स्त्री का स्वर
काव्य साहित्य | कविता अनिमा दास15 Apr 2024 (अंक: 251, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
(सॉनेट)
मौनता की भाषा यदि होती . . .मृदुल-सहज व सरल
द्रुमदल न होते अभिशप्त . . .आ:! न होता अंत वन का
न स्रोतवती होती शुष्क, न मेघों में होता अम्लीय जल
न होता अज्ञात अभ्र में लुप्त एक पक्षी . . . मृत मन का।
न होती यक्ष-पृच्छा . . .न मिथ्या विवाद की धूमित ध्वनि
न कोई करता अनुसरण सदा अस्तमित सूर्य का कभी
न पूर्व न पश्चिम न उदीची से . . . प्रत्ययी पवन की अवनि
न होती नैराश्य-बद्ध . . . निगीर्ण ग्लानि में रहते यूँ . . .सभी।
यह जन्म उसी प्राचीन इतिहास का है एक भग्नावशेष
निरुत्तर निर्मात्री . . . पुरुष-इच्छा की स्त्री . . . मौन-मध्याह्न
स्वर में नीरव अध्वर . . . शून्य भुजाओं में अंतिम आश्लेष
प्रतिक्षण ध्वस्त होते इसके कण-कण, हैं अर्ध अपराह्न।
यदि हुई अभिषिक्त यह उर्वि . . . यदि हुआ नादित अंभोधर
प्रतिगुंजित होगा अंतरिक्ष में तब अविजित स्त्री का स्वर।
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