तू ही एक मेरा हबीब है
शायरी | ग़ज़ल देवी नागरानी15 Sep 2025 (अंक: 284, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
11212 11212
तू ही एक मेरा हबीब है
मेरी धड़कनों के क़रीब है
बड़ी मुश्किलों का है सामना
कि सभी के सर पे सलीब है
मेरे मर्ज़ की है शफ़ा तू ही
तू ही लाजवाब तबीब है
मेरी ख़्वाहिशों में शरीक तू
मेरी ज़िंदगी तू नसीब है
मुझे आज़माते हो बारहा
तेरी कार्रवाई अजीब है
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
ग़ज़ल
- अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- तू ही एक मेरा हबीब है
- नाम तेरा नाम मेरा कर रहा कोई और है
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
आप-बीती
कविता
साहित्यिक आलेख
कहानी
अनूदित कहानी
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं