ऐ री बंदरिया
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता देवी नागरानी15 Dec 2025 (अंक: 290, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
ऐ री बंदरिया मेरी
पूँछ कहाँ है तेरी
ढूँढ़ उसे यूँ बाहर भीतर
नींद उड़ी है मेरी
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बाल साहित्य कविता
ग़ज़ल
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- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
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- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
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- वक्त की गहराइयों से
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