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मोहनीय प्रेम

 

इस नील नीरव निदाघ में 
कैसे आई वर्षा की महक 
छम-छम करती बूँदें 
कैसे आई माघ में॥
 
कहीं तरंगिणी की मंदिमा
कहीं शैल का मौन चंद्रमा 
निःशब्द मेरी प्रतिछवि से 
करते अहरह कथोपकथन 
लिए अंजुरी में पुष्प-लताएँ 
कि देह बनती वंशी . . . 
स्पर्श करती अधरों की लालिमा से॥
कैसे आई वर्षा की महक 
नीरव निदाघ में 
माघ में . . .। 
 
नवयौवन से पुलकित भ्रमर 
सुनता परागों की अभिलाषा 
कहता पवन से . . उड़ा ले जाए 
कहीं दूर . . उनकी अंतर्भाषा 
अग्नि वन-वन . . किन्तु प्रेम में 
भ्रमर बनता मोहना बाग़ में 
कैसे आई वर्षा की महक 
नीरव निदाघ में 
माघ में . . . 
 
इस नील नीरव निदाघ से 
कह दूँ . . माघ से 
वसंत का हुआ अवतरण है 
स्वप्न रंग-बिरंगे नयनों में 
लिए रात्रि वियोग की ज्वाला में 
न करेगी व्यतीत अब 
मोहन की प्रतीक्षा में . . . 
कह दूँ . . . निदाघ से . . . 
माघ से . . .। 

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