उक्त-अनुक्त
काव्य साहित्य | कविता अनिमा दास1 Jul 2023 (अंक: 232, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
(सॉनेट)
ऊहूँ, न, नहीं व्यक्त करूँगी अपनी परिधि
ऊहूँ . . . न . . . नहीं आऊँगी संग तुम्हारे, देने
तुच्छ कामनाओं को . . . पूर्णता व प्रविधि
अर्थहीन संभावनाओं का अपराध लेने।
तुम हो एकांत द्वीप के अहंमन्य सम्राट
हाँ . . . तुम्हारी कल्पना से जो गंध आती है
उससे मैं होती हूँ रुद्ध . . . रुद्ध होता कपाट
अनुक्त शब्दों में . . . व्यथा भी भर जाती है।
मैं नहीं होती तुम्हारे प्रश्न वाण से क्षताक्त
अट्टहास तुम्हारा जब गूँजता है नभ पर
हृदय उतनी ही घृणा से होता है विषाक्त
ध्वस्त करती हूँ इस ग्रह का मिथ्या गह्वर।
आः!!! अब सर्वांग मेरा हो रहा अग्निमय
उः!!! शेष हो कराल नृत्य . . . अंतिम प्रलय।
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