क्षण भर वसंत
काव्य साहित्य | कविता अनिमा दास15 Mar 2025 (अंक: 273, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
(सॉनेट)
एक वंशी . .यमुना तट . . रासकुंज . . एवं मैं
स्वरित समीर की . . सुगंधित शीतलता भी
सुप्त स्वप्न में सौंदर्य का अन्वेषण भी है
यामा की है यात्रा . . . प्रतीक्षा है प्रत्यूष की
स्वागत है! दिव्य ऋतुराज, भर दो पीत रंग
हो रहे माधुर्य में गीत लय ताल सम्मिलित
नृत्य करतीं वल्लरियों . . मंजरियों के संग
मधुर रास में मग्नमन है विह्वल रागान्वित
मोहन वंशी . . स्वर्णिम कभी रक्तिम अंबर
हाय क्यों मंद-मंद स्पर्श से करे देह-मंथन
पुष्पशय्या सजाए वह सारंग . . नट-मधुकर
तृषा रंग की तीव्र हो जाए . . धमनी में स्वन
हे वसंत! क्षणभर में अनंत . . हे मयूर पंख
अद्य हृदय में है तरंगित . . शत शब्द-शंख।
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