कंध महिला का गीत
अनूदित साहित्य | अनूदित कविता दिनेश कुमार माली15 Jun 2020 (अंक: 158, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
मूल लेखिका: प्रो. नंदिनी साहू
अनुवादक: दिनेश कुमार माली
याद आ रहा है मुझे
देखा था कभी मैंने तुम्हारे गवाक्ष से
घूँघट के पीछे छुपा एक बुझा चेहरा ।
मैं ही हूँ वह आदिवासी महिला
कंध जाति की
शायद सत्तर साल की,
मेरी कोई जन्मतिथि नहीं
तथ्य को स्वीकार करने में संकोच नहीं
कि मेरा कोई इतिहास नहीं
कोई लिपिबद्ध मेरी भाषा नहीं,
मेरा कोई घर नहीं,
मेरा कोई अता-पता नहीं,
मेरा कोई परिमार्जन नहीं,
मेरे पास कोई पेंसिल नहीं
कोई घड़ी नहीं,
कोई जेब नहीं,
कोई कंबल नहीं, कोई बिस्तर नहीं, कोई पेचकस नहीं,
कोई जींस के कपड़े नहीं, कोई डिटर्जेंट नहीं,
कोई चाबी नहीं, कोई तंबाकू की थैली नहीं,
कोई गहने नहीं;
केवल है मेरे पास
मेरी सहायक प्रतिमाओं
के बारे में तुम्हारा अविश्वास।
अनेक सालों की राशि
इस खेल के प्रत्याशी
मेरे पूर्वजों की आशा
एक दिन पूर्ण होगी इच्छा।
फिर भी मैं गाती हूँ गीत
ख़ुश रहो सदैव मेरे मीत;
कैसे गिनूँ मैं अपने दुख?
मना करता है मेरा मुख
नहीं होता है मेरा मन
कैसे फेरूँ अपने नयन?
जिससे बनूँ मैं न ज्वाला
न लावा, न ही लारवा
एक परिवर्तित अस्तित्व का।
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