बादल गरजे बरसे
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता देवी नागरानी15 Dec 2025 (अंक: 290, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
बादल गरजे घनघन घन घन
छाई घटा कारी घन घोर॥
भीनी भीनी ख़ुश्बू छाई
महकी मस्त हवा चहुँ ओर॥
रिमझिम रिमझिम पानी बरसे
प्यासा मोर मचाए शोर॥
सावन की हरयाली छाई
मस्त फ़ज़ा में भीगी भोर॥
कल कल कल कल पानी बहता
प्यास बुझाए प्यासे ढोर॥
ऊँची उड़ान भरे मन ऐसे
जैसे पतंग की कोई डोर॥
मदमाती मस्ती है देवी
आई है ख़ुशियों की भोर॥
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