अकेले ही
अनूदित साहित्य | अनूदित कविता हेमंत गोविंद जोगलेकर15 Dec 2022 (अंक: 219, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
मराठी कविता: एकटाच
मूल कवि: हेमंत गोविंद जोगलेकर
अनुवाद: हेमंत गोविंद जोगलेकर
सब्ज़ी लाने निकला,
तो तुम ने पूछा, “बटुआ लिया?”
अंदर जा के, बटुआ ले के, फिर निकल पड़ा।
तुम ने हँस कर कहा, “अगर मैं न होती!”
बैंक में जाने निकला,
तो तुम ने पूछा, “पासबुक लिया?”
अंदर जा के, पासबुक ले के, फिर निकल पड़ा।
तुम ने हँस कर कहा, “अगर मैं न होती!”
डॉक्टर के पास जाने निकला,
तो तुम ने पूछा, “पहले वाले रिपोर्ट्स लिये?”
अंदर जा के, रिपोर्ट्स ले के, फिर निकल पड़ा।
तुम ने हँस कर कहा, “अगर मैं न होती!”
अकेले ही विदेशयात्रा पे निकला,
ध्यान से पासपोर्ट लिया,
करन्सी ली, टिकट लिया,
फिर तुम्हारी ओर देखा,
तुम भी हँसी
तस्वीर में से
कहा, “अगर मैं होती!”
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