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धर्म के नाम पर ख़तरे में मानवता: ‘जेहादन एवम् अन्य कहानियाँ’ 

पुस्तक: जेहादन एवं अन्य कहानियाँ (कहानी संग्रह)
लेखक: प्रदीप श्रीवास्तव
प्रकाशक: भारतीय साहित्य संग्रह
पृष्ठ संख्या: 272
मूल्य: ₹550
एमाज़ॉन लिंक: क्लिक करें
ISBN-13 ‏ : ‎ 978-1613017876

यथार्थवादी चर्चित कथाकार श्री प्रदीप श्रीवास्तव जी का अद्यतन कहानी-संग्रह ‘जेहादन एवं अन्य कहानियाँ’ भारतीय साहित्य संग्रह, कानपुर से जून-2024 में प्रकाशित हुआ है, जिसमें उनकी ग्यारह कहानियाँ संकलित है। इस कहानी-संग्रह के ब्लर्ब लिखने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है। चर्चित कथाकार और फ़िल्म पटकथा लेखक डॉ. संदीप अवस्थी इस कहानी-संग्रह की भूमिका में कहानीकार प्रदीप श्रीवास्तव जी के बारे में लिखते हैं कि आधुनिक युग में, जहाँ किताबे नहीं बिकती; वहाँ चंद लेखकों में प्रदीप श्रीवास्तव एक ऐसे लेखक हैं, जिन्हें सूर्यबाला, ममता कालिया, प्रेम जन्मजय, अलका सरावगी, अनामिका, कुसुम खेमानी, गिरीश पंकज, की तरह उन्हें भी खोज-खोज कर पढ़ा जाता है, जो लगातार दो दशकों से लिख रहे हैं। उनके लेखन की ख़ासियत यह रही है कि वे अपनी भाषा की जादूगरी के बल पर खुरदरे यथार्थ को तराश कर ऐसे प्रतिबिंब पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं, जो हमारे रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से सीधे तौर पर जुड़े हुए होते हैं। उदाहरण के तौर पर, मॉडलिंग और फ़िल्मी का यथार्थ और आधुनिक सूचना-क्रांति से पनपी अपसंस्कृति के ख़तरे को भाँपकर अपनी क़लम से ज्वलंत घटनाओं को प्रस्तुत करते हैं। किसी बड़े लेखक, कहानीकार या उपन्यासकार की यही विशेषता होती है, और उन सबका मक़सद होता है कि विश्व में मानवीय मूल्यों की स्थापना करना, भले ही, उसके लिए उन्हें समाज की गंदगी को साफ़ करने के लिए अपनी पैनी निगाहें, संवेदनशील हृदय और क़लम की तीक्ष्ण मून का इस्तेमाल क्यों न करना पड़े! 

इस संग्रह की ‘फाइनल डिसीजन’ एक ऐसी कहानी है, जिसमें प्रवासी भारतीय जो ख़ासकर ब्रिटेन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कैनेडा में रहते हैं, और वे अपने आप को भारतवंशी कहने में गर्व अनुभव करते हैं, मगर उन पर विदेशियों के सुनियोजित ढंग से होने वाले अत्याचार और हमलों के द्वारा उन्हें इस क़द्र प्रताड़ित किया जाता है कि वे वहाँ रहना नरक के समान मानते हैं। इस कहानी में गोरी चमड़ी वाले विदेशी लोग या तो नस्लवादी टिप्पणी करते हैं, या उनका अपमान करते हैं या उनके धर्म-संस्कृति की खुले-आम खिल्ली उड़ाते हुए उनके देवी-देवताओं पर भद्दी-भद्दी टिप्पणियाँ करते हैं; जबकि वे लोग अपने भीतर झाँक कर नहीं देखते हैं कि उनके यहाँ 12-14 साल की लड़कियाँ कैसे गर्भवती हो जाती हैं? अबॉर्शन और अवैध संतान पैदा करना आम बात हैं। यहाँ तक कि लव-जिहाद, मुस्लिम तुष्टिकरण जैसी समस्याएँ वे लोग भी झेल रहे होते हैं। इस कहानी में माँ अपनी बेटी को सामाजिक मूल्यों की जानकारी देते हुए व्यावहारिक ज्ञान के बारे में बताती है कि जैसे-कौन से कपड़े पहनने चाहिए? कौन से नहीं? इसके अतिरिक्त, पैडेड अंडर-गारमेंट के साथ-साथ प्रोट्रडिंग, ओपन, सुपर न्युमरेरी, हेयरी निप्लस के बारे में भी विस्तार से बताती हैं। विदेशी संस्कृति के अंधाधुंध अनुकरण के कारण भारतीय परिवार किस तरह बिखर जाता है, इसका ज्वलंत उदाहरण है यह कहानी। जिसमें माँ-बाप एक छत के नीचे साथ-साथ रहते हुए भी एक-दूसरे से बातचीत तक नहीं करते हैं, जिसका ख़म्याज़ा भुगतना पड़ता है, उनकी बेटी विदुषी को। अंत में, गार्गी और सोमेश्वर की दंपती साथ में रहने का ‘फाइनल डिसीजन’ ले लेती है। 

एक अन्य ‘जेहादन’ कहानी में लेखक ने लव-जिहाद की समस्या को सामने लाया है, जिसमें एक हिंदू लड़की की मुस्लिम बहुल क्षेत्र में काम करते-करते दो मुसलमान लड़कियों निखत और खुदेजा से दोस्ती हो जाती है, जिसे वे इस्लाम धर्म के बारे में ज्ञान देकर उसका ब्रेनवाश करने की कोशिश करती है। उदाहरण के तौर पर:

“एक दिन वह उनके साथ किसी पार्क में बैठी आइसक्रीम खा रही थी कि तभी निखत ने कहा, “कितना सुंदर पार्क है और मौसम भी। जानती हो यह सब अल्लाह का बनाया हुआ है, वह ग्रेट है। यह आसमान, मैं, तुम, सब उसी की देन हैं। हमें हमेशा उनका शुक्रगुज़ार होना चाहिए। हमेशा उनके सामने सज्दा करना चाहिए, उनसे ख़ौफ़ खाना चाहिए। अपना सब-कुछ उन पर क़ुर्बान कर देना चाहिए। जो लोग ऐसा नहीं करते, अल्लाह का क़हर उन पर टूट पड़ता है। उन्हें दोज़ख में डाल दिया जाता है। और जो अल्लाह की बात मानता है, वह उस पर मेहरबान हो जाते हैं, दुनिया की सारी ख़ुशियाँ उसके दामन में भर देते हैं। बहुत जल्दी ही यह पूरी दुनिया अल्लाह को मानने वालों की होगी।” (पृष्ठ-35) 

निखत बोली, “लेकिन मैं अल्लाहता'ला की बात कर रही हूँ। देखो तुम इंटेलिजेंट हो, समझने की कोशिश करो, अल्लाह के सिवा कोई और ऐसा नहीं है जिसकी इबादत की जाए। एक वही इबादत के क़ाबिल है, एक वही सच्चा है। तुम लोग जो करोड़ों देवी-देवताओं, पत्थरों, पेड़ों, नदियों, आकाश, पाताल, सितारों की पूजा करती हो, यह सब गुनाह है। अल्लाहता'ला इससे सख़्त ख़फ़ा होते हैं। मैं तुम्हारी बेस्ट फ़्रेंड हूँ, तुम्हें अल्लाह के क़हर से बचाना चाहती हूँ। इसलिए तुम्हें ऐसी सारी चीज़ों से तौबा कर लेनी चाहिए, जिससे अल्लाह ख़फ़ा होते हैं। तुम्हें मूर्तियों की पूजा बंद कर देनी चाहिए, बुर्क़े में रहना चाहिए। कभी भी हिजाब के बिना बाहर नहीं आना चाहिए। बुर्क़ा हम इस्लाम मानने वाली महिलाओं का सबसे बड़ा, सबसे सुंदर गहना है। करोड़ों देवी-देवताओं की पूजा करके तुमने अब-तक जो ढेर सारे गुनाह किए हैं, उसे तुम जैसे ही इस्लाम क़ुबूल करोगी, अँधेरे से रोशनी में आओगी, अल्लाहता'ला तुम्हारे सारे गुनाहों को पलक झपकते ही माफ़ कर देगा, वह बहुत ही रहम-दिल हैं।” (पृष्ठ-36) 

मगर वह सनातन धर्म की विशेषताओं, वेदों के आधार पर तर्क पूर्ण जवाब देते हुए ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की विचारधारा को प्रतिपादित करती है, जो मुस्लिम लड़कियों को नागवार गुज़रती हैं। वह कहती है कि, सनातन धर्म पूरी तरह से वैज्ञानिक है, शोध पर केंद्रित है। वहाँ अंधविश्वास को कोई स्थान नहीं है। एकमात्र यही धर्म है, जिसमें वैदिक गणित भी है, वैदिक साइंस भी है। इसने जो जो बातें कहीं आज विज्ञान भी उसे सही मान रहा है। शून्य से लेकर विस्तृत चिकित्सा शास्त्र सनातन धर्म का हिस्सा हैं। अब तो पश्चिमी विद्वानों ने भी यह मान लिया है कि शल्य चिकित्सा हो या चिकित्सा की अन्य विधाएँ, चरक और सुश्रुत संहिता में सभी का विस्तृत वर्णन है। प्लास्टिक सर्जरी जैसी जटिल बातें, विधियाँ इन ग्रंथों ने क़रीब तीन हज़ार साल पहले ही तब बता दी थीं, जब दुनियाँ में इस्लाम छोड़ो, ईसाई धर्म भी अस्तित्व में नहीं आया था। (पृष्ठ-37) 

हिन्दू लड़की के तर्कों से मुस्लिम लड़कियाँ क्षुब्ध हो जाती है और मौक़ा पाकर वे उसका अपने दोस्त जयंत अवस्थी से परिचय करवाती है। धीरे-धीरे हिन्दू लड़की उसके साथ लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने लगती है, जबकि छद्म नाम वाला जयंत वास्तव में मुस्लिम होता है, जिसका मूल नाम जुबैर होता है। जुबैर उसे जबरन इस्लाम धर्म क़ुबूल करवाकर तमंचे के बल पर उससे निकाह कर लेता है। जो बाद में उसके साथ हैवान की तरह पेश आता है। इस कहानी में लव-जिहाद पर केद्रिंत फ़िल्म ‘केरल स्टोरी’ के समतुल्य कथानकों को प्रस्तुत किया गया है। धर्मांतरण, राष्ट्रांतरण, वक्फ़ बोर्ड के क़ानून, मस्जिद, मदरसा, मज़ार, क़ब्रिस्तान आदि बनाने के लिए विदेशों से आने वाले अकूत धनराशि के साथ-साथ जबरन निकाह जैसे षड्यन्त्र एवं मुस्लिम धर्म की विकृत मानसिकता के पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया है और इसके पीछे की घटिया राजनीति का भी पर्दाफ़ाश किया गया है। 

“सांसत में कांटे” कहानी में लेखक ने कश्मीर समस्या के मुद्दे को गंभीरता से उभारा है। कभी ऋषि कश्यप की पवित्र भूमि रही कश्मीर आज जेहादियों का अड्डा बना हुआ है, जिस पर हो रही राजनीति, धारा-370, 35 ए और शेख़ अब्दुल्ला की अलगाव नीति ने कश्मीर में न केवल आतंकवाद को बढ़ाया है, बल्कि देश के माथे पर कलंक भी लगाया है। इस कहानी में यह दर्शाया गया है कि किस तरह एक मुस्लिम परिवार का लड़का हमजा, जो डॉक्टर बनना चाहता था; मगर आतंकवादी बंदूक के बल पर उसका अपहरण कर लेते हैं, और उसे काफ़िरों को मारने की ट्रेनिंग दी जाती है। उसे ट्रेनिंग में सिखाया जाता है:

दहशतगर्द के हिसाब से पाँचों वक़्त की नमाज़ अदा करना ही पूरा मुसलमान होना नहीं है। उन्होंने बार-बार क़ुरान के पारा दस, सूरा नौ, तौबा आयत पाँच की इस बात, “अतः जब हराम (वर्जित) महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों (बहुदेववादियों) को क़त्ल करो जहाँ पाओ और उन्हें पकड़ो और घेरो और हर घात में उनकी ख़बर लेने की लिए बैठो। फिर अगर वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो उन्हें छोड़ दो।” का ज़िक्र करते हुए कहा कि “क़ुरान ए पाक में साफ़-साफ़ हुक्म दिया गया है कि मुशरिकों की ताक में रहो, घात लगा कर जहाँ भी पाओ उन्हें क़त्ल करो। इसलिए जो इस पर अमल नहीं करता, जिहाद में शामिल नहीं होता, तलवार नहीं उठाता, काफ़िरों के सिर क़लम नहीं करता, तो वह पूरा मुसलमान हो ही नहीं सकता।” (पृष्ठ-54) 

आगे जाकर यही लड़का पेशेवर आतंकवादी बन जाता है, जिहाद को अपने जीवन-जीने का आधार बना देता है, अपने साथियों के बचाव में भस्मासुर बनकर वह अपने ही परिवार को ख़त्म कर देता है और यहाँ तक कि अपने पिता, दोनों भाइयों और दोनों बहनों को गोली से मार देता हैं। 

“रुबिका के दायरे में” कहानी में हमारे देश की भ्रष्ट राजनीति के साथ-साथ मज़हब, क़ौम और समाज को खंडित करने वाली शक्तियों पर करारा प्रहार किया गया है। इस कहानी में यह दर्शाया गया है कि किस तरह हमारे देश के मासूम बच्चों को धर्म के नाम पर देशद्रोही गतिविधियों में धकेला जाता है। कहानीकार ने रुबिका के बहाने विश्व के इतिहास के साथ-साथ हमारे देश के इतिहास पर भी विहंगम आलोकपात किया है। नेपोलियन बोनापार्ट, हरि सिंह, राणा सांगा, महाराणा प्रताप, कुंअर जगत सिंह, अकबर के साथ-साथ वर्तमान समाज की विद्रूपताओं और विसंगतियों पर भी प्रभाव डाला गया है। शाहीन बाग़ की आड़ में रुबिका प्रोफ़ेसर सईद के वहशीपन का शिकार हो जाती है। इस तरह एक मुस्लिम महिला की मनोव्यथा को उजागर किया गया है। 

“स्याह उजाले के धवल प्रेत” एक अत्यंत ही मार्मिक कहानी है, जिसमें कहानीकार ने अपने क़लम की पैनी धार से समाज की वास्तविकता को पाठकों के सम्मुख रखा है। कहानी के मुख्य पात्र वासुदेव के पोस्ट ग्रेजुएट होने के बाद भी मज़दूरी करना, उस मज़दूरी को पाने के लिए अपना घर छोड़कर दिल्ली प्रवास करना; वहाँ पर भी अपने आप को समायोजित नहीं कर पाने के कारण मुस्लिम बहुल इलाक़े के लोग इसे जबर्दस्ती गाड़ी में बैठाकर किसी दूर दराज़ के इलाक़े में छोड़ देना, वहाँ से जैसे-तैसे कर अपने घर पहुँचना, मगर करोना के कारण अपने परिवार से दूर कवारेंटाइन में रखना, उसकी सम्पत्ति को सगे-सम्बन्धियों द्वारा हथिया लेना जैसी-अनेक घिनौनी घटनाओं को प्रस्तुत किया गया है। अंत में, वासुदेव अपने गाँव में छोटे-मोटे काम करते हुए जीवन यापन करने का फ़ैसला करता है, और उसकी नर-पिशाचों से युक्त दिल्ली जैसे महानगरों में फिर कभी जाने की इच्छा नहीं होती है। वासुदेव के भटकाव के दौरान तीन-चार दिन की अनवरत यात्रा में उसकी दुधमुँही बच्ची का इलाज नहीं कराने के कारण मृत्यु हो जाती है। 

यह कहानी प्रसिद्ध ओड़िया कहानीकार अखिल मोहन पटनायक की कहानी ‘दिल्ली का महाशून्य’ की याद दिलाती है। जिसमें एक शिक्षक अपनी पत्नी के साथ दिल्ली भ्रमण पर जाता है, मगर कुछ नर-पिशाच उसकी पत्नी का अपहरण कर लेते हैं, जिसे वह दिल्ली में खोज नहीं पाता है, और उसका जीवन महाशून्य से भर जाता है। 

“सत्या के लिए” कहानी दुनिया भर में फैल रहे लव-जिहाद के भयानक वैश्विक स्वरूप को प्रकट करती है, लद्दाख, केरल, ब्रिटेन, स्पेन, आस्ट्रेलिया, कैनेडा, सभी जगह छद्म नाम रख कर मुस्लिम समाज के शादीशुदा पुरुष दूसरे धर्म की भोली-भाली लड़कियों को अपने प्रेम-जाल में फँसाकर उनके साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाकर बलात्कार करते हैं, यहाँ तक कि उनके प्राइवेट पार्ट का खतना कर बंदूक की नोक पर शारीरिक शोषण करते रहते हैं। इस कहानी में देवबंद में रहने वाली हिन्दु महिला अपनी दुकान पर नियमित रूप से आने वाले ग्राहक हर्षित वाजपेयी (जबकि असली नाम हारुन होता है) के प्रेमजाल में फँस जाती है। वह उसका शादी से पूर्व ही नहीं, बल्कि शादी के बाद भी नारकीय रूप से शारीरिक शोषण करता है। यहाँ तक कि हारून के पिता और भाई भी साथ मिलकर उसके साथ दिन-रात अमानवीय तरीक़ों से शारीरिक शोषण करते रहते हैं। उसे मुस्लिम धर्म अपनाने के लिए विवश करता है, इसके लिए उसके प्राइवेट पार्ट क्लिटोरिस हुड और लैबिया मायनोरा के भीतरी हिस्से को काटकर खतना कर देता है। कहानीकार के मार्मिक शब्दों में, “आठ-दस दिन बाद ही एक दिन एक मुल्ले को बुलाया और मेरी गर्दन पर चाकू रखकर, मेरा धर्मांतरण कर दिया। मैं पक्की मुसलमान बनी रहूँ हमेशा, इसके लिए उसी दिन मेरा खतना करने की तैयारी थी . . . 

“आपका खतना! . . . “

“हाँ मेरा . . . “

“लेकिन यह तो जेंट्स का होता है, उनके प्राइवेट पार्ट के कुछ हिस्से काट कर निकाल देते हैं। लेडीज़ में क्या . . . “

“लेडीज़ में भी होता है। उनके प्राइवेट पार्ट के क्लिटोरिस हुड और लैबिया माइनोरा के भीतरी हिस्से को काटकर निकाल दिया जाता है। कई बार तो इससे भी आगे जाकर एक्सटर्नल जेनेटाइल को निकाल कर यूरिन, पीरियड हो पाए बस इतनी जगह छोड़ कर हमेशा के लिए स्टिचिंग कर दी जाती है। दाउदी मुस्लिमों में तो क़रीब अस्सी परसेंट औरतों का खतना होता है . . . ” (पृष्ठ-155) 

खतना के बाद उसके प्रेगनेंट होने पर उसे किसी कमरे में निर्वस्त्र क़ैद करके रखता है। संयोगवश, उस महल्ले में किसी घटना की तहक़ीक़ात को लेकर पुलिस की रेड होती है, तो मौक़ा देखकर वह घर के दरवाज़े को पीटते हुए सारी घटना का पर्दाफ़ाश कर देती है। कहानी के अन्य मुख्य पात्र का नौकरी में ज़्यादा शराब पीने और दूसरी औरतों के साथ शारीरिक सम्बन्ध होने के कारण उसका परिवार बिखर जाता है। उसकी मुलाक़ात सत्या से शराब की दुकान पर होती है। ज़्यादा नशा से सत्या चला नहीं पाती है, तब वह उसे घर तक छोड़ने जाता है, वहाँ वह सामान्य अवस्था में आने के बाद और उस पर विश्वास होने के बाद यह सारी कहानी खुलकर बता देती है। कहानीकार इस कहानी के माध्यम से हमारे समाज में हो रही इन काली घटनाओं को न केवल पाठकों के सम्मुख रखकर् उन्हें सचेत करने का प्रयास किया है, बल्कि उन्हें आज के इस युग में बिना जान-पहचान के अथवा चेहरे की मासूमियत देखकर अथवा अपने धर्म से मिलते-जुलते नाम देखकर किसी के प्रेम-प्रसंग में पड़ना अपने जीवन में नरक को आमंत्रण देने के समान है-इस पर भी कहानीकार ने गहराई से प्रकाश डाला है। 

“सुमन खंडेलवाल” कहानी में मुस्लिम औरत हिन्दू आदमियों को अपने झाँसे में फँसाकर रेप के आरोप का डर दिखाकर न केवल उनका धर्मांतरण करने के लिए बाध्य करती है, बल्कि सर्जरी की आड़ में उनके शरीर के अंगों को भी बेच देती है। इस कहानी में सबीना सुगन्धा बनकर 45-46 साल के भुवन चंद्र खंडेलवाल को अपने चंगुल में फँसा लेती है। उसका खतना करवा देती है और उसका धर्म बदलकर मोहम्मद सुलेमान बना देती है। पहले उसकी किडनी बेच देती है और यहाँ तक कि उसके शरीर के बचे बाक़ी अंगों को ब्लैक वर्ड की ख़ूँख़ार क्रूर गैंग से 2 करोड़ में सौदा भी कर लेती है। इस कहानी के बुनावट के लिए लेखक ने सुमन खंडेलवाल जैसे पात्र का सहारा लिया है, जो भुवन चंद्र खंडेलवाल की बेटी है और उसे कहानी का मुख्य पात्र प्यार करता है। मगर उसकी शादी नहीं हो पाती है, एक दुकान पर सुमन खंडेलवाल की तस्वीर लटकी हुई देखकर उसके मन में अपनी प्रेमिका के भटकती आत्मा के माध्यम से सत्य को रोचकता पूर्ण ढंग से पाठकों के सामने लाने का प्रयास किया गया है। जिस तरह शेक्सपीयर के उपन्यास ‘हेमलेट’ में राजकुमार हेमलेट अपने मृतक पिता की आत्मा के माध्यम से हत्यारे तक पहुँच जाता है, ठीक उसी तरह, इस कहानी का पात्र अपनी प्रेमिका सुमन खंडेलवाल की आत्मा के माध्यम से उसके धर्मांतरित पिता मोहम्मद सुलेमान (भुवन चंद्र) को मौत के मुँह में जाने से बचा लेती है। मानव अंगों की तस्करी करने वाले गैंगों को सलाखों के पीछे पहुँचा देती है। 

“सन्नाटे में शनाख्त” कहानी में मंगोलिया के खान वंश से सम्बन्ध जोड़ने वाले मुसलमानों के इस्लाम धर्म से सम्बन्ध का जब वाजिदा रहस्य उद्घाटन करती है कि यह धर्म गैंग्रे धर्म यानी यांत्रिक धर्म का अपभ्रंश है, जो सनातन धर्म के नज़दीक है, इसमें भगवान शिव की अर्चना की जाती है, इसलिए इनके मक़बरों, मंदिरों के ऊपर त्रिशूल और शृंगी का निशान बना रहता है। वाजिदा की इस दलील पर उसका खाबिंद तबरेज उसे काफ़िर कहते हुए उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने लगता है। और अंत में, तीन बार तलाक़ बोलकर उसे तलाक़ दे देता है। वाजिदा का दो बार पहले हलाला भी हो चुका होता है। यद्यपि पति-पत्नी के बीच लड़ाई-झगड़े को सुलझाने के लिए जब पुलिस हस्तक्षेप करती है, मगर वाजिदा दुबारा उसे पति मानने से इनकार कर देती है तो वह उसके ऊपर चरित्रहीनता का आरोप लगाता है। बदले में, वाजिदा उसके हमले का उत्तर स्टील जग से उसके सिर पर ताबड़ तोड़ हमला करते हुए देती है, लेकिन वह अपनी इस बात पर क़ायम रहती है कि भले ही, हम मुसलमान है, लेकिन हमारे पूर्वज सनातन थे भगवान राम और कृष्ण की तरह। इंडोनेशिया, जहाँ आज सबसे ज़्यादा मुस्लिम है, वहाँ आज भी राम को अपना पूर्वज मानते है। रामलीला का मंचन करते है, वहाँ की करेंसी पर गणेश जी का फोटो अंकित रहता है। इस तरह इस कहानी के माध्यम से कहानीकार न केवल मुस्लिम संप्रदाय को सत्य के अन्वेषण के लिए मानसिक तौर पर तैयार रहने, बल्कि उदार प्रकृति को अपनाने के लिए संदेश देता है; ताकि धार्मिक कट्टरता के कारण कई परिवार बिखरने से बच सके। 

“दो बूँद आंसू” एक मुस्लिम वृद्धा सकीना की जीवन की मार्मिक कहानी है। उसे बेहोशी की दवा खिलाकर उसका छोटा बेटा जुनैद कही दूर सड़क पर फेंक देता है। उसका मोबाइल पहले से ही पानी में बच्चों के द्वारा डलवा देता है, जिससे वह ख़राब हो जाता है। इस वजह से वह अपनी लड़की से बिल्कुल बातचीत नहीं कर पाती है। अचेत अवस्था में पड़ी हुई सकीना को भगवाधारी साध्वी उठाकर अपने आश्रम में ले जाती है, उसका इलाज करती है। साध्वी का प्रेम, सौहर्दता से प्रभावित होकर वह अपने मुस्लिम धर्म के कट्टरता के बारे में सोचने लगती है। तब जाकर उसे सनातन धर्म के असलियत महसूस होती है, जिसमें ईश्वर ने मनुष्य को जीवन जीने के लिए मौक़ा दिया है और वह ईश्वर ही इस अखिल सृष्टि का मालिक है। यहाँ तक कि उसकी मृत्यु के बाद उसका अंतिम-संस्कार साध्वी अपनी देख रेख में करवाती है, पुष्पांजलि अर्पित करती है; मगर उस समय सात बच्चों की माँ, चालीस नाति-पोतो से भरा-पूरा परिवार होने के बावजूद उसके आख़िरी पल में कोई काम नहीं आता है, दो बूँद आँसू बहाने के लिए भी नहीं। 

इसकी व्याख्या कहानीकार ने निम्न शब्दों में की हैं, “प्रवचन में एक दिन जीवन की नश्वरता, क्षण-भंगुरता के बारे में सुनने के बाद उसने गुरु माँ से अपनी अंतिम इच्छा बताई कि उसकी मृत्यु होने पर उसका अंतिम संस्कार कैसे किया जाए। उसकी इच्छा को सुनकर गुरु माँ ने स्नेह-पूर्वक उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा, “ईश्वर ने मनुष्य को जीवन जीने और स्वयं द्वारा उसके लिए निर्धारित किए गए कर्त्तव्यों का निर्वहन करने के लिए दिया है। जितना जीवन उसने हमें दिया है, उसके लिए प्रसन्नता-पूर्वक हमें उसको धन्यवाद देते हुए, सदैव उसको स्मरण में रखते हुए, कर्त्तव्यों का निर्वहन करते रहना चाहिए। अखिल ब्रह्मांड का वही एकमात्र स्वामी है, उसी की इच्छा मात्र से सब-कुछ हो रहा है, होता रहेगा, हम सब तो निमित्त मात्र हैं।” और जब कुछ बरसों बाद सकीना ने इस दुनिया को अलविदा कहा, तो गुरु माँ ने उसकी इच्छानुसार उसका अंतिम संस्कार अपनी ही देख रेख में संपन्न करवाया। पुष्पांजलि अर्पित की। 

उसके लिए उनके अंतिम वाक्य थे, “सकीना ईश्वर तुम्हें सद्गति प्रदान करें। तुम सदैव हमारी स्मृति-पटल पर अंकित रहोगी।”

निश्चित ही सकीना की रूह यह देख कर, इस हृदय-विदारक पीड़ा से बिलख पड़ी होगी कि जिन्हें काफ़िर कह कर वह नफ़रत करती थी, वो अंतिम रुख़सती पर नम आँखों से फूलों की वर्षा कर रहे हैं, और जिन सात को पैदा किया, चालीस नाती-पोतों में से इस आख़िरी पल में कोई भी नहीं, जो उसके लिए दो बूँद आँसू भी गिराता।” (पृष्ठ-218) 

“एबोडेण्डेड” कहानी में गाँव के दो अलग-अलग समुदायों के नवयुवक और नवयुवती की ख़तरे से भरी प्रेम-कहानी का चित्रण है। पकड़े जाने पर उनके समुदाय वाले मौत के घाट उतार देने के लिए तैयार रहते है, इसलिए वे किसी ट्रेन में बैठकर गोधूलि वेला में वहाँ से भाग जाते हैं, रात किसी पुरानी बोगी में गुज़ारते है और सुबह उठते ही दिल्ली के लिए रवाना हो जाते है। वहाँ उन्हें घर की लड़ाई के साथ-साथ नौकरी की लड़ाई, भविष्य सँवारने की लड़ाई लड़नी बाक़ी है। भले ही, वे एबोडेण्डेड लोग है, मगर हमारी पीढ़ी का भविष्य है। लेखक ने अपनी इस कहानी का अंत इस तरह किया है, “फ़ोर्स की ताक़त से चक्रवाती तूफ़ान से होने वाली तबाही तो ज़रूर रोक दी गई है। लेकिन पूरे विश्वास से कहता हूँ कि ऐसे तूफ़ान स्थायी रूप से ऐसे युवक-युवती ही रोक पाएँगे जो अपना संसार अपने हिसाब से बसाने सँवारने में लगे हुए हैं। जिनका उनके परिवार वालों ने उनका जीते जी अन्तिम संस्कार कर परित्याग कर दिया है। ये त्यागे हुए लोग, पीढ़ी ही सही मायने में भविष्य हैं हमारी दुनिया के। फ़िलहाल आप चाहें तो इनके माँ-बाप की तरह मानते रहिए इन्हें एबॉन्डेण्ड।” (पृष्ठ-261) 

“मोटा दाढ़ी वाला” कहानी में लेखक प्रदीप श्रीवास्तव ने दर्शाया है कि कोविड के दौरान 15-16 साल की भिखारिन को भी कुछ अय्याश लोगों की हवश का शिकार बनना पड़ा था। इस कहानी में एक रिश्वतख़ोर सरकारी कर्मचारी उस भिखारिन की पैसा, खाना, वस्त्र आदि से मानवीय मदद करता है। यहाँ तक कि, उसके सही-सलामत प्रसव हेतु किसी ऐन। जी। ओ। में 20,000 रु की अग्रिम राशि भी जमा करा देता है। दुःख इस बात का है कि प्रसव से पहले ही वह भिखारिन किसी दुर्घटना का शिकार होकर अपनी जान गवाँ बैठती है। 

आधुनिक मानव-जीवन की अनेक यथार्थ घटनाओं को, जो चाहे, किसी धर्म पर आधारित हो या, किसी जीवन-शैली पर, कहानीकार की पैनी क़लम ने धर्म, जात, लिंग, भेद से ऊपर उठकर अपने भावप्रवण, संवेदनशील हृदय से समकालीन समय, परिवेश और परिदृश्य को इस संकलन की पुष्पमाला में पिरोया है। जिसे पढ़ते समय ऐसा लगता है, मानो आप या तो टीवी की किसी सनसनी खेज-ख़बर के धारावाहिक को कहानी में बदलते देख रहे हो, या फिर किसी हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में छपी ख़बर का फॉलो-अप करते हुए उसके अंतिम अंजाम तक पहुँचते-पहुँचते कहानी में बदलते हुए देख रहे हो। निस्संदेह, हिन्दी साहित्य जगत में इस पुस्तक का भरपूर स्वागत होगा। ईश्वर से प्रार्थना है कि ऐसे ही प्रबुद्ध यथार्थवादी कहानीकार श्री प्रदीप श्रीवास्तव जी की सशक्त क़लम अनवरत चलती रहे। और हमारा साहित्य सुसमृद्ध होने के साथ-साथ अपने मानवीय उद्देश्यों की पूर्ति करने में भी सफल सिद्ध हो। इसी मंगल कामना के साथ मैं अपनी क़लम को विराम देता हूँ। 

दिनेश कुमार माली 
तालचेर, ओड़िशा 

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