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असल प्रयागराज

 

मैं बहुत भावुक हूँ
सम्भव है मैं भावुक होकर
कुछ बहुत ज़्यादा भावुकता पूर्ण लिख दूँ
मैं प्रयागी हूँ परन्तु मुझे कभी
प्रयागराज के इतिहास में कोई रुचि नहीं रही
परन्तु मुझे लगता है प्रयाग को देश दुनिया और
स्वयं प्रयाग के राजे ग़लत ढंग से जानते हैं
 
प्रयाग को लोग त्रिवेणी और संगम से जानते हैं,
लालकिले से जानते हैं और जानते है
बँधवा हनुमान से, बच्चन से, नेहरू से,
आज़ाद से, परुषोत्तम दास टंडन से,
महादेवी वर्मा से, सुमित्रानंदन पंत से और
जाना जाता है
“प्रयागस्य पवेशाद्वै पापं नश्यति: तत्क्षणात्।”
अर्थात्‌ प्रयाग आने भर से सभी पापों का नाश हो जाता है
 
परन्तु असल प्रयाग अछूता रह गया सभी से
अब यह ज़िम्मा भी मेरे सर आया,
अब मैं सबको अवगत कराऊँगा असल प्रयाग से
 
असल प्रयाग तो चुंगी की मलिन बस्ती है,
शास्त्री पुल के किनारों वाली झोपड़ी है,
परेड ग्राउंड की उजाड़ ज़िन्दगी है,
अलोपी बाग़ की झोपड़पट्टी है,
बँधवा के भिखारी हैं, अल्लापुर की बदबू,
चौक की भीड़, विश्वविद्यालय का गुंडागर्दी है,
कचहरी का आभिजात्य वर्ग,
इंदिरा भवन की गुटका से रंगी दीवारें हैं,
गोबरगली का गोबर है,
छोटा बघाड़ा के बेरोज़गार हैं,
नैनी पुल का सुसाइड प्वाइंट है,
हाई कोर्ट की काली सोच है
 
आश्चर्य है उप्र के राजे से प्रयाग की
ये सभी मशहूर जगहें अछूती रह गईं
मेरी नज़र में, राजे ने इलाहाबाद नहीं देखा,
मतलब प्रयागराज नहीं देखा
परन्तु मैंने इलाहाबाद और प्रयागराज दोनों देखा है।

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