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घर

मराठी कविता: घर
मूल कवि: हेमंत गोविंद जोगलेकर
अनुवाद: हेमंत गोविंद जोगलेकर

 
जब मैं घर लौटता हूँ
मेरा घर दरवाज़े के पीछे छिप कर बैठता है
यकायक ‘भ्भो’ कहकर मुझे डराता है
झूठ-मूठ ही सही मैं सटपटाता हूँ
तो हँस हँस कर वो शैतान
घर सर पर उठा लेता है। 
 
बैठक की आराम कुर्सी में
जब आकर बैठता हूँ मैं
चुपचाप पीछे से आ कर
घर मेरी आँखें मूँदता है
‘पहचानो कौन?’
‘तू ही नटखट। और कौन?’
 
सोने के कमरे में देर तक
जब मैं पढ़ते बैठता हूँ
घर मेरा रूठ जाता है
सर के ऊपर तक चद्दर ओढ़ता है
नज़दीक जाकर जब तक चद्दर उठाता
अंदर उस बुद्धू को नींद भी लग चुकी होती है। 
 
जब मैं काम पर जाने निकलता हूँ
घर अंदर से अच्छी तरह से दरवाज़ा बंद कर लेता है
बाल्कनी से बाय-बाय करता है
फिर रसोई में जाकर सयाना सयाना मेरा घर
अकेला अकेला घर घर खेलता रहता है। 

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