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कोल इंडिया लिमिटेड के चेयरमैन श्री पीएम प्रसाद के जीवन के अनेक अनछुए प्रसंग

 

जब भी श्री पी.एम. प्रसाद साहब का नाम चर्चा में आता है तो आँखों के सामने उभर आती है एक सौम्य भाव लिए बुद्ध प्रतिमा। हास्य स्मित भरा चेहरा। भले ही, उनकी मूँछें और केश श्वेतवर्णी है, अन्यथा ऐसा लगता है मानो बुद्ध धरती पर उतर आए हो। निस्संदेह, कोल इंडिया तो क्या, किसी भी कॉर्पोरेट जगत में ऐसा व्यक्तित्व को मिलना अत्यंत दुर्लभ है। यद्यपि मैंने उनके साथ कभी भी काम नहीं किया, मगर महानदी कोलफ़ील्डस लिमिटेड में शुरू से ही रहने के कारण ज़रूर उनसे कई बार छोटी-मोटी मुलाक़ात हुई है और उनके गुणों के बारे में सीनियर अधिकारियों से या उनके समकालीन या साथ काम करने वालों से जानने का अवसर मिला है। अगर पूरे कोल इंडिया के उनसे संबंधित सारे अनुभवों को इकट्ठा कर एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित की जाए तो उनसे जुड़ी सारी स्मृतियों का बड़ा ग्रन्थ तैयार हो जाएगा। 

एक-दो आलेखों में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की उपलब्धियों को समेटना देदीप्यमान सूर्य को दीपक दिखाने के तुल्य है। पूरी तरह से उनका चित्रण तभी हो सकता है, अगर वह स्वयं या तो अपनी आत्म-जीवनी लिखें या फिर कोई लेखक उनके प्रसंगों को अध्याय बनाकर जोड़ते हुए जीवनी की रचना करें। थोड़े-बहुत उदाहरण में आप सभी के सम्मुख रखना चाहूँगा। 

जब मैंने लिंगराज खुली खदान में 2011 में इब वैली क्षेत्र से स्थानांतरण के उपरांत ज्वाइन किया था, उस समय वे तत्कालीन निदेशक तकनीकी श्री जे.पी. सिंह के तकनीकी सचिव हुआ करते थे। ऑफ़िस के कुछ काम के लिए मुझे उनसे फोन पर बात करनी थी तो मैंने उनसे फोन लगाया, “सर, श्री पीएम प्रसाद से बात करनी है।” उन्होंने बड़े ही मधुर भाषा में उत्तर दिया, “हाँ, मैं पीएम प्रसाद बोल रहा हूँ।” और बाद में उन्होंने अपने प्रोग्राम के बारे में बताया था। उस समय मेरे मन में ख़्याल आया था कि कोल इंडिया में कोई भी एक सीनियर अधिकारी इतनी शालीनता से बात कैसे कर सकते हैं! पहला इंप्रेशन आज तक मेरे मानस पटल पर अंकित है। मुझे लगता है कि निरहंकारी कम्यूनिकेशन ने उनकी सफलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। 

श्री जे पी सिंह साहब, पूर्व निदेशक, एमसीएल ने अपनी यादों को ताज़ा करते हुए कहा, “सन्‌ 1995 की बात होगी। जब मैं महाकाली कोलियरी में मैनेजर था, तब प्रसाद साहब दुर्गापुर रैयतवारी कोलियरी के मैनेजर थे। उस समय सेफ़्टी वीक, प्रोडक्शन वीक और वेलफ़ेयर वीक में कभी मैं फ़र्स्ट रहता था तो कभी वह। तुम्हारे एमसीएल के वर्तमान सीएमडी काओले उनके एसिस्टेंट मैनेजर थे। बाद में, मैं पेंच एरिया का सब एरिया मैनेजर बन गया। और उनका पद्मपुर में स्थानांतरण हो गया। तब से हमारी दोस्ती थी। बहुत कुछ यादें जुड़ी हुई हैं।” फिर कुछ समय नीरव रहने के बाद एक दीर्घ साँस लेते हुए कहने लगे, “उसके बाद तो हम एमसीएल में मिले। मैं डी (टी) था और वे हिंगुला के जीएम। जब उन्होंने NTPC में ED बनने के लिए हिंगुला जीएम से रिज़ाइन किया तो बोर्ड में हमने उन्हें रिलीज़ करवाने का निर्णय लिया, ताकि उनका कैरियर बन जाए। उस समय श्री ए ऐन सहाय सीएमडी थे। बेसिकली, वह बहुत अच्छे इंसान है। बाद वाली कहानी तो तुम्हें मालूम ही है।”

“हाँ, बाद में उनका डी (टी) ऐनसीएल के लिए चयन हुआ। फिर सीएमडी बीसीसीएल, सीएमडी सीसीएल बनते-बनते चेयरमैन सीआईएल बने।” यह कहते हुए मैंने उनके अपूर्ण वाक्य को पूरा किया। 

जब मैंने अपने द्वारा सन 2013 में बनाए गए व्हाट्सएप ग्रुप ‘माई एमसीएल: माई प्राइड’ पर श्री पीएम प्रसाद से संबंधित यादों को इकट्ठा करने का अभियान शुरू किया, और इस ग्रुप के सभी संबंधित सदस्यों को अपनी स्मृतियों को भेजने के लिए आमंत्रित करके बनाया था, तो अचानक मुझे एमसीएल के पूर्व सीएमडी श्री ए. ऐन. सहाय का इस बारे में एक उत्साहजनक संदेश मिला और उन्होंने भी ख़ुद अनुरोध किया कि अन्य संबन्धित अधिकारी भी आगे आएँ। उनसे प्राप्त संदेश इस प्रकार है:

“मुझे याद है कि जब पी.एम. प्रसाद डब्ल्यूसीएल में पद्मपुर खदान के प्रबंधक थे, तब मेरी उनसे पहली बार मुलाक़ात हुई थी। मैं उनसे काफ़ी प्रभावित हुआ था क्योंकि किसी भी प्रश्न के लिए, उनके पास उत्तर तैयार था। मुझे वह बहुत मेहनती होने के साथ-साथ बहुत ही अच्छे व्यक्तित्व वाले लगे। उनके प्रयासों के कारण, पद्मपुर उमरेर के साथ सीआईएल में आईएसओ प्रमाणन प्राप्त करने वाली उनकी खदान पहली थी। 

“जब मैं फरवरी 2011 में एमसीएल में सीएमडी बनकर आया, तब उनकी पोस्टिंग मुख्यालय में थी, शायद टीएस थे डीटी (पी एंड पी) के। उस समय एमसीएल 106 मैट्रिक टन के उत्पादन लक्ष्य से बहुत पीछे था क्योंकि हमने फरवरी 2011 तक केवल 89 मिलियन टन का उत्पादन किया था और 100 मिलियन टन तक पहुँचना एक कठिन काम लग रहा था, क्योंकि भुवनेश्वरी के लगभग 165 कर्मचारियों की बर्खास्तगी के कारण तालचेर की अधिकांश खदानें हड़ताल पर थीं। एमसीएल के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों और कामगारों के महान प्रयासों के कारण हम 2010-11 में 100 मिलियन टन पार करने में सक्षम हुए थे। 

“जीएम के अगले फेरबदल में मैंने श्री प्रसाद को हिंगुला का जीएम बनाया गया, जिसे एमसीएल में सबसे कठिन क्षेत्र माना जाता था। लेकिन उन्होंने अपने अथक प्रयासों और सुलझे व्यक्तित्व के कारण बहुत अच्छा प्रदर्शन किया, इतना कि तालचेर के विधायक ने भी श्री प्रसाद को हिंगुला में पोस्टिंग के लिए मुझे धन्यवाद दिया। मुझे अच्छी तरह से याद है कि उन्होंने मुझसे कहा था कि अगर मैंने उन्हें वहाँ से स्थानांतरित करने की कोशिश की, तो वह इसका विरोध करेंगे और बाक़ी तो आप सभी जानते हैं। 

“जगन्नाथ प्रभु और विशेष रूप से हिंगुला माता की कृपा से, एमसीएल में बाद में कार्यशैली और कार्य-संस्कृति में सुधार शुरू हो गया। 

“एनटीपीसी में भी, श्री प्रसाद को पकरी बरवाडीह खदान शुरू करने के लिए पूरी तरह से श्रेय दिया जाता है, जिसे ब्लॉक आवंटन के 10 साल बाद भी शुरू नहीं किया जा सका था।” 

जब वे हिंगुला क्षेत्र के महाप्रबंधक बनकर आए, उस समय मैं सीएमओएआई, एमसीएल ब्राँच का जॉइंट सेक्रेटरी हुआ करता था और हिंगुला क्षेत्र के श्री यू के मोहंती जी, क्षेत्रीय पर्यावरण अधिकारी थे सेक्रेटरी। जब कभी वह छुट्टी पर होते थे या कहीं और गए होते थे; उनकी भूमिका का दायित्व मुझ पर आ जाता था। इस हिसाब से कंपनी के कुछ सांस्कृतिक प्रोग्राम में हिंगुला के “एंजॉय क्लब” के ऑडिटोरियम की उनके साथ मंच शेयर करने का मुझे अवसर प्राप्त हुआ था। तब मैंने उन्हें काफ़ी नज़दीकी से देखा तो यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि कोल इंडिया में उनके जैसा “टीम बिल्डिंग” बनाने में कोई शायद ही कोई दूसरा मिलेगा। सारे अधिकारियों को अपने कक्ष में बैठाकर उनके वृत्तिगत और व्यक्तिगत समस्याओं को सुनकर उनका समाधान करते थे। सारे अधिकारी उनसे काफ़ी ख़ुश रहते थे। अनुशासन से संबंधित उनके एक प्रेरक क़िस्से का अवश्य उल्लेख करना चाहूँगा। कलिंगा DAV स्कूल में उनका बेटा पढ़ता था और मेरे स्थानांतरण के कारण मेरे बेटों का भी उस स्कूल में दाख़िला करवाया गया था। इसलिए मैं उनकी स्कूल फ़ीस भरने के लिए स्कूल ऑफ़िस के वित्त प्रकोष्ठ की क़तार में खड़ा था। मेरे सामने दो-तीन लोग खड़े थे। मैंने पीछे मुड़कर देखा तो मेरे पीछे दो-तीन लोग को छोड़कर पीएम प्रसाद साहब खड़े थे। मैंने उन्हें देखकर आगे आने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया, यह कहकर, “चिंता मत करो। रहने दो। लाइन के हिसाब से नंबर आने दो।” 

एक महाप्रबंधक रैंक का अधिकारी स्कूल फ़ीस भरने के लिए क्या आपने क़तार में खड़े होते कभी देखा है? अगर वे चाहते तो वह प्रिंसिपल ऑफ़िस में बैठकर या किसी को भेजकर भी अपने बेटे की फ़ीस जमा करवा सकते थे, मगर अनुशासन उनके जीवन की मुख्य धुरी थी, इस वजह से वे अपने काम अधिकतर ख़ुद ही करते थे, बिना पोस्ट पदवी के अहंकार के। 

और मोटिवेशन के मामले में तो कहना ही क्या! आज भी मुझे वह दिन अच्छी तरह याद है, जब तालचेर कोयलांचल में पहली बार सभी क्षेत्रों को मिलाकर सामूहिक राजभाषा समारोह का आयोजन लिंगराज क्षेत्र के “मंगलम कल्ब” में किया गया था। उसमें हिंगुला के महाप्रबंधक के रूप में वे ख़ुद उपस्थित हुए थे। सभी क्षेत्रों को एक साथ जोड़ने के कारण काफ़ी भीड़ हुई थी। और बैठने की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण श्रमिक संघों के नेताओं ने नाराज़गी व्यक्त की। रास्ते में जाते समय जब प्रसाद सर से मैंने इस बारे में पूछा तो उन्होंने हँसते हुए उत्तर दिया था, “आप लोगों ने इतना शानदार आयोजन किया है। यह तो कोल इंडिया के स्टैंडर्ड का प्रोग्राम है। ट्रेड यूनियन के विचारों को अन्यथा मत लीजिए।”

आज भी यह प्रेरक घटना मेरे दिमाग़ में छाई हुई है। 

जब पीएम प्रसाद साहब लिंगराज खुली खदान के परियोजना अधिकारी हुआ करते थे। उनके सचिव थे अरुण कुमार डे। डे बाबू उनके विश्वसनीय में से अन्यतम थे। चेयरमैन बनने के बाद भी डे बाबू के साथ उन्होंने अपने सम्बन्धों में किसी भी प्रकार की कमी नहीं आने दी। यथावत उनके सारे फोन कॉल, व्हाट्सएप मैसेज का भी जवाब देते थे। ऐसे बहुत कम बिरले अधिकारी देखने को मिलते है। अक्सर देखा गया है कि कोई भी अधिकारी ऊँचे पद पर पहुँच जाता है तो नीचे वाले को या तो भूल जाता है या फिर उन पर अंहकार छा जाता है। मगर पीएम प्रसाद साहब ऐसे छद्म अहंकार से कोसों दूर थे। मानवीय स्पर्श ही उन्हें शीर्ष पर ले जाएगा, वे इसे अच्छी तरह जानते थे। वार्तालाप के दौरान अपने अतीत में झाँकते हुए डे बाबू कहने लगे, “लिंगराज एरिया ऑफ़िस के सामने वाली रेमुआ बस्ती में एक हनुमान मंदिर है। जीर्ण-शीर्ण अवस्था वाला। उस मंदिर में सर पूजा करते थे और कुछ दान भी देते थे। जब वे चेयरमैन बने तो वे सपरिवार यहाँ आए थे, पूजा करने के लिए। पत्र-पुष्प, पूजा-सामग्री से लगाकर पंडित आदि की व्यवस्था करने की ज़िम्मेदारी मेरे कंधों पर थी। इस प्रकार वे चेयरमैन बनने के बाद भी न तो मुझे भूले और न ही हनुमान मंदिर के पुजारी नन्द बाबू को। उनका किसी से एकबार सम्बन्ध बन जाता है तो वे आजीवन निभाते है। यह उनके चरित्र की विशेषता है।”

एक बार पीएम प्रसाद साहब तालचेर क्षेत्र के परियोजना अधिकारी थे। उस समय डॉक्टर आर के शरण डिस्पेंसरी के इंचार्ज थे। जिन्हें अचानक ब्रेन अटैक हुआ। लंबे इलाज के बाद ठीक हुए, मगर वह व्हीलचेयर पर बैठकर ही आना-जाना सम्भव था। इस रुग्णता के कारण उनकी नौकरी ख़तरे में पड़ गई थी, मगर प्रसाद सर ने न केवल आर्थिक मदद की, बल्कि उन्हें डिस्पेंसरी व्हील चेयर से जाकर अपनी हाज़िरी लगाने की अनुमति दी और जीवन के शेष 15 साल इस अवस्था में पार हो गए। सेवानिवृत्ति के समय डॉ. शरण ने मुझे कहा था, “अगर प्रसाद सर देवता बनकर मेरे जीवन में नहीं आए होते तो मुझे ज़बरदस्ती रिटायरमेंट कर दिया जाता। सोचो, उस देव पुरुष की अनुकम्पा के बारे में।”

मैं तालचेर की नंदिरा भूमिगत खदान, में परियोजना अधिकारी के रूप में उनके कार्यकाल की अवधि को कवर करना चाहता था, इसलिए मैंने श्री श्रीवत्स साहू, तत्कालीन प्रबंधक, नंदिरा खदान से संपर्क किया। वे मेरे पुराने मित्र है और हाल ही में एमसीएल के महाप्रबंधक (भुवनेश्वर) के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे। संदेश के माध्यम से, उन्होंने वह जानकारी मुझे उपलब्ध करवाई।

“श्री पीएम प्रसाद सर वर्ष 2003 में डब्ल्यूसीएल से एम-1 में पदोन्नति पर स्थानांतरित होने के बाद नंदिरा कोलियरी के परियोजना अधिकारी बने थे, उस समय मैं वहाँ प्रबंधक था। चूँकि मैं उन्हें डब्ल्यूसीएल से जानता हूँ कि वह ओपनकास्ट के विशेषज्ञ हैं और उन्होंने ओपनकास्ट में भी एमटेक किया है, तो मैंने उनसे पूछा, ‘सर, आपकी ओपनकास्ट के बजाय अंडरग्राउंड में क्यों पोस्टिंग हुई?’ जैसा कि आमतौर पर वे मुस्कुराते थे। हँसते हुए उन्होंने उत्तर दिया, ‘यह प्रबंधन का निर्णय है। आइए मिलकर काम करें और उत्पादन और सुरक्षा में कुछ सुधार करें।’ जैसा कि आप सभी जानते हैं कि नंदिरा खदान अपनी विश्वासघाती छत के लिए जानी जाती है, जो सुरक्षा बनाए रखने के लिए ख़तरा थी, उनके अथक प्रयासों और हमारी कड़ी मेहनत के कारण, जो उन्होंने हमें सिखाया था, नंदिरा कोलियरी ने लगातार सुरक्षा के साथ अच्छा उत्पादन देना शुरू कर दिया। जिसके चलते खदान को लगातार 3 साल तक उत्पादन और सुरक्षा के स्तर पर एमसीएल की सबसे अच्छी खान मानी गई। वार्षिक खान सुरक्षा सप्ताह में नंदिरा कोलियरी लगातार 3 वर्षों के लिए समग्र रूप से प्रथम और 2 वर्षों के लिए समग्र रूप से दूसरे स्थान पर रही। मानवीय स्पर्श गुणवत्ता के साथ उनकी सादगी, समर्पण और अथक प्रयासों के लिए उन्हें प्रणाम। कुछ अन्य मानवता के काम जैसे गैस सिलेंडर फटने से मरने वाले स्वर्गीय घोष रॉय की मदद करना और जैसा कि माली जी ने कहा कि डॉ. सरन की मदद करना। वास्तव में मुझे हिंगुला क्षेत्र में नंदिरा के प्रबंधक, बलराम ओसीपी के पीओ और एसओ के रूप में उनके अधीन काम करने पर गर्व है।” 

मैंने उन्हें नंदिरा खदान के शुरूआती कार्यकाल के बारे में इतनी शानदार जानकारी देने के लिए हृदय से धन्यवाद दिया। 

ऐसे अनेक क़िस्से आपको कोयलांचल में सुनने को मिलेंगे। उनके बारे में कभी भी कोई ग़लत शब्द नहीं कह पाएगा कि उन्होंने ग़ुस्से में बात की या किसी को फटकारा या किसी को सुना नहीं या तुम्हें मेरी टीम में लेने से पहले सोचना होगा-जैसे अपमानजनक शब्दों से बेइज़्ज़त किया होगा। 

एक बार और मेरी मुलाक़ात हुई थी, BHU IIT के कैम्पस में, कोल इंडिया के लिए मैनेजमेंट ट्रेनी के चयन के दौरान। एमसीएल की तरफ़ से GM (HRD) की अनुपस्थिति की वजह से वहाँ जाने का अवसर मिला था। वहाँ मैंने उन्हें भारत सरकार के पूर्व कोयला सचिव श्री पी सी पारख की पुस्तक “कॉन्सपिरेटर ऑर क्रूसेडर” के मेरे हिंदी अनुवाद की पुस्तक “शिखर तक संघर्ष” भेंट की थी। उन्होंने मुस्कुराते हुए पुस्तक स्वीकार तो अवश्य की थी, मगर उन्होंने पढ़ी या नहीं, यह नहीं कह पाऊँगा। 

उनके सीनियर श्री कुलमणि बिस्वाल, जिन्हें वे अपना गुरु मानते है कहते हैं, “प्रसाद मेरे छोटे भाई की तरह है। वह दानवीर कर्ण है, जो भी उनके पास जाता है ख़ाली हाथ नहीं लौटता।” फिर एक दीर्घ साँस लेते हुए कहने लगे, “जैसा कि आपको मालूम होगा कि एनटीपीसी को सन्‌ 2007 में 10 कोल ब्लॉक आवंटित हो गए थे, मगर 2013 तक एक भी कोल माइंस खोल नहीं पाए थे। उस समय सन्‌ 2013 में मेरा एनटीपीसी में डायरेक्टर फाइनेंस के पद पर चयन हो गया था। चूँकि एमसीएल के डायरेक्टर फाइनेंस का मुझे अनुभव था, इस वजह से वहाँ मुझे डायरेक्ट इंचार्ज (माइंस) बना दिया। तत्पश्चात् श्री पी एम प्रसाद का ईडी (माइंस) के पद पर चयन किया गया। अपने करिश्माई नेतृत्व के कारण उन्होंने टेंडर आमंत्रित करने से लेकर झारखंड के बड़कागांव के पास पकरी बरवाडीह खदान और ओड़िशा की दुलुंगा खदान से कोयला उत्पादन शुरू कर पॉवर प्लांट भेजना शुरू करवा दिया। इस वजह से पॉवर जनरेशन की वेरिएबल कॉस्ट चार रुपए से घटकर दो रुपए हो गई। यह सब उनकी टीम बिल्डिंग कैपेसिटी, स्थानीय प्रशासन से मधुर सम्बन्ध, तकनीकी दक्षता और अनेक विपरीत परिस्थितियों में काम करने के कारण ही सम्भव हुआ। बाद में NCL के निदेशक तकनीक बने और CIL के चेयरमैन बनने का रास्ता खुल गया।” 

कनिहा क्षेत्र के पूर्व महाप्रबंधक किशोर कुमार राउल कहते हैं, “जब मैं WCL की भूमिगत खदान में ओवरमैन था, तब एक दुबला-पतला लड़का JET में ज्वाइन किया था। सबकी मदद में आगे और उतना ही मधुर भाषी भी। उस समय मेरी शादी नहीं हुई थी। हम लोग क्रिकेट खेल रहे थे, बॉल फेंकते समय अचानक मेरा पैर आगे नहीं जाकर पीछे जाने लगा, फिर पता नहीं मुझे क्या हुआ? मैं नीचे गिरकर बेहोश हो गया। बाद में मुझे पता चला कि श्री पीएम प्रसाद मुझे अपनी गाड़ी से भेजकर अस्पताल में एडमिट करवा कर मेरा इलाज करवाया। नर्वस सिस्टम की बीमारी से धीरे-धीरे मैं ठीक हो गया। आज भी जब वह दिन याद करता हूँ तो उनके प्रति श्रद्धा भाव अपने आप उमड़ पड़ते हैं।”

कनिहा क्षेत्र के मेरे मित्र सतीश ओक कहते हैं, “प्रसाद सर इतने भावुक व्यक्ति थे कि किसी को दुख में देखकर विचलित हो जाते थे। कई बार तो वे अपनी गाड़ी ज़रूरतमंदों के लिए छोड़ देते थे और ख़ुद पैदल चलकर अपने घर जाते थे। इसी सिलसिले में एक बार वे पैदल जा रहे थे तो मैंने अपने स्कूटर पर बैठाकर उन्हें घर छोड़ा था। आज के बारे में तो आप देखोगे गाड़ियों के प्रति इतना मोह है कि गाड़ी छोड़ना तो दूर की बात है, किसी पैदल जाते अधिकारी को बैठने के लिए लिफ़्ट नहीं देंगे।” यह कहते हुए ओक साहब ने दीर्घ साँस ली और फिर उनकी दूरदर्शिता और मानवीय गुणों के बारे में विस्तार से बताते हुए कहने लगे, “जब वे पद्मपुर खदान के प्रबंधक थे, एक रात चंद्रपुर में एक सड़क दुर्घटना में एक ड्रिल ऑपरेटर राजकुमार टिपले को सिर में चोट लग गई। बिना समय बर्बाद किए प्रसाद सर ने श्री टिपल को नागपुर के अस्पताल भेजने की व्यवस्था की। श्री टिपल कोमा में थे। उन्होंने डॉक्टर और प्रबंधक के अधीन प्रशिक्षित बचावकर्मी को अपने साथ चलने का निर्देश दिया। जब एम्बुलेंस नागपुर से लगभग 60 किमी दूर थी तो श्री टिपल के दिल ने धड़कना बंद कर दिया। डॉक्टर और बचाव प्रशिक्षित अंडरमैंजर द्वारा उन्हें तुरंत कार्डियो पल्मोनरी रिससिटेशन दिया गया और उन्हें पुनर्जीवन मिला। प्रसाद सर द्वारा दिखाई गई दूरदर्शिता के कारण यह सम्भव हो सका। लंबे इलाज के बाद श्री टिपल पूरी तरह ठीक हो गए और दोबारा ड्यूटी पर लौट आए। इस प्रकार प्रसाद साहब के फ़ैसले से उनके अधीन काम करने वाले कर्मचारी की जान बच गई।” 

ऐसा ही एक क़िस्सा लिंगराज क्षेत्र के तत्कालीन क्षेत्रीय कार्मिक प्रबंधक श्री अरुण राव ने एक दर्दनाक हादसे को बताते हुए कहा कि, “मुझे नंदिरा कोलियरी में उनकी पोस्टिंग के दौरान उनके साथ अपने जुड़ाव की याद आती है, जब वह एमसीएल में परियोजना अधिकारी थे। यह कार्यबल के प्रति उनकी सहानुभूति थी जिसने सभी ट्रेड यूनियन नेताओं और साथी अधिकारियों का दिल जीत लिया। कोयला खनन के इतिहास में शायद ही कभी किसी व्यक्ति को इतने मानवीय दृष्टिकोण के साथ इस पद पर देखा गया है। कोलियरी इंजीनियर घोसराय की घर में गैस सिलेंडर फटने से मृत्यु हो गई थी, तो उनकी आँखें सजल थी। हर प्रकार से उनकी मदद की थी।” 

“कोई और बात, सर?” मैंने उससे और आगे पूछा। 

इस बार, श्री अरुण राव, एक्स-एपीएम, लिंगराज क्षेत्र ने कनिहा क्षेत्र पर दार्शनिक तरीक़े से अपने विचार व्यक्त किए, “जो लोग कनिहा खदानों को खोलने के कठिन संघर्ष को याद करते हैं, उन्हें निश्चित रूप से याद होगा कि कनिहा का भूमि पूजन समारोह लिंगराज क्षेत्र में उनकी पहली जीएम पोस्टिंग के दौरान हुआ था, जहाँ उनकी विनम्रता जरडा ग्रामवासियों के सभी विभाजनकारी समूहों का दिल जीत सकी थी, जो अपने आप में एक ऐतिहासिक घटना थी। मुझे वह दिन भी याद है जब श्री पीएम प्रसाद पहली बार लिंगराज क्षेत्र के जीएम बने थे, बराक ओबामा भी पहली बार अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे। ठीक है न?” 

“सही कह रहे हैं आप। पीएम प्रसाद साहब हमारे लिए किसी बराक ओबामा से कम नहीं थे, सर। ज़रूर, मैं इस प्रेरक प्रकरण को इस आलेख में जोड़ूँगा,” यह कहते हुए मेरी आँखों में चमक उभर आई। 

उसके बाद, मैंने हिंगुला क्षेत्र के पूर्व महाप्रबंधक महमूद मियाँ साहब, (वर्तमान में जीएम (प्रोडक्शन), एमसीएल) को फोन किया कि वे श्री पीएम प्रसाद के बारे में कुछ अतिरिक्त जानकारी दें, क्योंकि वे उनके कॉलेज के जूनियर थे। उन्होंने मुझसे कहा कि, “माली जी, आपने प्रसाद सर के बारे में जो कुछ भी जानकारी दी, वह पर्याप्त नहीं है। वास्तव में एक महान व्यक्तित्व, जिसमें कोई अहंकार नहीं है। जो कोई भी उनसे किसी भी मदद के लिए मिला, हर कोई अपने चेहरे पर मुस्कान के साथ लौटा। जब वे एरिया जीएम थे, तब मुझे हिंगुला एरिया में उनके साथ काम करने का अवसर मिला था। बहुत तेज़ी से निर्णय लेते थे। हर कोल इंडियंस द्वारा हमेशा याद रखने योग्य एक उत्कृष्ट व्यक्तित्व। ईश्वर उन्हें और उनके परिवार को कोयला उद्योग में उनके लंबे अनुभव से उनकी बहुमूल्य सेवा देने दीर्घायु जीवन का आशीर्वाद दें।”

“सर, आपने जो भी कहा वह तो हर कोई जानता है। कृपया अपने कुछ व्यक्तिगत उदाहरण दें,” मैं ने उनसे अनुरोध किया। 

वे कुछ समय चुप रहे जैसे कि वे अपने पिछले दिनों की कुछ पुरानी यादों को ताज़ा कर रहे हों। एक लंबी साँस लेते हुए, उन्होंने बताना शुरू किया, “1987, नवंबर। मैं और मेरे एक सहपाठी बालारामुडु प्रबंधन प्रशिक्षु के तौर पर नागपुर में डब्ल्यूसीएल के कार्यालय हैदराबाद से सीधे गए थे, लेकिन हमें जॉइन करने से इनकार कर दिया गया था, क्योंकि हम जो हलफनामा स्टांप पेपर मूल्य लाए थे, वह केवल 15 रुपये का था। जबकि यह कम से कम 50 रुपये का होना चाहिए था। हैदराबाद से रवाना होने से पहले हमें यह नहीं पता था। अब, कहाँ जाना है, हम महाराष्ट्र के लिए बहुत नए थे, कोई विचार नहीं था। हमें अंदाज़ा था कि हमारे सीनियर श्री पीएम प्रसाद चंद्रपुर में पोस्टेड हैं, हम वहाँ जाएँगे। हम उनके क्वार्टर में पहुँचे, अपनी समस्या बताई। उसने तुरंत हमारे लिए रात के खाने की व्यवस्था की और हमें रात में वहाँ सोने की अनुमति दी। अगली सुबह हमें एक दक्षिण भारतीय होटल में नाश्ता करवाया गया और डब्ल्यूसीएल में पोस्टिंग के लिए नया हलफनामा तैयार करने के लिए हैदराबाद जाने की सलाह दी गई। हमने ऐसा किया और डब्ल्यूसीएल में भर्ती हो गए। इसलिए श्री प्रसाद शुरू से ही बहुत विनम्र स्वभाव के हैं।” 

“सर, आपकी बहुत अच्छी यादें हैं! क्या आप हिंगुला क्षेत्र के जीएम रहते हुए उनकी कुछ और यादें साझा कर सकते हैं?” मैंने उसे बीच में टोक दिया और अपना नया सवाल पूछा। उन्होंने मुस्कुराते हुए सकारात्मक ऊर्जा के साथ उत्तर दिया, “प्रसाद सर 2012 में हिंगुला क्षेत्र के जीएम बनकर आए थे, उस समय मैं हिंगुला ओसीपी का परियोजना अधिकारी था, (मेरा जून 2010 में राजमहल ओसीपी से एमसीएल में स्थानांतरण हुआ था)। उस समय बलराम साइडिंग नंबर 09 का नवनिर्माण किया गया था, लेकिन दनारा के ग्रामीण अपने आर एंड आर मुद्दों के कारण उसे शुरू नहीं होने दे रहे थे। वह साइडिंग कई दिनों और महीनों से बेकार पड़ी थी। ग्रामीणों के साथ काफ़ी अनुनय-विनय के बाद, संवाद विफल रहा। प्रसाद सर ही पुलिस बल लेकर आए थे और साइडिंग नंबर 09 को पुलिस सुरक्षा में शुरू किया था। हिंगुला क्षेत्र में यह उनकी पहली उपलब्धि थी।” 

“क्या कुछ अन्य बाधाएँ भी आई थीं?” मैंने फिर पूछा। 

उन्होंने जवाब दिया, “हाँ, हिंगुला ओसीपी 12.00 मैट्रिक टन खदान सीमा के भीतर भूमि की अनुपलब्धता के कारण बुरी तरह से प्रभावित था (2013-14 के दौरान)। हालाँकि ऐसी परिस्थितियों में परिधीय ग्रामीणों से भारी अशांति और बाधा के कारण खदानें कभी भी ईसी क्षमता तक नहीं पहुँच पाईं, लेकिन उन्होंने 15 मिलियन टन की ईसी प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, ताकि हम 15 मीटर भूमि, विशेष रूप से भालुगड़िया गाँव की भूमि में प्रवेश कर सकें। उस समय हमने एक और मील का पत्थर हासिल किया था, वह था भालुगड़िया गाँव की ज़मीन में प्रवेश करने से पहले एक बड़े नाले का डायवर्जन। विश्वास कीजिए कि प्रसाद सर, आरके पाढ़ी, आरके साहू और मेरी मदद से हम उन्हें रोज़गार दिए बिना लगभग 2 कि.मी. लंबाई और 25 मीटर चौड़ा, 5 मीटर गहरा नाला बना दिया था। इसके बाद, मेरा बसुंधरा क्षेत्र में स्थानांतरण हो गया और प्रसाद सर ने एमसीएल छोड़ दिया था। नाला डायवर्जन से लगभग 25 मिलियन टन कोयला उपलब्ध हुआ। यह प्रसाद सर की वजह से ही सम्भव हो सका। माली जी, उनके बारे में बताने के लिए अंतहीन कहानियाँ हैं। मुझे थोड़ा आराम करना चाहिए क्योंकि मैं आपको उनके बारे में लगातार विस्तार से बता रहा हूँ।” 

“कृपया थोड़ा आराम करें, लेकिन आपको मुझे उनके व्यक्तित्व के बारे में सब-कुछ समझाना होगा; क्योंकि यह आलेख हमारे देश के प्रतिष्ठित प्रबंधन संस्थानों के लिए फ़ायदेमंद होगा,” मैंने महमूद मियाँ जी के साथ विस्तृत पूछताछ के पीछे अपने छिपे हुए एजेंडे को बताया। 

वह ज़ोर से हँसे और मुझसे कहने लगे, “इसका मतलब है कि आप हमारे चेयरमैन के नेतृत्व गुणों के आधार पर एक केस स्टडी तैयार कर रहे हैं।” 

“जी सर। न केवल मैं, बल्कि हर कोल इंडियन उनके जीवन के हर पहलू को जानना चाहता है, ताकि वे करियर के विकास के लिए अपने भीतर उन गुणों को तैयार कर सकें,” मैंने उस बारे में अपने विचार व्यक्त किए। 

वह सहमत हो गए और मुझे स्पष्ट रूप से समझाना शुरू किया, “बहुत अच्छे विचार! आपको हमारे खनन कार्यों के तकनीकी पहलुओं को देखना होगा। उस समय, हमें हिंगुला ओपनकास्ट में 440 हेक्टेयर वन भूमि के लिए एफसी क्लीयरेंस की सख़्त ज़रूरत थी। उन दिनों फ़ॉरेस्ट कार्यालय से फ़ाइलों को मंज़ूरी दिलाना बहुत मुश्किल था। मैंने और प्रसाद सर ने उपर्युक्त भूमि के लिए स्टेज-।, वन मंज़ूरी के लिए लंबे समय तक प्रयास किया। हर तरह से हमारे निरंतर प्रयासों के बावजूद, फ़ाइल को क्लियर नहीं किया जा सका और उनका तबादला हो गया। लेकिन अगले डीएफओ ने हमारी मदद की और हम दोनों को एरिया ऑफ़िस से छोड़ने से पहले 440 हेक्टेयर वन भूमि के लिए स्टेज-। की मंज़ूरी दे दी। इस तरह, प्रसाद सर के योगदान से एरिया और कंपनी को काफ़ी हद तक मदद मिली है।” 

“ग्रेट सर, हिंगुला क्षेत्र की जीवन रेखा के रूप में इस तरह के जटिल वन मंज़ूरी के लिए प्रसाद सर और आपको बधाई। कोई अन्य महत्त्वपूर्ण उदाहरण क्या आप बताना चाहेंगे?” मैंने आश्चर्य व्यक्त किया और उनके महान प्रयासों की सराहना की। 
मैंने सोचा, निश्चित ही श्री महमूद मियाँं ने कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण देने से पहले फोन पर सिर हिलाया होगा। 

उन्होंने फोन पर ख़ुशी से कहा, “एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण और जीवन रक्षक घटना मैं आपको बताना भूल गया था। 

“कृपया ध्यान से सुनिए। 31.12.2012 को लगभग 5.00 बजे, मैं कुछ सरकारी कार्य के लिए उनके साथ कार्यालय में था। अचानक, मेरे सीने में और मेरे बाएँ हाथ में दर्द हुआ। मैंने प्रसाद सर की अनुमति से तुरंत कार्यालय छोड़ दिया (मैंने उनसे कहा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है, मैं कार्यालय छोड़ दूँगा। इस बीच मैं डॉ. चक्रपाणि को बुला दिया था; तब वह भरतपुर कॉलोनी डिस्पेंसरी में नियुक्त थे)। वह तुरंत भरतपुर कॉलोनी में मेरे क्वार्टर में पहुँचे। उन्हें साथ लेकर हम तुरंत केंद्रीय अस्पताल एनएससीएच, तालचेर पहुँचे। वहाँ मुझे बताया गया कि यह दिल का दौरा था। मुझे जीवन रक्षक इंजेक्शन देकर तुरंत अपोलो अस्पताल भुवनेश्वर भेज दिया गया। 

“सूचना मिलने पर प्रसाद सर तुरंत एनएससीएच अस्पताल पहुँचे। मेरे साथ एक विशेष डॉक्टर और दो अधिकारी (आरके पाढ़ी और आरके साहू) थे। प्रसाद साहब बारीक़ी से मेरी हालत अपर निगरानी रख रहे थे। 
01.01.2013 को प्रभावित धमनी में एक स्टेंट लगाया गया। प्रसाद साहब ने मेरे स्वास्थ्य की स्थिति की निगरानी के लिए तीन अधिकारियों की एक टीम भेज दी थी। मैं उनका आजीवन ऋणी हूँ। वे वास्तव में एक महान व्यक्तित्व के धनी हैं। वे इस घटना को आज तक याद करते हैं और जब भी समय मिलता है तो मेरी स्वास्थ्य स्थिति के बारे में पूछते हैं। अब मुझे लगता है, मैंने आपके शोध पत्र के लिए आपको अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश की है।” 

लिंगराज क्षेत्र के पूर्व महाप्रबंधक श्री सुबीर चंद्रा, बाद में सीसीएल के डायरेक्टर बने, उन्होंने अपनी सेवानिवृत्ति के बाद जब मैं बीमार था, कुशल क्षेम पूछने के लिए फोन किया और बातों बातों में कहने लगे, “मुझे कोविड हो गया था और मैं सीसीएल हॉस्पिटल में भर्ती था तो सीसीएल के सीएमडी पीएमप्रसाद ख़ुद अपने घर बना हुआ खाना मेरे लिए लाते थे। ऐसा सीएमडी इस दुनिया में ढूँढ़ने से नहीं मिलेगा।”

बीसीसीएल के पूर्व महाप्रबंधक (वाशरी) श्री मांगीलाल प्रजापति ने अपने अतीत में झाँकते हुए मुझे फोन पर कहा, “जब मैं बीसीसीएल में महाप्रबंधक वाशरी था, उस समय वे डायरेक्टर से सीएमडी बीसीसीएल बने थे। उन्होंने मुझे बहुत इज़्ज़त दी। जब कभी विज़िट पर जाते थे तो मुझे पहले फोन कर देते थे कि इतने बजे तक तैयार रहो, आज इस एरिया की विज़िट पर जाएँगे। उनके साथ जाने से मुझे भी इज़्ज़त मिलती थी। बाक़ी लोगों पर अलग इंप्रेशन पड़ता था। और ऐसे भी अनजान लोगों से मेरा परिचय करवाते थे तो कहते थे कि प्रजापति साहब मेरे पुराने मित्र है। उनके साथ रहने में एक अलग आनंद की अनुभूति होती थी। सब्सिडिएरीज़ के ऑफ़िसर्स व कर्मचारी मिलते थे तो ज़रूर कहते थे कि प्रसाद सर भगवान का स्वरूप है। नर में नारायण।”

इसी कड़ी में जब मैंने उनकी अन्य स्मृतियों को सहजने के लिए कोल इंडिया के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर (सिविल) हमारे साहित्यिक मित्र श्री ओम प्रकाश मिश्रा साहब से फोन पर बातचीत की तो उन्होंने कोल इंडिया के अर्जित अनुभवों के यादों के झरोखे को खंगालते हुए कहने लगे, एक दार्शनिक मुद्रा में, “लीडरशिप अगर सीखनी हो तो पीएम प्रसाद साहब से सीखें। लीडरशिप ही नहीं, सिंपलीसिटी भी। गाँधी जी की तरह सादा जीवन, उच्च विचार। सुनाने को तो मेरे पास अशेष क़िस्से हैं, मगर दो-तीन उदाहरणों से आप समझ जाएँगे कि वह कैसे दिव्य व्यक्तित्व के धनी थे! ना भूतो, ना भविष्यति।” कहते हुए उन्होंने एक दीर्घ साँस ली और कुछ समय के लिए नीरव हो गए। कुछ मिनट बाद फिर कहने लगे, “एक बार मुझे उनके साथ कोलकाता से बाहर किसी मीटिंग में जाना था। साथ में कोल इंडिया के उच्च अधिकारी और उनके परिवार भी थे। पटना एयरपोर्ट से हमें फ़्लाइट पकड़नी थी। उस दिन फ़्लाइट एक घंटा लेट थी। पटना एयरपोर्ट पुराना होने की वजह से वहाँ लॉन्ज की भी फ़ैसिलिटी नहीं है। कहीं दो-तीन सीटें ख़ाली मिली तो वहाँ मातृ शक्ति को बैठा दिया। हम एयरपोर्ट पर इधर-उधर घूमने लगे। मैंने चेयरमैन साहब से कहा, ‘सर, आप बैठिए। मैं आपके लिए कॉफ़ी लेकर आता हूँ।’

“उन्होंने मेरी तरफ़ देखा और कहा, ‘चलो, मैं भी चलता हूँ।’

“मैंने कहा, ‘सर, आप बैठिए। मैं लेकर आ जाऊँगा।’

“मगर उन्होंने मेरी बात नहीं मानी। मैं अपने दोनों हाथों में कॉफ़ी कप लेकर जा रहा था तो वे भी अपने दोनों हाथों में दो कॉफ़ी के कप पकड़े हुए थे। मन-ही-मन मैं शर्म से पानी-पानी हो रहा था। कोल इंडिया जैसी कंपनी के चेयरमैन कॉफ़ी के कप पड़कर जा रहे हैं, अपने दोनों हाथों में, सोचने मात्र से मन में एक अलग फ़ीलिंग आ रही थी। बातें करते करते हम लगभग पौन घंटे पैरों पर खड़े रहे। मुझे झिझकते देखकर वे मुस्कुराकर कहने लगे, ‘हम खदांची लोग हैं। पाँवों पर खड़े रहना हमारी आदत है।’ इससे ज़्यादा और सादे जीवन के उदाहरण आप क्या देख सकते हैं! उनके व्यक्तित्व के ऐसे गुण देखकर ही उनके संपर्क में आने वाले सारे लोग उनके फ़ैन हो जाते हैं।” कहकर मिश्रा साहब चुप हो गए। यह देखकर, “दूसरे प्रेरक उदाहरण?” मैंने उनसे पूछा। 

“हाँ, यही नहीं, एक बार और मैंने देखा कि सीएसआर कॉन्क्लेव के सांस्कृतिक प्रोग्राम में हर टीम से व्यक्तिगत तौर पर जाकर मिलकर उनसे दस-पंद्रह मिनट उनके घर-परिवार, बाल-बच्चों के बारे में पूछताछ करने आत्मीय ढंग से मुझे लगा कि प्रसाद सर लोगों के दिल में राज करते हैं। और अंत में, एक और उदाहरण देना चाहूँगा कि उनके घर में, मैं अपनी बेटी के शादी का निमंत्रण कार्ड देने गया था तो मैंने देखा कि भाभी जी ख़ुद अपने हाथ से चाय बना कर हमें सर्व कर रहीं थी। जबकि कोल इंडिया जैसी महारत्न कंपनी के चेयरमैन के पास कुक वग़ैरह की सारी सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं। उसके बावजूद भी उनका पारिवारिक आत्मीय माहौल किसी भी अजनबी को उनसे जोड़ देगा यही सच्ची लीडरशिप है। बिना अथॉरिटी का प्रयोग किए अपने अधीनस्थों के हृदय में समा जाना। मुझे लगता है कि ये तीन उदाहरण आपके आलेख के लिए पर्याप्त होंगे,” कहते हुए मिश्रा साहब ने मुझसे विदा ली। 

मेरे मित्र बेणुधर महंत, पूर्व मुख्य प्रबंधक (खनन) ने भी इस शोध पत्र पर अपनी टिप्पणी दी और उसमें अपनी टिप्पणी जोड़ने की हार्दिक इच्छा व्यक्त की। एक ज़िम्मेदार लेखक के रूप में, मैंने विपुल पाठकों के अवलोकनार्थ उनकी टिप्पणी संलग्न की है:

“कोल इंडिया के चेयरमैन, श्री पी.एम. प्रसाद मेरे पूरे सेवा जीवन में प्रेरणा-स्रोत रहे हैं। हालाँकि मुझे उनके अधीन काम करने का सौभाग्य नहीं मिला, लेकिन हम दोनों तालचेर क्षेत्र से जुड़े थे, जहाँ मुझे अक्सर संयुक्त रूप से आयोजित कार्यक्रमों के दौरान उनसे मिलने का अवसर मिलता था। वे अत्यंत प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं। जब भी क्लब में जनरल नॉलेज या करंट अफ़ेयर्स पर कोई बौद्धिक खेल आयोजित होते थे तो वे हमेशा उन स्पर्धाओं में विजेता बन जाते हैं। उनकी दयालुता, सत्यनिष्ठा और हँसमुख स्वभाव ने उनके संपर्क में आने वाले सभी लोगों पर एक लंबे समय तक चलने वाली अमिट छाप छोड़ी। वह एक सच्चे नेता थे, जो अधिकार के माध्यम से नहीं, बल्कि उदाहरण के माध्यम से नेतृत्व करते थे। उनकी विनम्रता और अटूट समर्पण ने सभी स्तरों पर आत्मविश्वास और सम्मान को प्रेरित किया। एक बात यह मेरी कल्पना से परे है कि सार्वजनिक हड़ताल के समय में, जब अधिकांश खदानें बंद हो गईं, तो स्थानीय ग्रामीणों ने उनके प्रति वास्तविक सम्मान व्यक्त करते हुए उनके समर्थन में रैली की। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि एक नेता और उसके लोगों के बीच एक असाधारण बंधन का प्रदर्शन करते हुए उनकी खदान में उत्पादन निर्बाध रूप से जारी रहा। यह दुर्लभ सद्भाव, सहानुभूति, निष्पक्षता और निःस्वार्थ सेवा उनके प्रति अपार स्नेह और सम्मान को दर्शाता है। उनकी महानता न केवल उनकी पेशेवर उपलब्धियों में, बल्कि उनकी मानवता में भी निहित है। उनके चरित्र, दयालुता और विनम्रता ने उन्हें वास्तव में ईश्वर प्रदत्त गुणों से युक्त व्यक्ति के रूप में चिह्नित किया। मैं उनसे बहुत प्रभावित रहा हूँ और उनकी सेवानिवृत्ति के बाद भी उनका बहुत सम्मान करता हूँ। ऐसे व्यक्ति के प्रति मेरा आभार व्यक्त करने में शब्द कम पड़ जाते हैं क्योंकि वास्तव में सूर्य के सामने दीपक रखने का कोई अर्थ नहीं है।” 

श्री पीएम प्रसाद के कार्यशैली की सबसे बड़ी ख़ासियत थी, अगर किसी अधिकारी ने उनके साथ काम किया या उनके अंचल का है तो वे हर तरीक़े से उनकी मदद करेंगे। चाहे पोस्टिंग में हो, चाहे प्रमोशन में हो या चाहे उनका व्यक्तिगत कोई भी मसला ही क्यों नहीं हो। अगर वह कुछ करने या देने की कैपेसिटी में हो तो वे अपने उन अधिकारियों के लिए ज़रूर करेंगे। ऐसे उदाहरण आपको हर सब्सिडी में देखने को मिल जाएँगे। कभी-कभी तो मैं भी सोचता हूँ कि काश! मैंने भी उनके साथ काम किया था तो मैं भी उनकी तरह . . . 

ऐसी बात नहीं थी कि उनकी सरलता, सहजता और सहृदयता का मैंने फ़ायदा नहीं उठाया, मगर अपरोक्ष रूप से। उनके आशीर्वाद के बिना मेरा प्रमोशन नहीं हो सकता था। केवल मेरा ही नहीं, मेरे जैसे अनेक अधिकारी होंगे, जिन्हें प्रसाद सर का वरद हस्त प्राप्त हुआ। भले ही, इस प्रमोशन से मेरी प्रोफ़ेशनल जीवन में कोई ख़ास पसंद नहीं पड़ा, मगर मेरे आत्म-स्वाभिमान और मान-सम्मान की रक्षा हो गई। 

एक और उदाहरण आपके समक्ष रखना चाहूँगा कि हिंदी साहित्य जहाँ मुझे देश-विदेश में विशिष्ट पहचान दिलाने में सफल रहा, वही यह साहित्य अनुराग मुझे प्रोफ़ेशनल जीवन में धक्के खिलाने में भी सबसे आगे रहा। हिंदी साहित्य के प्रति कुछ विशेष अनुराग होने के कारण जब एमसीएल के राजभाषा आयोजन में “हलधर नाग ग्रंथावली” और “शहीद बिका नायक की खोज” उपन्यास का विमोचन हुआ तो उसके दूसरे दिन ही मेरा स्थानांतरण बिना कुछ पूछे महाप्रबंधक राजभाषा के तौर पर हुआ। ऐसी अवस्था में मुझे अपना स्थानांतरण रुकवाने के लिए फिर से दो नाम आँखों के सामने याद आए। एक श्री जीपी सिंह और दूसरा श्री कुलमणि विश्वाल। उन्होंने अपना प्रयास किया, सफलता मिलती न देखकर श्री बिस्वाल मुझे उनके साथ कोलकाता ले जाकर मेरी प्रसाद सर से भेंट करवाई और उनसे कहा, “सेवानिवृत्ति के बाद अगर दिनेश माली को नौकरी करनी पड़े तो महाप्रबंधक राजभाषा के नाम से नहीं कर पाएँगे। इसलिए एक-दो साल की नौकरी बची है, जहाँ वह चाहता है, वहीं रहे तो ज़्यादा बेहतर रहेगा।”

उन्होंने मेरी बात को ग़ौर से सुना। मेरी तरफ़ देखा और कहा, “मैंने निदेशक तकनीकी को बोल दिया है। तुम्हारा काम हो जाएगा।”

अवश्य ही, प्रसाद सर साहब की हिंदी साहित्य के प्रति इतनी ज़्यादा श्रद्धा नहीं थी तो मैंने उन्हें अपनी अंग्रेज़ी अनुवाद की पुस्तक भेंट की तो उन्होंने कहा, “यह किताब तो आज ख़त्म कर दूँगा।”

और मुझे विश्वास है कि सच में उन्होंने वह पुस्तक पढ़ ली होगी। 

बहुत सारे ऐसे क़िस्से आपको जहाँ जहाँ उन्होंने काम किया, आपको सुनने को मिलेंगे। इस प्रकार एक दिव्य पुरुष की तरह उन्होंने कोल इंडिया में अनेक ऐसे उदाहरण स्थापित किए हैं, जो चिरकाल के लिए कोल इंडिया के इतिहास में याद किए जाएँगे। यह आलेख लिखते समय मुझे लिंगराज खुली खदान के पूर्व परियोजना अधिकारी (संप्रति निदेशक) श्री संजय झा की एक लघु कथा याद आती है, “एक जंगल में आग लगी हुई थी। दावानल। एक चिड़िया अपने चोंच में पानी भरकर उसे बुझा रही थी तो किसी ने उसे पूछा, “क्या इस अग्नि विभीषिका को बुझा पाओगी?” 

उसने हँसकर उत्तर दिया, “यह मैं नहीं जानती। मगर इतना अवश्य जानती हूँ कि जब भी इस जंगल का इतिहास लिखा जाएगा तो मेरा नाम आग लगाने वालों में नहीं, बल्कि बुझाने वालों में लिखा जाएगा।”

सच में, आज यह लघुकथा कोल इंडिया चेयरमैन श्री पीएमप्रसाद के जीवन पर खरी उतरती है, जिन्होंने कोल इंडिया के अधिकारियों के दुखों के दावानल पर अपनी दयादृष्टि के जल से बुझाने का भरसक प्रयास किया है। यही कारण है कि आज यह स्वर्णिम इतिहास लिखा जा रहा है। 

कोल इंडिया लिमिटेड के चेयरमैन श्री पीएम प्रसाद के जीवन के अनेक अनछुए प्रसंग

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