अजनबी औरत
अनूदित साहित्य | अनूदित कविता देवी नागरानी15 Sep 2019
सिंध की लेखिका- अतिया दाऊद
हिंदी अनुवाद –देवी नागरानी
(एक थका हुआ सच - अनुवादक देवी नागरानी)
आईने में अजनबी औरत क्या सोचती है
मैंने पूछा ‘बात क्या है?’
वह मुझसे छिपती रही
मैं लबों पर लाली लगाती हूँ तो वह सिसकती है
अगर उससे नैन मिलाऊँ तो
न जाने क्या-क्या पूछती है
घर, बाल-बच्चे, पति सभी ख़ुशियाँ मेरे पास
और उसे न जाने क्या चाहिये?
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ग़ज़ल
- अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
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