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व्याकरण

(सॉनेट)


तुम्हारे रुद्ध द्वार पर रख आई समस्त विषाद
अंतहीन पीड़ा का एक दीर्घ श्वास व प्रतिवाद
गवाक्ष से दृष्ट प्रतिछाया में मिश्रित . . मन का तमस
प्रलंबित हुआ चतुर्थ प्रहर पर्यंत लिए गहन उमस। 
 
तुम्हारे निष्ठुर मौन द्वार पर दे आई समस्त आर्द्रता
रक्तकमल सा क्षताक्त भाव व अंतिम विवशता
अधर से अध्वर छू गईं कज्जल की सिक्त रेखाएँ 
एक स्वप्नहीन रात्रि में व्यतीत हुईं कई निशाएँ। 
 
तुम्हारे प्रश्नवाची द्वार पर त्याग आई समस्त उत्तर 
वसंत विभोर संध्या की शेष सुगंध व शीतल शीकर 
हृदय का एक भग्न-अंश व नीरव आषाढ़ की धूप 
पीतवर्ण शुष्क पर्ण पर लिखित व्यथा का चारु रूप। 
 
अंततः अंजुरी में भर लेना मेरे अव्यक्त समर्पण को
पढ़ लेना तुम हृदय पुस्तक के प्राक्‌ व्याकरण को। 

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