह ग़रीब भी थे। उन्होंने लुइसा अल्कोट के पिता और थोरो को कुछ वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए अतिरिक्त श्रम किया। प्रसिद्ध अमेरिकी कवि वॉल्ट व्हिटमैन ने एक कवि के रूप में अपनी प्रगति के लिए एमर्सन के योगदान को सुंदर ढंग से स्वीकार किया है, “I was Simmering, Simmering, Simmering. Emerson brought me to a boil.”

  5. इतिहास शनिवार क्लब के लिए भी एमर्सन को याद करता है। जिस दिन यह क्लब शुरू हुआ था, तत्कालीन सभी महत्त्वपूर्ण लेखक और चिंतक इस क्लब के सदस्य थे। इनमें प्रमुख थे थोरो, एच. लोंगफेलो, जे.आर. लोवेल, हॉथोर्न, ओलिवर वेन्डेल्स होम्स और कई अन्य। अमेरीका के इस प्रसिद्ध दार्शनिक का सन्‌ 1862 में 79 वर्ष की आयु में निधन हो गया। अपने अन्य दोस्तों के साथ कॉनकॉर्ड में एक ही जगह पर समाधि दी गई। उनकी मृत्यु के बाद उनके विचारों और दर्शनों पर कई पुस्तकें लिखी गई। मेरा मानना है कि उनमें तीन पुस्तकें महत्त्वपूर्ण हैं। 

पहली पुस्तक ‘एमर्सन एंड कंडक्ट ऑफ़़ लाइफ’ के लेखक डेविड रॉबिन्सन ने लिखा है कि एमर्सन धीरे-धीरे आधिभौतिक या रहस्यवाद से दूर होते गए। यह सच है कि एमर्सन की प्रसिद्धि उन्नीसवीं शताब्दी के तीसरे और चौथे दशकों के अपने निबंधों और व्याख्यानों पर निर्भर करती है। उन्होंने इनमें आदर्शवाद और रहस्यमय विचारों पर बल दिया था। मगर समय के साथ उन्होंने नैतिकता, कर्मदक्षता और समाज के अन्य व्यक्तियों के लिए कुछ करने की आवश्यकता पर अधिक बल दिया। रॉबिन्सन दूसरे चरण में एमर्सन के कामों के बारे में अपने दो प्रमुख निबंध-संग्रहों का उदाहरण देते हुए बताते हैं। वे ‘सोसाइटी एंड सॉलिट्यूड’ और ‘द कंडक्ट ऑफ़ लाइफ’ हैं अर्थात् ‘समाज और निर्जनता’ एवं ‘जीवनचर्या’। रॉबिन्सन इस चरण में एमर्सन के कार्यों के बारे में कहते हैं, “मैं उस आदमी को पसंद नहीं करता जो सोच रहा है कि वह कैसे अच्छा बनेगा; लेकिन उस आदमी को पसंद करता हूँ जो अपने काम को पूरा करने की सोच रहा है।” रॉबिन्सन का मानना था कि जीवन के इस चरण के दौरान वह धीरे-धीरे रहस्यवाद से यथार्थवाद की तरफ़ मुड़ रहे थे। एमर्सन ने इस दौरान रहस्यवादी विचारों से सामाजिक कर्त्तव्यों और नैतिकता को अधिक महत्त्वपूर्ण माना।     

दूसरी पुस्तक ‘एमर्सन और लिटरेरी चार्ज’ है, जो डेविड पोर्टर द्वारा लिखी गई और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा प्रकाशित हुई। पोर्टर की राय में, एमर्सन अमेरिकी साहित्य में आधुनिकता के पूर्वज थे। उन्हें इस दृष्टिकोण से अमेरिकी साहित्य के इतिहास में सबसे बड़ा माना नहीं जा सकता है, लेकिन अमेरिकी साहित्य और कविता के क्षेत्र में वह एक अपरिहार्य निर्णायक और प्रभावशाली लेखक थे। परवर्ती कवियों में वालेस स्टीवंस, विलियम कार्लो, एमिली डिकिन्सन, आदि पर उनका स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। एमर्सन अपने आलेखों में चिंतन और कर्म, व्यक्ति और समाज, परंपरा और आधुनिकता आदि को एक साथ लाने में सक्षम थे। उनकी साहित्यिक रचनाएँ एक नए साहित्यिक युग के प्रादुर्भाव का संकेत दे रही थीं। उनकी पुस्तक ‘समाज और निर्जनता’ इस दोहरी प्रक्रिया का प्रमाण है। एक ओर, उच्च कोटि के साहित्य की रचना तब तक सम्भव नहीं है जब तक कि समाज के साथ लेखक के व्यक्तिगत और घनिष्ठ सम्बन्ध न हो। दूसरी ओर, समाज के साथ इस तरह के रिश्तों से उत्पन्न होने वाला अनुभव लेखक की निर्जन आत्मा और एकाकीपन में अपनी अंतिम अभिव्यक्ति पाता है। इसलिए साहित्य समाज की ज़िम्मेदारी तक सीमित नहीं है। इसी तरह यह आत्मनिरीक्षण तक भी सीमित नहीं है। दोनों के बीच एक अच्छा संतुलन उच्च कोटि के साहित्य की रचना में मदद करता है। 

एमर्सन थोरो के अकेले जीवन के अनुभवों को आदर की दृष्टि से देखते थे। उनका मानना था कि लेखक को समाज से कुछ हद तक दूरी बनाए रखकर, अपने स्वयं के अनुभवों और सामाजिक गतिविधियों का गहन पर्यवेक्षण करना चाहिए। ‘वाल्डेन पॉन्ड’ उनके लिए लेखकीय जीवनशैली का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा था। इसके अलावा, उन्होंने यह भी महसूस किया कि हर व्यक्ति की समाज के प्रति ज़िम्मेदारी है। उनके जीवन के दूसरे चरण के आलेखों में यह पहलू अधिक प्रभावशाली था। 

रॉबिन्सन और पोर्टर के अलावा, एमर्सन के बारे में तीसरी सबसे महत्त्वपूर्ण पुस्तक एडवर्ड वॅकेंप्पेट द्वारा लिखित ‘द बैलेंस्ड मैन’ है। उपर्युक्त चर्चा की पृष्ठभूमि से यह स्पष्ट होता है कि एमर्सन एक बहुत ही संतुलित व्यक्ति थे, जो अपने जीवन में और अपने आलेखों में दर्शन और कर्म के बीच एक अच्छा संतुलन लाने में सिद्धहस्त थे। यह अमेरिकी साहित्य और दर्शन की सबसे महत्त्वपूर्ण बात है। 

 

हेनरी डेविड थोरो

 

हेनरी डेविड थोरो (1817-1862) अमेरिका के सबसे प्रसिद्ध दार्शनिकों और लेखकों में से एक हैं, जिन्होंने व्यक्तियों के अलग-अलग अस्तित्व और प्रकृति के साथ अंतरंग सह-अस्तित्व पर अपनी प्रगाढ़ आस्था व्यक्त की थी। उन्होंने अपने हाथों से एक छोटी-सी झोपड़ी बनाकर मैसाचुसेट्स के कॉनकॉर्ड निकट वाल्डेन नामक जगह पर पूरे दो साल अकेले बिताए थे। थोरो कॉनकॉर्ड में पैदा हुए थे और हार्वर्ड में शिक्षित। 1830 के दशक के अंत से 1840 के दशक की शुरूआत तक स्कूल में पढ़ाने के साथ-साथ निजी ट्यूशन में व्यस्त थे। थोरो 1841 और 1843 के बीच प्रसिद्ध अमेरिकी दार्शनिक और निबंधकार राल्फ वाल्डो एमर्सन के घर में रहते थे। उस समय अमेरिका में एमर्सन के मार्गदर्शन में ‘ट्रांसिंडेंटलिस्ट’ या ‘उत्तरणवाद’ सामाजिक दर्शन के रूप में प्रसिद्ध हो गया था। इस दार्शनिक दृष्टिकोण के अनुसार—“भगवान प्रकृति के प्रत्येक वस्तु में मौजूद है”। उनका यह भी विश्वास था कि दिव्य शक्ति हर व्यक्ति के अंदर मौजूद है और वह अपनी अंतरात्मा की आवाज़ के अनुसार काम करके मानसिक शान्ति प्राप्त कर सकता है। एमर्सन, थोरो, शिक्षाविद् और दार्शनिक ब्रॉन्सन अल्कोट के अलावा, समाज सुधारक मार्गरेट फुलर और साहित्यिक आलोचक जॉर्ज रिकली ने भी इस दृष्टिकोण पर विश्वास किया। ‘उत्तरणवाद’ में परंपराओं, अच्छे सामाजिक सम्बन्ध और व्यक्तिगत चेतना की एक संतुलित अभिव्यक्ति के बारे में एक नया दृष्टिकोण शामिल था। मैंने थोरो के बारे में पहले बहुत कुछ पढ़ा था। मैं जानता था कि गाँधी उनके जीवन से कैसे प्रभावित हुए थे। इसलिए मैं थोरो के वाल्डेन पॉन्ड के किनारे पर दीर्घ समय तक बैठकर उस व्यक्ति के बारे में सोचने लगा, जिसने अपनी जीवन यात्रा में कुछ नया खोजा, सम्पूर्ण व्यक्तिगत जीवन यापन करने के लिए। थोरो 1945 से इस झील या तालाब (वाल्डेन) के किनारे पर अपने हाथ से बने कुटीर में दो साल तक रहे थे। उन्होंने अपनी डायरी में अपनी कार्यावली का विशद विवरण लिपिबद्ध किया था। अपनी कार्यावली के अलावा, उन्होंने प्रकृति की विभिन्न वस्तुओं को भी देखा और आध्यात्मिक ध्यान-धारणा को भी इस डायरी में दर्ज किया। अपने वहाँ रहने के दौरान उन्होंने साग-सब्ज़ियाँ उगाई, तालाब से मछलियाँ पकड़ीं और विभिन्न जीव-जंतुओं और आकाश में उड़ते पक्षियों का अवलोकन किया। दिन-रात और ऋतु चक्र के परिवर्तन का आनंद लेते थे और अपने अनुभवों को लिखते थे। समाज में दूसरों के साथ अच्छे सम्बन्ध रखने में विश्वास करने वाले थोरो इन दो वर्षों के दौरान पूर्ण रूप से आत्म-निर्भर होकर अत्यंत सामान्य जीवन जीने की कोशिश कर रहे थे। इस अवधि में जो कोई उनसे मिलने आया तो उन्होंने उनको अच्छा आतिथ्य प्रदान किया। अकेले जीवन जीने वाले ऐसे एक दार्शनिक और लेखक के लिए वास्तव में एक विरल घटना है! मगर उन्होंने कहा कि इन दो साल की अवधि के दौरान उन्हें कभी अकेलापन महसूस नहीं हुआ। उनका विश्वास था कि हर प्राकृतिक वस्तु में जीवन है और इन वस्तुओं ने उनका साथ दिया था। भले ही, वह वस्तु तालाब में तैरती हुई मछली हो, आकाश में उड़ती चिड़िया हो, फूलों से लदालद जंगली पौधें हों, अपने हाथों से उपजाई हुई बग़ीचे की बीन्स हो या अन्य वनस्पति पौधे हों। 

वाल्डेन को इस दृष्टि से दुनिया की सर्वश्रेष्ठ पुस्तकों में स्थान मिला। वाल्डेन छोड़ने के बाद उन्होंने कुछ समय बिताया एमर्सन के घर में और बाद में अपने पिता के पास। वाल्डेन में रहने से पहले उन्होंने 1839 में अपने भाई के साथ नाव से यात्रा की थी। यह यात्रा मेरिमैक नामक एक छोटी-सी स्थानीय नदी में की गई थी। इस नौका-यात्रा के थोरो के अनुभवों के अलावा, कई प्राकृतिक वस्तुओं के बारे में उनके दार्शनिक विचार और टिप्पणियाँ ‘कॉनकॉर्ड और मैरिमैक नदी में एक सप्ताह’ नामक पुस्तक में दर्ज है। यह पुस्तक 1849 में प्रकाशित हुई थी, जब थोरो जीवित थे। उनके द्वारा लिखी गई अन्य पुस्तकें उनकी मृत्यु के बाद संपादित और प्रकाशित की गई हैं। थोरो को 1846 में जेल हुई थी, जब उन्होंने मैक्सिको के साथ अमेरिका के युद्ध का विरोध किया था। उन्होंने अपने प्रसिद्ध निबंध ‘सिविल डिसोबेडिएन्स (सविनय अवज्ञा)’ में अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। महात्मा गाँधी इस निबंध से काफ़ी प्रभावित हुए थे। अमेरिकन नीग्रो को सामाजिक न्याय दिलाने की दिशा में काम करने वाले बहुत सारे व्यक्ति एवं अनुष्ठान भी निबंध से प्रभावित हुए थे। थोरो द्वारा लिखित छह ह पुस्तकें उनकी मृत्यु के बाद 1862 में प्रकाशित हुईं थीं। इन चारों को उन्नीसवीं सदी में प्रकाशित किया गया था, अर्थात् ‘Excursion (भ्रमण)’ (1863), ‘The Maine woods (द मेन वुड्स)’ (1864), ‘A café cod (ए कैफ़े कॉड)’ (1865) और ‘A onkyee in Canada (ए ओंक्यी इन कनाडा)’ (1866)। एक लंबे समय के बाद उनकी दो और पुस्तकें प्रकाशित हुईं। वे थी ‘Faith in a seed (बीज में विश्वास)’ और ‘Wild Fruits (जंगली फल)’। थोरो ने अपने जीवन-दर्शन को बहुत ही कम वाक्यों में इस प्रकार लिखा है:

“हर लहर पर अपने आपको लांच करना होगा और प्रत्येक क्षण में अपने अनंत काल को देखना होगा। मूर्ख लोग अपने अवसर के द्वीपों पर खड़े होकर किसी दूसरी ज़मीन की ओर देखते हैं। कोई अन्य ज़मीन नहीं है; इसके सिवाय कोई दूसरा जीवन भी नहीं है।” 

थोरो ने अपनी जीवनचर्या से कई उदाहरणों का हवाला दिया है, जिससे मनुष्य अपने जीवन में ख़ुशी और संतोष कैसे प्राप्त कर सकते हैं। मैंने इस बारे में लगभग सारी चीज़ें पढ़ी हैं। जिस दिन मैं वाल्डेन और उनका घर (जो अब एक संग्रहालय है) देखने गया था, साथ में लेकर गया था थोरो की कुछ रचनाओं को, उस पवित्र भूमि पर बैठकर, उस सुंदर हृदयस्पर्शी वातावरण में पढ़ने के लिए। उसके बारे में कुछ कहने का मतलब उनकी भाषा के उच्चारण को लिपिबद्ध करने के सिवाय कुछ और सम्भव नहीं है। 

क्या दो साल अकेले रहकर उन्होंने अकेलेपन का सामना किया था? हम में से बहुत से लोग अकेलापन महसूस करते हैं, भले ही, हम घनी आबादी वाले क्षेत्रों में रहते हैं। वास्तव में उनके अनुभव सीखना कितना आवश्यक है! वह अपनी भाषा में कह रहे हैं। मैं उसे अनुवाद करने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ . . . “मैं अकेला नहीं हूँ . . . एक डैंडिलायन, एक मक्खी, एक मधुमक्खी की तुलना में। मैं उत्तर तारा, दक्षिण हवा, अप्रैल की बूँदाबाँदी या नए घर में पहली मकड़ी की तुलना में अकेला नहीं हूँ।” 

वह हर किसी के क़रीब था: अप्रैल की बूँदाबाँदी, एक उत्तर तारा या दक्षिण हवा। 

“ज्यादातर पुरुष . . . जीवन के बेहद कठोर परिश्रम तथा आलतू-फ़ालतू चिंताओं से ऐसे जकड़े हुए हैं कि वे जीवन के सूक्ष्म फलों को नहीं तोड़ सकते है।”

“मैं जंगल में गया था क्योंकि मैं जीना चाहता था . . . और मैंने देखा कि उससे क्या सीखना था, और क्या नहीं, जब मैं मरने लगा था, तब पता चला कि मैं जीवित नहीं हूँ।”

जादुई काव्यात्मक भाषा में उनकी कुछ पंक्तियों पर फिर से ग़ौर कीजिए:

“समय है, मैं जिस धारा में मछली पकड़ने जाता हूँ। इसकी पतली धारा दूर ले जाती है लेकिन अनंतकाल बना रहता है। मैं और गहराई से पानी पीता हूँ, आकाश में मछलियाँ पकड़ता हूँ, जिसका धरातल सितारों से भरा हुआ है।”

“केवल उस दिन ही प्रभात होती है, जिस दिन हम जागते हैं। प्रभात होने के लिए बहुत दिन हैं। सूरज तो एक सुबह का तारा है।”

“मैं चिंतित हूँ . . . दो अनंत-काल, भूत और भविष्य के संगम पर खड़े होते हुए, जो सूक्ष्मता से वर्तमान क्षण ही है।”

“मुझे अपने जीवन में एक व्यापक अंतर पसंद है।” 

यह उनका दृढ़ संकल्प था (दो साल तक वाल्डेन में स्वेच्छा से अकेले रहने का अर्थ था) कि जीवन का मार्जिन ख़ूब प्रशस्त रहे। इसे ख़ाली पड़ा रहने दो, मगर इसमें बकवास नहीं भरी होनी चाहिए। हम उन दोनों चरम सीमाओं के मिलन बिंदु पर जीवन जीना सीखते हैं, अतीत और भविष्य के मिलन बिंदु वर्तमान पर। 

“इतने शरद ऋतु और सर्दियों के दिन बिताए . . .
हवा को सुनने और उसे साथ ले जाने की कोशिश करते हुए।”

एक कवि, ख़ुद में खोया हुआ कवि थोरो! जिसने खेती करने की कोशिश की, फ़सल उगाने की कोशिश की और तालाब में मछली पालने की कोशिश की! लेकिन जिनके कान हमेशा सुनने को तत्पर थे, कि शीत ऋतु में हवा क्या कहती है! 

हम जानते हैं कि थोरो हार्वर्ड से 1837 में स्नातक हुए थे, 1845 तक इधर-उधर काम किए, एमर्सन के घर में 1841 से 1843 तक रहे थे और वाल्डेन तालाब के तट पर कुटीर में 1844-45 बिताए। उन्होंने 1841 में वाल्डेन जाने के लिए अपना मन बनाया था। 24 दिसंबर, 1841 को, उन्होंने अपनी डायरी में लिखा:

“मैं जल्द ही जाना चाहता हूँ और तालाब के साथ जीऊँगा . . . मेरे दोस्त मुझसे पूछते हैं कि मैं वहाँ क्या करूँगा? क्या मौसम के कार्यक्रमों को देखना किसी रोज़गार से कम है?” 

“आपको वर्तमान में रहना होगा।”

उन्होंने यह कहने के लिए नहीं कहा था। उन्होंने अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनी होगी। आधुनिक समाज और दग्ध जीवन के लिए अमृत की तलाश कर था वह। उन्होंने दुनिया को त्याग नहीं किया, वह वर्तमान में रहते थे। उन्होंने हर समय अपनी जीवन को दूसरों के जीवन की प्रकृति के साथ एकात्म करने का प्रयास किया। उनकी मृत्यु के कई सालों बाद प्रकाशक ह्यूटन मिफ्लिन ने 1907 में अठारह संस्करणों में उनकी समग्र रचनावली को प्रकाशित किया। इस संकलन का नाम ‘द राइटिंग ऑफ़ थ्योरम’ है। इस तरह के ऋषि प्रतिम व्यक्ति के कॉलेज (जो हार्वर्ड यार्ड पर चलते हैं) में अध्ययन करने और उनके कुटीर के पास बैठना मेरे लिए किसी दिव्य अनुभव से कम नहीं था! 

 

नथानियल हॉथोर्न (1804-1864) 

 

हॉथोर्न अमेरिका के सर्वप्रथम प्रसिद्ध उपन्यासकार थे। उनका उपन्यास ‘द स्कार्लेट लेटर’ भविष्य के अमेरिकी समाज, चिरंतन मूल्यबोध और वर्तमान समय के संघर्ष और जीवन स्वप्न के अप्रत्याशित परिणति की प्रभावी व्याख्या करता है। उनका जन्म 1804 में न्यू इंग्लैंड के उत्तरी क्षेत्र में स्थित सालेम के एक कुलीन परिवार में हुआ था। सालेम सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दियों में जादू-टोने के लिए कुख्यात था। चुड़ैलों को सज़ा देने के लिए विशेष अदालतें स्थापित की गई थीं और उनके लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई थी। हॉथोर्न के पूर्वजों (शायद उनके परदादा) में से एक ऐसा न्यायाधीश था, जिनके दरबार में कई चुड़ैल-प्रसंगों की सुनवाई हुई थी। रिकॉर्ड के मुताबिक़ वह 1692-93 में एक न्यायाधीश थे और उनके द्वारा दिए गए निर्णयों को संरक्षित रखा गया है। हॉथोर्न ने उन निर्णयों को विस्तारपूर्वक पढ़ा था, जिस पर उनका प्रसिद्ध उपन्यास ‘द स्कार्लेट लेटर’ आधारित था। जब वे केवल चार वर्ष के थे, तब उनके पिता की सुरीनाम के समुद्र में डूबने से मृत्यु हो गई थी। नाना के घर उनका बचपन बीता और प्राथमिक शिक्षा भी वहीं हुई। उन्होंने कहा है कि उनका प्रारंभिक जीवन कई कहानी पुस्तकों को पढ़ने, छोटी-छोटी काल्पनिक कथा-वस्तुओं की खोज करने, अपने घर और पास-पड़ोस के युवाओं को कहानियाँ सुनाकर मनोरंजन करने में प्रसन्नतापूर्वक व्यतीत हुआ। ऐसी पृष्ठभूमि और परिवेश से उपन्यासकार और कथाकार होने की प्रवणता उनके हृदय में बलवती हुई। माँ अपने बेटे के मन को समझ गई थीं, इसलिए उसने उसे प्रोत्साहित किया। उसने आशा व्यक्त की कि उसका बेटा एक दिन एक महान लेखक होगा। पितृविहीन हॉथोर्न जब सत्रह वर्ष का था, तो उसने ननिहाल स्थित एक कॉलेज में तीन साल तक अध्ययन किया था। कॉलेज में उनके दो अंतरंग मित्र बने। एक कवि लॉन्गफेलो थे और दूसरे फ्रैंकलिन पियर्स, जो अमेरिका के चौदहवें राष्ट्रपति हुए। हॉथोर्न ने अपनी कॉलेज की शिक्षा समाप्त कर लगभग दस वर्षों तक पत्रिकाओं में लघु कथाएँ लिखीं। उनका मित्र सुलिवन ‘डेमोक्रेटिक रिव्यू’ नामक एक पत्रिका प्रकाशित करता था। हॉथोर्न ने उस पत्रिका के लिए 25 से 30 कहानियाँ लिखीं, जिसका उसे कुछ पारिश्रमिक भी मिला था। उन्होंने अपनी लघु कथाओं का शीर्षक ‘सेवन टेल्स ऑफ़ माय नेटिव लैंड’ से संकलन कर कई प्रकाशकों को भेजा। दुर्भाग्यवश, किसी भी प्रकाशक ने इसे स्वीकार नहीं किया। हॉथोर्न ने निराशा और ग़ुस्से में इस पांडुलिपि को जला दिया। उन्होंने 1828 में अपना पहला उपन्यास छद्म नाम से अपने ख़र्च से प्रकाशित किया। उपन्यास का नाम ‘Fanshawe’ था। उन्होंने अपने दोस्तों को उपहार-स्वरूप कुछ प्रतियाँ भेंट कीं। उन्होंने अपने इस प्रथम उपन्यास में कॉलेज जीवन के बारे में लिखा था। उपन्यास की एक भी प्रति नहीं बिकी। अनबिकी किताबें उनके घर में पड़ी हुई थीं। निराशा से उन्होंने फिर से उन सभी अनबिकी प्रतियों को आग लगा दी। 

सतही तौर पर देखा जाए तो, एक लेखक के रूप में उनका जीवन बहुत ही निराशाजनक ढंग से शुरू हुआ था और इससे उन्हें बहुत दुःख हुआ था। एक प्रकाशन-संस्था के लिए 1836 और 1841 के बीच उन्होंने कुछ बाल-साहित्य लिखा और अमेरिकी समकालीन साहित्य पर कुछ निबंध भी। हॉथोर्न के जीवन में 1842 में वास्तविक परिवर्तन हुआ। इस वर्ष के दौरान उन्होंने एमर्सन और थोरो से मुलाक़ात की और कॉनकॉर्ड में भी रहने लगे। उसी वर्ष उनका विवाह भी हुआ। उन्होंने महसूस किया कि साहित्य की कमाई से घर चलाना मुश्किल था। इस संदर्भ में उन्होंने कहा, “मेरा साहित्य और मेरी ज्ञान-गरिमा, घर-परिवार चलाने के लिए मुझे पर्याप्त कमाई नहीं दे पा रही है।” कॉनकॉर्ड में घर चलाने के लिए उन्हें धन उधार लेना पड़ा। अपना कर्ज़ चुकाने के लिए सालेम बन्दरगाह पर उन्हें तीन साल के लिए सर्वेक्षक का काम करना पड़ा। मन लगाकर काम नहीं करने के कारण बंदरगाह के अधिकारियों ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया। इस प्रकार उन्हें लंबे समय तक कई विफलताओं का सामना करना पड़ा। सन्‌ 1850 में प्रकाशित ‘द स्कार्लेट लेटर’ उनके साहित्यिक जीवन की पहली पुरस्कृत कृति थी। उसके बाद ‘द हाउस ऑफ़ सेवन गैबल्स’ दूसरा सफल उपन्यास अगले वर्ष प्रकाशित हुआ। 

हॉथोर्न मनुष्य के जीवन के अँधेरे पक्ष के बारे में अधिक जागरूक थे, शायद अपने जीवन के अनुभवों की वजह से। वे कॉर्कशायर के लेनॉक्स में कुछ समय हर्मन मेलविल के साथ रहे थे। मेलविल उन्हें बहुत प्यार करते थे, इसलिए उन्होंने न केवल उनका उपन्यासों की दुनिया में स्वागत किया था, वरन्‌ उन्हें सभी प्रकार की सहायता भी प्रदान की थी। यहाँ तक कि अपना प्रसिद्ध उपन्यास ‘मोबी डिक’ को उन्हें समर्पित किया था। मेलविल के दृष्टिकोण, जीवन के प्रति आभिमुख्य और लेखन-शैली ने स्पष्ट रूप से उन्हें प्रभावित किया था। 

हॉथोर्न ने कुछ समय तक सरकारी काम भी किया था। वे सात साल तक इटली में रहे। लेकिन उन्होंने अपनी नोटबुक में कुछ चीज़ों को लिखने के अलावा इस अवधि में कोई उपन्यास या कहानी नहीं लिखी थी। वे 1860 में अमेरिका लौट आए। उन्होंने 1860 में अपना अंतिम उपन्यास ‘द मार्बल फ़ौन’ लिखा था। कॉनकॉर्ड में उन्होंने अपने घर का नाम ‘द वेसाइड’ रखा था अर्थात् रास्ते का किनारा। उस समय उन्होंने कुछ अच्छे निबंध लिखे, जिसका संकलन 1863 में ‘अवर ओल्ड होम’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। उनकी पत्नी ने उनकी मृत्यु के बाद कई डायरी और नोट्स संपादित कर प्रकाशित किए थे। अपने दोस्त फ़्रेंकलिन के साथ एक पहाड़ी इलाक़े में सफ़र करते समय उनका निधन हो गया था। 

‘द स्कारलेट लेटर’ निस्संदेह उनकी सबसे अच्छी रचना है। इस उपन्यास में कुछ प्रतीकों का बार-बार उपयोग किया गया है, जो पाठक का ध्यान आकर्षित करते हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं के बारे में कहा, “मेरी रचनाएँ वे फूल हैं जो छाया में खिलते हैं।” परवर्ती लेखक उन्हें उच्च कोटि का उपन्यासकार मानते थे। आलोचकों का मानना है कि उनके प्रतीकों का अर्थ व्यापक है। वे कहते हैं कि हॉथोर्न की रचनाओं में क्रूर वास्तविकता और आदमी के सपने, आवेग, अभीप्सा परस्पर एक-दूसरे के विरोधी हैं, और ज़्यादातर मामलों में, वास्तविकता की ही दूसरों पर विजय होती है। कुछ आलोचकों ने उनकी तुलना परवर्ती अनन्य उपन्यासकार हेमिंग्वे और काफ्का से की है। वे कॉनकॉर्ड के लेखक, दार्शनिक परिवार के मुख्य व्यक्ति थे। 

 

लुइसा अल्कोट

 

लुइसा में अल्कोट उपन्यास ‘लिटिल वुमेन’ की लेखिका हैं, जो कॉनकॉर्ड की निवासी थीं। उन्होंने कॉनकॉर्ड ऑर्चर्ड हाउस में यह उपन्यास लिखा था। जिस छोटे घर के पास वे बैठकर लिखती थी, वह घर अब तक अच्छी तरह से संरक्षित है। उन्होंने और उनकी बहनों ने बोस्टन के लुईसबर्ग में अपने जीवन काल का अधिकांश हिस्सा बिताया था। लुइसा की मृत्यु 6 मार्च, 1888 को हुई थी। कॉनकॉर्ड जाने से पहले मैंने बोस्टन में उनका तथा उनकी बहनों अन्ना और एलिज़ाबेथ के घरों को देखा था। 

अल्कोट परिवार ने कॉनकॉर्ड के ऑर्चर्ड हाउस में अपने जीवन का दीर्घ काल व्यतीत किया था। उस घर में उनका लेखन टेबल ही नहीं, वरन्‌ उनके सेल्फ़ में संगृहीत एवं हस्ताक्षरित किताबें अभी भी मौजूद हैं। मुख्यतः चार्ल्स डिकेंस, जॉर्ज इलियट, गोएटे और हॉथोर्न की पुस्तकें रखी हुई हैं। खिड़कियों के बाहर के दृश्य (जो ‘लिटिल वुमेन’ में कई जगह वर्णित हैं) बहुत सुंदर हैं। घर के सभी फ़र्नीचर भी अच्छी तरह से संरक्षित रखे गए हैं। मुझे नहीं पता था कि लुइसा अल्कॉट अमेरिकी युवा पाठकों में बहुत लोकप्रिय थी। जिस दिन मैं वहाँ गया था, उस दिन मैं उस घर के सामने लगी लंबी क़तार से उनकी लोकप्रियता का अनुमान सहज लगाया जा सकता था। तीन गाइड थे, जो उस ज़माने के कपड़े पहने हुए थे। ऑर्चर्ड हाउस जाने वाली सड़क पर ज़्यादा यातायात नहीं था। दर्शकों के अलावा ज़्यादा भीड़ नहीं थी। उनकी क़ब्र घर के नज़दीक थी। घर से क़ब्र तक जाने का रास्ता बकाइन फूलों से लदा हुआ था, उन फूलों की ख़ुश्बू हवा में तैर रही थी। 

अचानक मेरी उस जगह पर हमारे इस कोर्स के एक सहपाठी दोस्त से मुलाक़ात हो गई। जूलियन सोबिन, उद्योगपति तथा उनके साथ उनकी पत्नी, दो बेटियाँ और एक भतीजी से। जूलियन ने बताया कि उनकी बेटियाँ और भतीजी लुइसा के लेखन के पीछे पागल हैं। बाद में पता चला कि जूलियन और उनकी पत्नी के साथ वे कई बार लुइसा के घर आ चुकी हैं। वास्तव, में लुइसा की अमेरिकी युवा पीढ़ी में लोकप्रियता देखकर मैं अचंभित था। मेरी राय में, ‘लिटिल वुमेन’ उपन्यास पढ़ना सुखद है, इसमें चरित्र चित्रण भी सुंदर है। ऐसा कहा जाता है कि इस उपन्यास के कई पात्र लुइसा की बहनों और अन्य संबंधियों पर आधारित हैं। संक्षेप में, इसे एक स्वच्छ और आकर्षक रोमांटिक उपन्यास कहा जा सकता है। 

लुइसा अपनी रचनाओं के लिए जितना लोकप्रिय थीं, उतनी ही अपने परिवार और जीवन के लिए। उनका चरित्र काफ़ी जटिल था। उनके पिता आदर्शवादी और एक शुभचिंतक दार्शनिक थे, जो अपनी आय के प्रति पूरी तरह उदासीन थे। पिता, लंबे समय से बीमार चल रही माँ, बहनें, भतीजे और भतीजी वाले बड़े परिवार को चलाने का दायित्व लुइसा के ऊपर था। इसलिए शायद अपने परिवार को चलाने हेतु पैसे कमाने के लिए उन्होंने कई साधारण उपन्यास और लघु कथाएँ लिखी थीं। उनका लेखन समकालीन नैतिकता के प्रति बेहद उदासीन एवं विरोधाभासी था। छत्तीस वर्ष की उम्र में उन्होंने जिस ‘लिटिल वुमन’ उपन्यास की रचना की थी, जो शीघ्र लोकप्रिय ही नहीं हुआ, बल्कि समीक्षकों द्वारा भी अत्यधिक सराही गई। उनके जीवनी लेखक के अनुसार कई बार प्रशंसकों से बचने के लिए वह अपना घर छोड़कर बोस्टन चली जाती थी। 

ऑर्चर्ड हाउस जाने से पूर्व अल्कोट परिवार का प्राचीन घर ‘हिल साइड’ लेक्सिंगटन रोड पर ऑर्चर्ड हाउस के निकट स्थित था। उन्होंने अपने इस घर को नाथनीएल हॉथोर्न को बेच दिया था और हॉथोर्न ने उस घर का नाम ‘द वे साइड’ में बदल दिया। हॉथोर्न, एमर्सन, थोरो, मार्गरेट फुलर और कुछ अन्य प्रसिद्ध लेखक अल्कोट परिवार से पड़ोसियों के रूप में सामाजिक और साहित्यिक स्तरों पर जुड़े हुए थे। उनकी एक सांस्कृतिक साहित्यिक गोष्ठी थी। अवश्य, थोरो कुछ समय बाद वाल्डेन पॉन्ड के नज़दीक छोटे कुटीर में चले गए, वह तालाब और थोरो दोनों दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गए। उनके आदर्श, सरल जीवन शैली और अकृत्रिम प्रकृति प्रेम ने कई बुद्धिमान लोगों को प्रभावित किया। यह सर्वविदित है कि महात्मा गाँधी भी उनका तथा उनके आदर्शों का बहुत सम्मान करते थे। 

‘हिलसाइड’ घर में वे केवल तीन साल रहे। उस समय लुइसा केवल बारह साल की थी, मगर ‘लिटिल वुमन’ की मूल कथावस्तु उनके दिमाग़ में जन्म ले चुकी थी। उपन्यास की पात्र अपने परिवार से थी, उसकी बहन। लुईसा लेखिका बन गई। यह घर छोड़ने से पहले उनकी पहली पुस्तक ‘फ़्लॉवर फ़ेबेल्स’ प्रकाशित हुई थी। उनकी बहनों में एलिज़ाबेथ पियानोवादक बन गई और ‘मे’ चित्रकार। तीन बहनों ने एक साथ मिलकर ‘पिलग्रिम प्रोग्रेस’ में अभिनय किया था। 

एलिज़ाबेथ की ऑर्चर्ड हाउस में मृत्यु हो गई। एलिज़ाबेथ के स्मारक भवन में उनके पिता ने दैनिक काम बाँट दिए थे, अपनी बेटियों को ऊपरी मंज़िल में एक लटकते बोर्ड पर लिखित निर्देश देकर। यह निम्नानुसार था: 

(1) सुबह 5:30 बजे-बिस्तर त्यागना, स्नान और ड्रेस अप होना 
(2) सुबह 9:00 बजे-अध्ययन, 
(3) दोपहर 2 बजे–सिलाई का काम 
(4) शाम को 4 बजे–कोई भी काम, जो बताया जाए।

लुइसा के कमरे की दीवार पर लिली का एक सुंदर चित्र टँगा हुआ था। उसकी चित्रकार बहन ‘मे’ का उद्देश्य था, लुईसा बिस्तर से उठते ही उसे देखकर आनंद अनुभव करे। उस समय तक अमेरिकी सिविल युद्ध के दौरान नर्स का काम कर रही लुइसा आजीवन अपंग हो गई थी, किसी ग़लत चिकित्सा के कारण। उनका परिवार 1877 में थोरो से ख़रीदे हुए नज़दीकी घर में चला गया। वर्तमान समय में दर्शकों को घर के अंदर जाने की अनुमति नहीं है, क्योंकि यह किसी का निजी आवास बन गया है। लेकिन ‘हिलसाइड’ या ‘ऑर्चर्ड हाउस’ की तुलना में यह घर बहुत बड़ा और बहुत सुंदर है। 

कॉनकॉर्ड रास्ते में पड़ने वाले इन सारे घरों को देखते हुए मैं अन्य पर्यटकों के साथ कुछ दूर चला गया। सड़क के अंत में आया-स्लीपी होलो सेमेटेरी। इसके अंदर देवदार पेड़ के विशाल वृत्त में स्थित है—आथर रिज। एमर्सन, हॉथोर्न, थोरो और अल्कॉट परिवार के सदस्यों की यहाँ समाधि बनी हुई हैं। ऐसा कहा जाता है कि वे सभी कॉनकॉर्ड शहर में अपने प्रिय मित्रों के बीच समाधि लेना चाहते थे। स्थानीय लोगों ने वहाँ देवदार पेड़ के साथ-साथ कई फूलों के पौधे लगाए हैं। कई पर्यटक इस जगह की यात्रा करते हैं। आज यह अमेरिका का अन्यतम तीर्थ-स्थल बन गया है। 

पुस्तक की विषय सूची

  1. आमुख 
  2. अनुवादक की क़लम से . . . 
  3. हार्वर्ड: चार सदी पुराना सारस्वत मंदिर
  4. केंब्रिज शहर और हार्वर्ड: इतिहास एवं वर्तमान
  5. हार्वर्ड के चारों तरफ़ ऐतिहासिक बोस्टन नगरी
  6. ऐतिहासिक बोस्टन तथा उसके उत्तरांचल वासी
  7. हमारा सेंटर (सिफा): चार्ल्स नदी, कॉनकॉर्ड ऐवन्यू
  8. हार्वर्ड में पहला क़दम: अकेलेपन के वे दिन
  9. विश्वविद्यालय की वार्षिक व्याख्यान-माला
  10. पुनश्च ओक्टेविओ, पुनश्च कविता और वास्तुकला की जुगलबंदी
  11. कार्लो फुएंटेस–अजन्मा क्रिस्टोफर
  12. नाबोकोव और नीली तितली
  13. जॉन केनेथ गालब्रेथ: सामूहिक दारिद्रय का स्वरूप और धनाढ्य समाज
  14. अमर्त्य सेन: कल्याण विकास अर्थशास्त्र के नए क्षितिज और स्टीव मार्गलिन 
  15. सिआमस हिनि, थॉमस ट्रान्स्ट्रोमर, चिनुआ आचिबि और जोसेफ ब्रोडस्की
  16. अमेरिका की स्वतंत्रता की प्रसवशाला—कॉनकॉर्ड
  17. अमेरिका के दर्शन, साहित्य और संस्कृति की प्रसवशाला-कॉनकॉर्ड
  18. हार्वर्ड से बहुदिगंत आनुष्ठानिक भ्रमण
  19. हार्वर्ड से बहुदिगंत आनुष्ठानिक भ्रमण (भाग-दो) 
  20. हार्वर्ड से बहुदिगंत आनुष्ठानिक भ्रमण: काव्य-पाठ एवं व्याख्यान
  21. हार्वर्ड  से एक और भ्रमण: मेक्सिको
  22. न्यूयार्क में फिर एक बार, नववर्ष 1988 का स्वागत 
  23. हार्वर्ड प्रवास के अंतिम दिन
  24. परिशिष्ट 

लेखक की पुस्तकें

  1. सौन्दर्य जल में नर्मदा
  2. सौन्दर्य जल में नर्मदा
  3. भिक्षुणी
  4. गाँधी: महात्मा एवं सत्यधर्मी
  5. त्रेता: एक सम्यक मूल्यांकन 
  6. स्मृतियों में हार्वर्ड
  7. अंधा कवि

लेखक की अनूदित पुस्तकें

  1. अदिति की आत्मकथा
  2. पिताओं और पुत्रों की
  3. नंदिनी साहू की चुनिंदा कहानियाँ

लेखक की अन्य कृतियाँ

साहित्यिक आलेख

पुस्तक समीक्षा

बात-चीत

ऐतिहासिक

कार्यक्रम रिपोर्ट

अनूदित कहानी

अनूदित कविता

यात्रा-संस्मरण

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