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मुक्ति (सॉनेट)

 

मुक्त हो जाओ तुम . . . इस संधि से . . . इस भाग से
मुक्त कर दो समस्त पापों को . . . समग्र ताप को
मुक्त हो जाएगी आत्मा . . . देह से; इस स्थल विभाग से
मुक्त कर देगा जगत तुम्हारे उच्च अस्थिर विलाप को। 
 
एक बार मुक्त करके देखो . . . प्रत्न प्रश्न व अहंकार 
मुक्त हो जाएँगे आत्म विकार . . . ललाट के कुंचन
श्यामल रात्रि में मुक्त करो अभिमान के अश्रुज्वार
मुक्त हो जाएगा हृदय मंथन . . . साथ मिथ्या आलंबन। 
 
मुक्त कर देना जीवन से मान-अपमान-स्वाभिमान
क्रांति-क्लांति-विश्रांति में उभरते क्षोभ व क्रोध
तुम मुक्त हो जाओगी; मुक्त हो जाएगी कथा अम्लान
अंतिम दिवस में मार्ग से होगा अदृश्य अपरोध। 
 
 
द्वि-पार्श्व में शुक्ल नक्षत्र॥द्वि-दिशा में मुक्ति-पथ 
एक महायात्रा है . . .अन्येक तुम्हारी आत्मा का गमथ। 

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